नैनीताल: 'बूढ़ी' बसें, थोड़ी दूरी पर ही हांफ जाती है सांसे...

नैनीताल: 'बूढ़ी' बसें, थोड़ी दूरी पर ही हांफ जाती है सांसे...

नैनीताल, अमृत विचार। उत्तराखंड परिवहन निगम की 80 प्रतिशत बसों की उम्र पूरी हो जाने के बाद भी बसों को पहाड़ी रूटों मे दौड़ाया जा रहा है। अधिकतर बसें चढ़ाई चढ़ने मे हांफ रही हैं। बावजूद निगम प्रशासन उन्हें पर्वतीय रूटों मे जबरन धकेल रहा है।

निगम प्रशासन के मानकों के अनुसार बसों को पर्वतीय रूटों मे सिर्फ सात साल और सात लाख किलोमीटर ही चलाये जाने का नियम है। हल्द्वानी व काठगोदाम डिपो से रोजाना रोडवेज की तीन दर्जन बसे नैनीताल व दो दर्जन अन्य पहाड़ी रूटों में संचालन होता है।

नैनीताल रुट मे सर्वाधिक बसों का संचालन किया जाता है वहीं सवारियों का दबाव बढ़ने पर अतिरिक्त बसे लगाई जाती हैं। नतीजन पुरानी व खस्ताहाल हो चुकी बसें आधे रास्ते मे ही खराब हो रही हैं। जिससे यात्रियों को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

पहाड़ी रूटों मे रोडवेज बस के संचालन से पूर्व फोरमैन द्वारा बसों की फिटनस की जाती है बावजूद बसें आधे रास्ते मे ही दम तोड़ देती हैं। लंबे रुट की सवारियों को आधे रास्ते में बस खराब होने की दशा में काफी फजीहत झेलनी पड़ती है। हल्द्वानी व काठगोदाम डिपो मे 2016 के बाद अब तक नई बसें न आने से निगम प्रशासन भी पुरानी बसों को पहाड़ी रूटों मे दौड़ाने को मजबूर है। रोडवेज चालक भी पुरानी खस्ताहाल हो चुकी बसों मे सवारियां ढोने को मजबूर है।

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