Himachal Election: हिमाचल प्रदेश में 70 वर्षों तक कांग्रेस का राज, भाजपा ने तोड़ा वर्चस्व

Himachal Election: हिमाचल प्रदेश में 70 वर्षों तक कांग्रेस का राज, भाजपा ने तोड़ा वर्चस्व

शिमला। हिमाचल प्रदेश के लगभग 70 वर्षों के राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है यानी इस पार्टी ने राज्य में सर्वाधिक समय तक शासन किया है लेकिन भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के राजनीतिक उद्गम के बाद यह परिपाटी टूट गई। राज्य की चुनावी राजनीति के इतिहास पर नज़र डालें तो हिमाचल प्रदेश को छह अलग-अलग मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। ये क्रमवार सर्वश्री यशवंत सिंह परमार, रामलाल ठाकुर, शांता कुमार, वीरभद्र सिंह, प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर हैं।

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इनमें सर्वश्री यशवंत सिंह परमार, रामलाल ठाकुर और वीरभद्र सिंह कांग्रेस से तथा शांता कुमार-जनता पार्टी तथा प्रेम कुमार धूमल और जयराम ठाकुर भाजपा सरकारों के मुख्यमंत्री रहे। हिमाचल प्रदेश 15 अप्रैल 1948 को मुख्य आयुक्त शासित राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। 26 जनवरी 1950 में जब देश में गणतंत्र लागू हुआ तो हिमाचल प्रदेश को '' श्रेणी के राज्य का दर्जा मिला। इसके बाद राज्य में पहली बार वर्ष 1952 में विधानसभा चुनाव हुये। उस समय राज्य में 36 विधानसभा सीटें थीं। चुनाव मैदान में कांग्रेस ने 35, किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 22 और अनुसूचित जनजाति महासंघ तथा निर्दलीय उम्मीदवार उतरे।

इनमें से कांग्रेस ने 24, किसान मजदूर पार्टी से तीन और अनुसूचित महासंघ ने एक सीट पर जीत हासिल की। इस चुनाव में आठ निर्दलीय भी विजयी रहे। बहुमत के आधार पर कांग्रेस की राज्य में पहली सरकार बनी जिसका नेतृत्च बतौर मुख्यमंत्री परमार ने किया। उनकी सरकार आठ मार्च 1952 से 31 अक्तूबर 1956 तक यानी चार वर्ष 237 दिन चली क्योंकि उसी समय विधानसभा भंग कर हिमाचल प्रदेश को केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। यह दर्जा वर्ष 1963 तक रहा।

बाद में हिमाचल प्रदेश को विधानसभा के साथ केंद्र शासित राज्य का दर्जा मिला तथा परमार ने केंद्र शासित राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में एक जुलाई 1963 से चार मार्च 1967 तक इसकी कमान सम्भाली। वर्ष 1967 में राज्य विधानसभा की सीटें बढ़ कर 60 हो गईं तथा इनके लिये हुये चुनाव में कांग्रेस ने 34 पर विजय हासिल की जो बहुमत के आंकड़े से तीन अधिक थीं। भारतीय जनसंघ ने राज्य में पहली बार चुनाव लड़ा और सात सीटें जीतीं।

दो सीटें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के खाते में गईं और स्वतंत्र पार्टी को एक सीट मिली। सोलह निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव जीतने में सफल रहे। परमार इस तरह तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। वह इस पद पर चार मार्च 1967 से लेकर 25 जनवरी 1971 तक तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। वह इसके बाद 25 जनवरी 1971 से लेकर दस मार्च 1972 तक भी कार्यवाहक मुख्यमंत्री रहे।

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