अमरोहा : देश की आजादी की जंग का जामा मस्जिद से है विशेष नाता
सम्मेलन में 500 उलमा ने बुलंद की थी आवाज, जंग में लड़कर अंग्रेजों को झुका दिया

अमरोहा शहर की जामा मस्जिद।
सलमान खान, अमृत विचार। आजादी दिलाने में अमरोहा की बड़ी भूमिका रही थी। जिसका रिकार्ड इतिहास के पन्नों में दर्ज है। 93 साल पहले शहर की जामा मस्जिद में आयोजित सम्मलेन में 500 उलमा ने आजादी के लिए आवाज बुलंद की थी। यह सम्मेलन आजादी दिलाने में मील का पत्थर साबित हुआ। बाद में उलमा देश के अलग-अगल हिस्सों में पहुंचकर आजादी की जंग से जुड़े थे। इन सभी ने आजादी के बाद ही दम लिया था। इसमें कुछ उलमा शहीद भी हुए थे। अमरोहा के संघर्ष वाले दस्तावेजों में इसका इतिहास दर्ज है।
जामा मस्जिद के मुफ्ती हमजा बताते हैं कि 1930 में देश अंग्रेजी हुकूमत के डरावने जुल्म झेल रहा था। हर तरफ आजादी की मांग उठ रही थी। उस समय शहर की जामा मस्जिद स्थित मदरसा इस्लामिया अरबिया में दस्तारबंदी का कार्यक्रम हुआ था। इसमें जमीअत-ए-उलमा हिंद के लोगों ने आजादी के लिए जामा मस्जिद में तीन दिवसीय सम्मेलन कराने की बात शहर के लोगों के बीच रखी थी। मदरसे के मोहतमिम मोअज्जम हसनैन ने सम्मेलन के आयोजन को स्वीकार किया। शहर के लोगों ने तीन दिवसीय सम्मेलन में आने वाले मेहमानों का स्वागत किया और उनके लिए घरों में खाना बनवाया गया।
सम्मेलन में मौलाना अहमद हुसैन मदनी, मुफ्ती किफायतुल्लाह, मौलाना अहमद सईद, सैयद अताउल्लाह बुखारी, मौलाना मोइनुद्दीन अजमेरी, मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी, मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी, मौलाना हिफ्जुर्रहमान, मौलाना महमुदूल हसन देवबंदी, मौलाना कासिम शाह नानौतवी, मुफ्ती नसीम अहमद फरीदी, मौलाना मियां रिजवी, हाफिज अब्दुर रहमान, मौलाना एजाज हुसैन ने हिस्सा लिया था।
आजादी के दीवाने उलमा शहरों में पहुंचे और अंग्रेजों से देश को आजाद कराने की जंग छेड़ी। कई बार आजादी के लिए जंग हुई। आखिरकार अंग्रेजों को आजादी के दिवानों के आगे झुकना पड़ा और 17 साल बाद 1947 में देश को आजादी मिली। हर साल इस राष्ट्रीय पर्व पर इस बात की जिक्र होता है। इसीलिए इस जामा मस्जिद को आजादी की जंग के खास स्थान के रूप में भी पहचाना जाता है।
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