Chaitra Navratri 2023 : अनुपमा के खजाने में शैक्षिक डिग्री और ज्ञान का भंडार
शिक्षा और संस्कार के साथ खुद को राष्ट्र निर्माण में लगाकर सार्थकता साबित करें महिलाएं
मुरादाबाद, अमृत विचार। महिला परिवार की नींव है। महिला-पुरुष के प्राकृतिक अंतर को पाटने की कोशिश करने की बजाय महिलाओं को खुद की शिक्षा, संस्कार के दम पर राष्ट्र निर्माण में योग्य नागरिक बनकर अपनी सार्थकता साबित करनी चाहिए। यह संदेश है जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉ. अनुपमा शांडिल्य का। जिनके खजाने में बेशुमार शैक्षिक डिग्रियां और ज्ञान का भंडार है।
इस सकारात्मक सोच के साथ हर दिन खुद को साबित करते हुए समाज को भी राह दिखाती हैं महिला सशक्तिकरण, बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉ. अनुपमा शांडिल्य। सेना के पारिवारिक पृष्ठभूमि से जुड़ीं अनुपमा के खजाने में बेशुमार शैक्षिक डिग्रियां हैं तो ज्ञान का भंडार भी। इसकी झलक प्रशासनिक सेमिनार और बड़े कार्यक्रमों के आयोजन में भी दिखती है। हर बड़े आयोजन के संचालन का दायित्व उनके कंधे पर देकर अधिकारी बेफिक्र होते हैं।
ज्ञान व ओजस्वी वाणी की धनी अनुपमा का जन्म मुजफ्फरनगर में हुआ। लेकिन, प्रारंभिक से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई मेरठ में हुई। वह मेरठ विश्वविद्यालय से परास्नातक में गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उन्होंने 1993 में यहीं से एमफिल और 1996 में पीएचडी की। उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में शोधपत्र पढ़ने का सम्मान पत्र मिला है। 1999 में लोकसेवा आयोग की परीक्षा में प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल पाने के बाद उन्होंने सरकारी सेवा की शुरुआत सुल्तानपुर से जिला कार्यक्रम अधिकारी के रूप में की। यहां से सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, भदोही होते हुए वह मुरादाबाद आईं और डीपीओ के पद पर रहते महिला सशक्तिकरण विभाग की सेवा के साथ गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार से स्वस्थ बना रही हैं।
सार्वजनिक मंचों पर दिखता है ज्ञान व अनुभव
उनके ज्ञान और अनुभव का लाभ विभागीय कर्मचारियों के साथ ही सरकार की योजनाओं और परियोजनाओं के क्रियान्वयन और विशिष्ट अतिथियों के सामने उसके सुनियोजित और जीवंत प्रस्तुति से भी दिखता है। ससुराल में पति, ससुर सभी शैक्षणिक कार्य में हैं। उत्तराखंड की शिक्षा नगरी रुड़की में ससुराल होने से शिक्षा की राह को और मजबूती मिली। उनका मानना है कि महिलाओं को कुछ और सोचने की बजाय खुद को शिक्षा और संस्कार से राष्ट्र निर्माण में साबित करना चाहिए।
समाज और परिवार से अलग नहीं नारी
नारी शक्तिकरण और महिलाओं के अधिकारों की पक्षधर अनुपमा कहती हैं कि महिला का अस्तित्व समाज व परिवार से अलग नहीं है। इसलिए उच्च शिक्षित होने का अर्थ यह नहीं कि हम सबसे परे हैं। बल्कि महिलाओं का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि वह सृजन की प्रतिमूर्ति, ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट प्रतिछाया है। इसकी सार्थकता तभी है जब नारी सृजन की सोच के साथ सभी को जोड़कर आगे बढ़े। अपने अधिकार और कर्तव्य में सामंजस्य रखना सभी का फर्ज है। नौकरी के कर्तव्य के साथ ही वह अपने परिवार के लिए पूरा समय देती हैं।
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