जनहित याचिकाएं

जनहित याचिकाएं

जनहित याचिकाएं अब कई मामलों में ‘प्रचार हित याचिका’ बन गई हैं, जिसका उद्देश्य केवल प्रचार प्राप्त करना है। सुप्रीम कोर्ट ने एक पीआईएल की सुनवाई करते हुए महसूस किया कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को निशाना बनाने के लिए तेजी से जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग किया जा रहा है। अदालत में दायर याचिका में मुंबई के वर्ली इलाक़े में एक भूखंड के पुनर्विकास को चुनौती दी गई थी। 

जनहित याचिका (पीआईएल) न्यायिक प्रणाली तक पहुंचने में गरीबों की मदद करने का बेहतर तरीका है, इसे नेक विचारों के साथ शुरू किया गया था। यानी पीआईएल का मुख्य मकसद यह है कि बड़ी संख्या में वंचित लोगों के संवैधानिक या क़ानूनी अधिकारों का उल्लंघन न हो और यदि ऐसा होता है तो न्यायपालिका उसमें दख़ल दे। पीआईएल की अवधारणा को भारतीय न्यायिक प्रणाली ने अमेरिकी विधिशास्त्र से लिया है। 

जैसा कि अदालतों द्वारा स्थापित किया गया है कि इस तरह की याचिकाएं केवल उन्हीं मामलों तक सीमित हैं। जिन्हें न्यायपालिका के समक्ष ज़ल्दी लाना हो और जिनका समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता हो। लेकिन समय के साथ-साथ जनहित याचिकाओं का वास्तविक मकसद भटक गया। ध्यान रहे भारत आर्थिक प्रगति के पथ पर तेज़ी से अग्रसर है। 

भारत की इस प्रगति में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की बहुत बड़ी भूमिका है और इन परियोजनाओं के रास्ते में आने वाला कोई भी रोड़ा देश की आर्थिक वृद्धि को धीमा कर देता है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि जनहित याचिकाओं को दायर करने के पीछे भारत की प्रगति को रोकने की मांग करने वाले विदेशी लोगों की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में अदालत का कर्तव्य भूसी से अनाज को अलग करना होता है और अगर अदालत लड़खड़ाती है तो इससे अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा। 

भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल दिवंगत सोली सोराबजी ने कहा था कि जनहित याचिका दायर करने वालों को अदालत के समक्ष वचन देना चाहिए कि यदि जनहित याचिकाओं को आखिर में खारिज कर दिया जाता है, तो याचिकाकर्ता पीआईएल से होने वाले नुकसान की भरपाई करेगा। अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पहले से ही अधिक है और जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग बढ़ रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी एक याचिकाकर्ता को पर्याप्त शोध के बिना पीआईएल दायर करने के लिए चेतावनी दी थी। कहा जा सकता है कि पीआईएल  का अत्यधिक उपोयग और दुरुपयोग इसे अप्रभावी बना सकता है। इसलिए पीआईएल के संदर्भ में अब पुनर्विचार और पुनर्गठन की आवश्यकता है।

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