देहरादून: मानव वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम को सीटीआर में शुरू होगा प्रोजेक्ट

देहरादून: मानव वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम को सीटीआर में शुरू होगा प्रोजेक्ट

हल्द्वानी/देहरादून, अमृत विचार। शासन मानव वन्यजीव संघर्ष पर नियंत्रण के लिए तत्पर है। इसी क्रम में अपर मुख्य सचिव आनंदवर्द्धन ने जलागम परियोजना के अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने कॉर्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के पास पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने और अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के निर्देश दिए हैं। 

अपर मुख्य सचिव आनंदवर्द्धन ने सोमवार को सचिवालय में जलागम परियोजना अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम के पायलट प्रोजेक्ट के तहत पांच गांवों को चिन्हित कर प्रभावी समाधानों के क्रियान्वयन के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और राजाजी टाइगर रिजर्व के आसपास के प्रभावित गांवों को प्रोजेक्ट में शामिल किया जा सकता है। प्रोजेक्ट के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के पैटर्न का अध्ययन, क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रति स्थानीय लोगों का रूझान व धारणाओं, सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का डॉक्यूमेंटेशन करने के निर्देश दिए। उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियत्रित करने के लिए सामुदायिक भागीदारी, ग्राम पंचायतों की भूमिका तथा स्थानीय लोगों के सहयोग बढ़ाने को भी कहा। अपर मुख्य सचिव ने कहा कि संघर्ष नियंत्रण के लिए माइक्रो प्लान बनाने और लागू करने की जरूरत है।  

इस मौके पर मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं से पलायन से आबादी का कम घनत्व, एलपीजी सिलेंडरों की त्वरित आपूर्ति सेवा का अभाव, सड़कों में लाइटें नहीं चालू होना, पालतू पशुओं की लंबी अवधि तक चराई,  गांवों की खाली एवं बंजर जमीनों पर लैंटाना, बिच्छू घास, काला घास, गाजर घास के उगने से जंगली जानवरों को छुपने की जगह मिलना जैसे कारणों के समाधानों पर भी चर्चा हुई।

पौड़ी गढ़वाल में चल रहा है प्रोजेक्ट
जलागम परियोजना के अधिकारियों ने जानकारी दी कि मानव-वन्य जीवन संघर्ष की रोकथाम को अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल तथा पौड़ी गढ़वाल में एक-एक प्रोजेक्ट शुरू किया जाएगा। फिलहाल इस तरह का प्रोजेक्ट पौड़ी गढ़वाल जनपद में संचालित है। इसमें कॉर्बेट टाइगर रिजर्व व राजाजी टाइगर रिजर्व के कुछ क्षेत्र शामिल हैं। सर्वाधिक मानव-वन्यजीव संघर्षो वाले गांवों की पहचान की गई है। इन गांवों में गंगाभोगपुर, किमसर, देवराना, धारकोट, अमोला, तचिया, रामजीवाला, केस्था, गुमा, कांडी, दुगड्डा में स्थित किमुसेरा, सैलानी, पुलिंडा, दुराताल तथा कलेथ शामिल हैं।

जंगली सुअर और भालू फसलों को पहुंचा रहे नुकसान
भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने बताया कि एस सर्वे के मुताबिक जंगली सुअर और भालू फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित गांवों में सर्वे से पता चला कि ग्रामीणों ने गेंहू का उत्पादन बंद कर दिया है। मडुआ, हल्दी, मिर्च का उत्पादन शुरू किया है। 50 प्रतिशत गांवों में सभी मौसमों में 60-80 प्रतिशत फसलें वन्यजीव नष्ट कर रहे हैं। इन गांवों की शत प्रतिशत आबादी का कहना हैकि यदि वन्यजीव फसलें नष्ट नहीं करें तो कृषि लाभकारी है। प्रभावित गांवों में कृषि का 50 प्रतिशत क्षेत्र बंजर पड़ा है।

बैठक में ये रहे मौजूद
बैठक में जलागम परियोजना निदेशक नवीन सिंह बरफाल, उपनिदेशक डॉ. एसके सिंह, डॉ. डीएस रावत, स्टेट टेक्नीकल कोआर्डिनेटर डॉ. जेसी पांडेय, डॉ. के रमेश, सीनियर टेक्नीकल ऑफिसर डॉ. मनोज अग्रवाल, रिसर्च इन्टर्न श्रुति, तोमाली मंडल, कंसलटेंट विकास वत्स आदि मौजूद थे।