विधायक जवाहर यादव हत्याकांड: करवरिया बंधुओं को नहीं मिली राहत, जमानत याचिका खारिज

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट में विधायक जवाहर यादव हत्याकांड में दोषी पाए गए उदयभान करवरिया की अल्पकालिक जमानत खारिज करते हुए उन्हें तुरंत आगामी 12 मई तक जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय और न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की खंडपीठ ने करवरिया बंधुओं की जमानत याचिका खारिज करते हुए दिया। मालूम हो कि उदय भान करवरिया सूरज भान करवरिया कपिल मुनि करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू के अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि वे 8 साल से अधिक समय से जेल में निरूद्ध हैं और विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि वह रिहा होने के हकदार हैं, लेकिन गुण-दोष के आधार पर अपील पर बहस करने से कोर्ट ने इंकार कर दिया और केवल जमानत आवेदनों पर बहस करने के लिए ही अनुमति दी। इसके साथ ही कोर्ट ने इस बात से भी इनकार किया कि बीमारियों से पीड़ित होने के तर्क को उन्हें जमानत पर रिहा करने का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता है।
कोर्ट ने अपराध की गंभीरता और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य को देखकर इस मामले को जमानत के लिए उपयुक्त न मानते हुए अपीलकर्ताओं के जमानत आवेदन खारिज कर दिए। गौरतलब है कि सत्र न्यायाधीश, इलाहाबाद ने अभियोजन पक्ष के 18 गवाहों के साथ-साथ बचाव पक्ष के 156 गवाहों पर विचार करने और रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद सभी अपीलकर्ताओं को आईपीसी की विभिन्न धाराओं व आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 के तहत दोषी ठहराया।
प्राथमिकी के अनुसार 13 अगस्त 1996 की रात जवाहर यादव उर्फ पंडित जी अपने कार्यालय से कार द्वारा अपने घर के लिए निकले। जानकारी के अनुसार सभी हमलावर उनका पीछा करने लगे। मौका देखकर हमलावरों की गाड़ी अचानक पंडित जी की कार के सामने आकर रुक गई। उसके बाद रामचंद्र त्रिपाठी राइफल लेकर कुछ अन्य लोगों के साथ जीप से उतरे उनके साथ ही करवरिया बंधु भी अपनी गाड़ी से एके-47 लेकर निकले और पंडित जी की कार पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
फायरिंग में पंडित जी सहित उनके साथियों को भी कई गोलियां लगीं और एक अन्य अज्ञात व्यक्ति को भी गोली लगने की बात कही गई है। प्राथमिकी में यह भी आरोप लगाया गया है कि करवरिया बंधुओं का इतना भय था कि उनके खिलाफ किसी ने भी कुछ कहने की हिम्मत नहीं की। वहीं दूसरी तरफ रामचंद्र त्रिपाठी के मामले में उनके अधिवक्ता ने कोर्ट को अवगत कराया कि अपीलकर्ता उच्च रक्तचाप, मस्तिष्क आघात, लीवर तथा पक्षाघात जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित है। वह 2013 से आर्थोपेडिक और न्यूरोलॉजिकल डॉक्टरों से इलाज करवा रहा है।
अपीलकर्ता को उसके इलाज के लिए 30 दिनों की अल्पावधि जमानत भी दी गई थी। अवधि की समाप्ति के बाद अपीलकर्ता ने वर्ष 2022 में आत्मसमर्पण कर दिया। याची के अधिवक्ता ने यह भी बताया कि एम्स, रायबरेली ने अपीलकर्ता को एम्स, दिल्ली में इलाज कराने की सलाह दी है।
उक्त सभी तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अपराधी भी मानव है, इसलिए मानवता के आधार पर आईजी, जेल, यूपी सहित जेल अधिकारियों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपीलकर्ता रामचंद्र त्रिपाठी के इलाज के लिए एम्स, दिल्ली जैसे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में उन्हें भर्ती कराएं, साथ ही वरिष्ठ अधीक्षक, केंद्रीय कारागार, नैनी, प्रयागराज सुनवाई की अगली तिथि पर या उससे पहले न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे और अगर रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जाती है तो संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित होने के लिए समन द्वारा बाध्य किया जाएगा।