कानपुर: वॉटर प्यूरिफिकेशन सिस्टम दूर करेगा यूरेनियम का खतरा, DMSRDE के सहयोग से विकसित हो रहा Mobile डीकांटैमिनेशन सिस्टम

शशांक शेखर भारद्वाज, कानपुर। पानी में दूषित कण, रसायन, जैविक कचरे के साथ ही यूरेनियम, रेडियम समेत अन्य घातक रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स मिलने की पुष्टि हो चुकी है। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। इसकी काट के लिए विशेषज्ञों ने तैयारी की। उत्तर प्रदेश वस्त्र एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआई), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), …
शशांक शेखर भारद्वाज, कानपुर। पानी में दूषित कण, रसायन, जैविक कचरे के साथ ही यूरेनियम, रेडियम समेत अन्य घातक रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स मिलने की पुष्टि हो चुकी है। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। इसकी काट के लिए विशेषज्ञों ने तैयारी की। उत्तर प्रदेश वस्त्र एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (यूपीटीटीआई), रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), रक्षा सामग्री और स्टोर अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (डीएमएसआरडीई) मिलकर मोबाइल वॉटर डीकांटैमिनेशन सिस्टम बनाने जा रहे हैं। यह बड़े स्तर पर तैयार किया जाएगा, जिसमें कई खूबियां रहेगी। बिजली की जरूरत नहीं पड़ेगी।
देश भर की नदियों, तालाब और भूमिगत जल में स्थाई और अस्थाई तौर पर घरों से निकली गंदगी मिल रही है। कई जगहों पर बिना शोधित सीवर और नाले के पानी को बहाया जा रहा है। मिल, कारखाने और कई टेनरियां चोरी छिपे अपशिष्ट पदार्थों को नाले में बहा देती हैं, जिससे पानी में बीओडी, सीओडी लेवल, पीएच का मान प्रभावित होता है। कई तरह के रसायन पानी के साथ घुल जाते हैं। यह जलीय जंतुओं के साथ ही पशु, पक्षियों और मनुष्यों के लिए हानिकारक हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय भूगर्भ जल विभाग समेत कई संस्थान अपनी जांच में इसकी पुष्टि कर चुके हैं।
जल प्रदूषण का सबसे बड़ा खतरा रेडियोएक्टिव एलिमेंट्स है।इसकी जांच आसानी से नहीं होती है। इस समस्या को देखते हुए यूपीटीटीआई के ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल के इंचार्ज प्रो.जेपी सिंह और डीएमएसआरडीई कानपुर के साइंटिस्ट डॉ.देवमलय रॉय मिल कर मोबाइल वॉटर डीकांटैमिनेशन सिस्टम तैयार करने जा रहे हैं। इसका प्रोटोटाइप प्रो.जेपी सिंह और उनकी टीम पहले ही बना चुकी है, लेकिन उसमें कई एडवांस तकनीक डाली जा रही है। यह सिस्टम केमिकल, बायोलॉजिकल और रेडियो पदार्थों को साफ कर सकेगा।
प्रो. जेपी सिंह ने बताया कि यह सिस्टम हौलो पोरस फाइबर तकनीक पर काम करेगा। इसमें पॉलीमर्स में कार्बन नैनो ट्यूब्स, नैनो मैटेरियल्स, 2डी और 3डी स्ट्रक्चर के फिलर्स का इस्तेमाल होगा। सामान्य आरओ और पानी के फिल्टर की तरह कैंडल का उपयोग नहीं किया जाएगा। विशेषज्ञों का दावा है कि यह प्यूरिफिकेशन सिस्टम पानी में मिलने वाले लाभदायक मिनरल्स को साफ नहीं करेगा। जिससे शरीर को मिनरल्स मिल सकेंगे। पानी में पाए जाने वाले घातक ई कोलाई बैक्टेरिया का साफ करने का दावा है। वहीं, सिस्टम को डेढ़ साल में विकसित करने की तैयारी है। इसको बनने के बाद डीआरडीओ में टेस्टिंग की जाएगी। कई तरह के छोटे और बड़े मॉडल बनाये जाएंगे।
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