साउथ अफ्रीका में बढ़े पिटबुल कुत्तों के जानलेवा हमले, बैन लगाए जाने की मांग की

सैंड्रा स्वार्ट एक दक्षिण अफ्रीकी इतिहासकार हैं जो पालतू कुत्तों के इतिहास की जानकार हैं। उनसे इन मुद्दों पर अपनी कुछ बात रखने को कहा।

साउथ अफ्रीका में बढ़े पिटबुल कुत्तों के जानलेवा हमले, बैन लगाए जाने की मांग की

स्टेलनबोश (दक्षिण अफ्रीका)। मनुष्यों पर घातक हमलों की कई घटनाओं के बाद दक्षिण अफ्रीका में पिटबुल नस्ल के कुत्ते खबरों में रहे हैं। इन जानवरों पर भी बदले की भावना से हमले किये गये हैं और राजनीतिज्ञों ने इन पर प्रतिबंध लगाये जाने की मांग की है। अश्वेत दक्षिण अफ्रीकी लोगों को डराने और उन पर हमला करने के लिए उनके श्वेत मालिकों द्वारा इन कुत्तों का इस्तेमाल किये जाने की खबरें भी आई हैं। एक नस्लवादी घटना उस वक्त चर्चा में आई, जब एक व्यक्ति ने इस प्रतिबंध की मांग पर रोष जताया।

सैंड्रा स्वार्ट एक दक्षिण अफ्रीकी इतिहासकार हैं जो पालतू कुत्तों के इतिहास की जानकार हैं। उनसे इन मुद्दों पर अपनी कुछ बात रखने को कहा। क्या पिटबुल एक खतरनाक कुत्ता है, या उसे बलि का बकरा बनाया जा रहा है? दोनों ही बातें है। इस समय एक सामाजिक दहशत के साथ वास्तविक संकट का सामना कर रहे हैं। हमले एक वास्‍तविक समस्‍या है और इसे हल करने के लिए हमें इतिहास से सीख लेनी चाहिए। 

इतिहास से हमें पता चलता है कि एक सामाजिक दहशत के खतरे दो गुना हैं: जबरदस्त प्रतिक्रिया (सार्वजनिक आक्रोश को शांत करने के लिए) और कम प्रतिक्रिया। हमें सबसे पहले पिटबुल के इतिहास को समझने की जरूरत है। इस नस्ल के कुत्ते मूल रूप से इंग्लैंड में पाले गए थे और इसके बाद 1970 के दशक से इनका दक्षिण अफ्रीका में आयात किये जाने लगा। इन कुत्तों का व्यवहार शायद 60 प्रतिशत अनुवांशिक है लेकिन याद रखें, कुत्ते का व्यवहार बदलता रहता है। प्रशिक्षण से काफी हद तक इनके व्यवहार में बदलावा लाया जाता है, खासकर तीन से 12 सप्ताह के बीच। कुछ पालतू जानवर ऐसे होते हैं जिनका व्यवहार आक्रामक नहीं होता है। लेकिन कुत्ते को पालने वाला यदि कोई व्यक्ति चिंतित है (और उन्हें होना भी चाहिए), तो उन्हें ऐसे व्यक्ति से संपर्क करना चाहिए जो कुत्तों के व्यवहार को बेहतर तरीके से समझते हैं। 

हम इतिहास से क्या सीख सकते हैं?
अब जो कुछ भी फैसला किया जाये, जनता को यह महसूस करना चाहिए कि पहले अन्य नस्लों को भी दक्षिण अफ्रीकी समाज के लिए बहुत ही क्रूर माना जाता था। 1920 के दशक में, जर्मन शेफर्ड नस्ल के कुत्ते को भी खतरनाक माना जाता। 1983 की सर्दियों में, जब पारो शहर ने रॉटविलर, डोबर्मन, बुल टेरियर्स और मास्टिफ नस्ल के कुत्तों पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई, तो विरोध हुआ था।

हालांकि, पशु चिकित्सकों ने यह स्पष्ट किया है कि कुत्तों द्वारा काटे जाने की ज्यादातर घटनाओं के लिए लैब्राडोर और पेकिनीज नस्ल के कुत्ते जिम्मेदार थे। वास्तव में, कोई भी खतरनाक नस्ल का कुत्ता वास्तव में मानव को नुकसान पहुंचा सकता है। यह अवधारणा लगभग एक सदी से है - 1929 से, जब ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों ने जर्मन शेफर्ड पर प्रतिबंध लगा दिया था। ब्रिटेन ने 1980 के दशक में कई हमलों के बाद 1991 में पिटबुल पर प्रतिबंध लगाने का कानून लागू किया, लेकिन कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं की संख्या वही रही। याद रखें, ‘‘पिटबुल’’ स्पष्ट रूप से परिभाषित अनुवांशिक श्रेणी नहीं है। बहुत सारी धारणाएं है। अगर कल पिटबुल पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उन्हें तुरंत मारने पर ध्यान केंद्रित किया गया, तो कई निर्दोष कुत्तों को अनावश्यक रूप से मार दिया जाएगा। यह एक नैतिक आक्रोश होगा और व्यर्थ की कवायद होगी, क्योंकि एक प्रतिबंधित नस्ल का नाम बदलकर कुछ और रखा जा सकता है और खतरा बना रह सकता है।

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