मुरादाबाद : पीतलनगरी के मतदाताओं ने दिए बड़े उलट-फेर के संकेत
धुरंधरों के बीच सिमटी महापौर पद की जंग, नए समीकरण तय करेंगे महानगर के महापौर का भाग्य
श्रीशचंद्र मिश्र/मुरादाबाद, अमृत विचार। पीतलनगरी में निकाय चुनाव दिलचस्प दौर दिखा। मतदाताओं ने बड़े उलट-फेर के संकेत दिए। ऐसे संकेत से महापौर के कई प्रत्याशी बेचैन हो गए हैं। यूं कहें कि उनके चुनावी तोते परिणाम सामने आने से पहले ही उड़ने लगे हैं। महापौर पद की जंग दो पार्टियों के बीच सिमट कर रह गई है। वैसे चुनावी ऊंट कौन सी करवट लेगा, यह तो परिणाम तय करेगा, लेकिन अब यह बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि मतदाताओं के एक बड़े धड़े की अप्रत्याशित एकजुटता ने यहां कांग्रेस को नई संजीवनी दी है।
पीतलनगरी में मुस्लिम मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग है। मुरादाबाद सपाई राजनीति का एक बड़ा गढ़ है। मोदी व योगी लहर में भी जिले में समाजवादी पार्टी के पांच विधायक हैं। सपा के सभी विधायक मुस्लिम समाज से हैं। जबकि भाजपाई राजनीति पर गौर करें तो सदर विधायक के अलावा महापौर की कुर्सी ही सिर्फ पार्टी के पास है। यही वजह है कि भारतीय जनता पार्टी ने महापौर के चुनाव को संजीदगी के साथ लिया। प्रदेश के मुख्यमंत्री के योगी आदित्यनाथ को महापौर की कुर्सी बचाए रखने की चाह में यहां आना पड़ा। विधान सभा व लोक सभा चुनावों पर गौर करें तो भाजपा की सीधी लड़ाई सपाइयों से रही। लेकिन, मेयर पद के चुनाव में हालात बिल्कुल उलट आंके गए हैं। सपा ने मेयर पद के लिए रईसुद्दीन को अपना उम्मीदवार चुना।
भाजपा ने निवर्तमान मेयर विनोद अग्रवाल पर दांव लगाया। यहां की राजनीति का नब्ज समझने वालों के दावों पर गौर करें तो मेयर के चुनाव में सपा की राजनीति ने करवट ले ली है। सूत्रों की मानें तो मुगलपुरा, गलशहीद, कटघर, नागफनी व मझोला थाना क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में खुलकर मतदान किया। मुस्लिम मतदाताओं का चौंकाने वाला रुख सपाई राजनीति के लिए एक बड़ा व अशुभ संकेत है। निकाय चुनाव में मतदान के दिन ऐसी संभावनाओं को दबी जुबान ही सही सभी ने एक सुर में स्वीकारा। बसपा ने योजनाबद्ध तरीके से मोहम्मद यामीन को मैदान में उतार दिया। यामीन पार्टी के परंपरागत मतों के साथ स्वजातीय मतों को लेकर संजीदा रहे। जानकार कहते है कि इस समीकरण पर भी मेयर पद का निर्णय निर्भर करेगा। सच तो यह कि सपा उम्मीदवार की लड़ाई की नई समीक्षा शुरू है।
निकाय चुनाव में बागी हो गए सपाई
कहते हैं, चेहरे की रौनक व उस पर चस्पा धुंध पर्दे के पीछे की तस्वीर को आइने की तरह साफ कर देती है। कुछ ऐसा ही नजारा निकाय चुनाव के दौरान गुरुवार को यहां देखने को मिला। कांग्रेस प्रत्याशी रिजवान कुरैशी के चेहरे की चमक व उनके द्वारा पुलिसकर्मियों पर लगाए जा रहे पूर्वाग्रही होने के आरोप कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। राजनीतिक रूप से सपा प्रत्याशी उतने मुखर नहीं दिखे, जितने की कांग्रेस के रिजवान कुरैशी। रिजवान कुरैशी इसलिए भी आत्मविश्वास से लबरेज रहे, क्योंकि सपा का एक बड़ा खेमा पर्दे के पीछे उनके साथ खड़ा रहा। यही वजह भी है कि रिजवान कुरैशी महापौर पद की लड़ाई में खुद को आगे बताने से भी नहीं चूक रहे। हालांकि भाजपा कार्यकर्ताओं को भी अपने मजबूत किले के न टूटने का यकीन है। मेयर पद पर भाजपा व कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर होने का अनुमान लगाते हुए भाजपाई अंतत: अपनी ही जीत होने का दावा कर रहे हैं।
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