लखनऊ: चार दिन की बच्ची को नहीं मिला वेंटिलेटर, थमी सांसें, मचा कोहराम...
लखनऊ। राजधानी के अस्पतालों की व्यवस्था खुद वेंटिलेटर पर है। आए दिन वेंटिलेटर न मिलने की वजह से लोगों की जान जा रही है। लगातार ऐसे मामले प्रकाश में आने के बावजूद जिम्मेदार मूकदर्शक बने हुए हैं। ऐसा ही एक मामला शनिवार को भी प्रकाश में आया। चार दिन की मासूम को इलाज के लिए दो दिनों तक परिजन एम्बुलेंस से सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटते रहे। लेकिन इलाज नहीं मिला। वहीं, आरोप है कि सिफारिश के बाद केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में सांसे थमने के बाद भर्ती कर उसके कागज तैयार किए गए।
राजाजीपुरम क्षेत्र के बख्तामऊ निवासी पेशे से मजदूर फाजिल ने बताया कि उसकी पत्नी शमीम बानो को प्रसव पीड़ा होने पर गत 10 अक्टूबर को लोकबंधु अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां उसी दिन रात करीब 10:30 बजे नार्मल डिलीवरी से बच्ची का जन्म हुआ। कुछ देर बाद बच्ची की तबियत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने केजीएमयू रेफर कर दिया। आरोप है कि परिजन बच्ची को एम्बुलेंस से केजीएमयू लेकर आए। यहां पीडियाट्रिक वेंटिलेटर बेड खाली न होने का हवाला देकर दूसरे अस्पताल की रास्ता दिखा दिखा दिया गया। जिसके बाद परिजन सिविल, लोहिया संस्थान और पीजीआई गए। लेकिन यहां भी निराशा मिली।
दो दिन निजी अस्पताल में कराया भर्ती
बच्ची के पिता फाजिल ने बताया कि मजबूर होकर वह कृष्णानगर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां दो दिन में 13 हजार रुपये ले लिए गए। पेशे से मजदूर होने के कारण वह आगे का इलाज करवाने में असमर्थता जताई। जिसके बाद शनिवार को वह दोबारा से एम्बुलेंस से बच्ची को लेकर सरकारी अस्पतालों के चक्कर काटता रहा।
सीमा के प्रयास से ट्रॉमा में मिली एंट्री, तब तक उखड़ चुकी थी सांसे
बच्ची के पिता ने बताया कि शनिवार सुबह एक बार फिर से वह बच्ची को लेकर केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर पहुंचा था। यहां वेंटिलेटर बेड न होने का हवाला देकर वापस कर दिया गया। पीजीआई समेत अन्य अस्पतालों में चक्कर काटता रहा। जहां पीजीआई में नर्सिंग स्टॉफ एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष सीमा शुक्ला ने केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर प्रभारी डॉ. संदीप तिवारी को कॉल कर बच्ची को भर्ती करने का अनुरोध किया। पिता का कहना है कि शाम चार बजे वह ट्रॉमा सेंटर गया। लेकिन इलाज शुरू होने से पहले ही बच्ची की सांसे थम चुकी थी। इसके बावजूद डॉक्टरों ने भर्ती करने की खानापूर्ति की।
डिप्टी सीएम के निर्देशों का नहीं हो रहा पालन
गौरतलब है कि गत तीन जून को बहराइच निवासी सईद नवजात को लेकर राजधानी आए थे। उन्हें भी कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद पीडियाट्रिक वेंटिलेटर नहीं मिला था। केजीएमयू में एम्बुलेंस में ही मासूम की सांसे उखड़ गईं थीं। इस घटना के बाद उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने अस्पतालों को निर्देश दिया था कि यदि वेंटिलेटर खाली नहीं हैं तो बाइपेप के जरिए इलाज दिया जाए। लेकिन किसी भी सूरत पर मरीज को वापस न लौटाया जाए। इसके बावजूद मरीजों को सुविधा नहीं मिल रही।
एनआईसीयू में नौ वेंटिलेटर
जानकारों का कहना है कि राजधानी के सरकारी संस्थानों और अस्पतालों में एनआईसीयू के सिर्फ नौ वेंटिलेटर हैं। सभी हर समय फुल रहते हैं। इनमें से लोहिया संस्थान में छह, बलरामपुर में एक, केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर के एनआईसीयू में दो पीडियाट्रिक वेंटिलेटर उपलब्ध हैं। डॉक्टरों का कहना है कि जो शिशु वेंटिलेटर पर जाता है। उसे ठीक होने में 15 दिन से अधिक समय लग जाता है।
ट्रॉमा सेंटर में मरीजों का दबाव अधिक रहता है। जो भी मरीज आते हैं, उन्हें प्रमुखता से इलाज मुहैया कराया जाता है। वेंटिलेटर खाली हो तो बच्ची को जरूर दिया जाता। -डॉ. सुधीर सिंह, प्रवक्ता केजीएमयू