जो प्रेम कविताएं नहीं लिखता वह कवि नहीं हो सकता: स्वप्निल श्रीवास्तव

कवियत्री गरिमा सिंह द्वारा लिखित "चाक पे माटी सा मन" का विमोचन

जो प्रेम कविताएं नहीं लिखता वह कवि नहीं हो सकता: स्वप्निल श्रीवास्तव

अमृत विचार, अयोध्या। जनवादी लेखक संघ के की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में युवा कवियत्री गरिमा सिंह के कविता-संग्रह ‘चाक पे माटी सा मन’ का विमोचन हुआ। अध्यक्षता कर रहे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, केदार सम्मान, रघुपति सहाय सम्मान और रूस के पुश्किन सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि गरिमा सिंह का यह संग्रह पूरी परिपक्वता और लेखकीय जिम्मेदारी से लिखा गया है। उन्होंने कहा कि पहले संग्रह का कच्चापन ही उसकी खासियत होती है। 

उन्होंने कहा कि जो प्रेम कविताएँ नहीं लिखता वह कवि नहीं हो सकता है। रोमानियत जीवन का व्यापक भाव है। वरिष्ठ आलोचक रघुवंशमणि ने कहा गरिमा सिंह के संग्रह की प्रतिनिधि कविता ‘चाक है पे माटी सा मन’ में जिस चाक का संदर्भ है वह स्त्री के विरोध में सदियों से चली आ रही सामाजिक विषमताओं का प्रतीक है। मुख्य अतिथि और जनवादी लेखक संघ के सचिव प्रो. नलिन रंजन सिंह ने कहा कि इस संग्रह में चाक और माटी जैसे प्रतीक काव्यात्मक बुनावट को स्पष्ट करते हैं। 

सचिव डॉ. विशाल श्रीवास्तव, कवयित्री ऊष्मा सजल, शायर मुज़म्मिल फिदा ने भी संग्रह पर विचार रखे। कवयित्री गरिमा सिंह ने कहा कि यह मेरा पहला संग्रह है, जिसमें समाज के विविध पक्षों पर अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। सदस्य सत्यभान सिंह जनवादी ने सबका स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन  बृजेश मौर्य द्वारा किया गया। 

कार्यक्रम में क्रांतिकारियों के चित्र भेंट कर अतिथियों का स्वागत संगठन के सदस्यों धीरज द्विवेदी, अखिलेश सिंह, शिवानी, रेनू तिवारी,साधना सिंह एवं बाल किशन द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में पत्रकार सुमन गुप्ता, साहित्यकार आरडी आनंद, आशाराम जागरथ, डॉ. परेश पाण्डेय, शेर बहादुर शेर, एसएन बागी, अतीक अहमद, आकाश गुप्ता, विन्ध्यमणि त्रिपाठी, लेखिका स्वदेश रश्मि, राजीव श्रीवास्तव, आरएन कबीर, बालकिशन, रामदास यादव, साधना सिंह समेत तमाम साहित्यकार और गणमान्य नागरिक मौजूद रहे।

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