Noida Twin Towers Demolition: इन चार के वार ना झेल पाई करप्शन की इमारत, इन्होंने लिखी नई इबारत

Noida Twin Towers Demolition:  इन चार के वार ना झेल पाई करप्शन की इमारत, इन्होंने लिखी नई इबारत

नई दिल्ली। 32 मंजिल की दो बहुमंजिला या 103 मीटर ऊंचे सुपरटेक ट्विन टावर्स (Twin Towers) को रविवार को जमींदोज कर दिया गया। इसको गिरानें के लिए 3,700 किलोग्राम विस्फोटक इस्तेमाल किया गया। दोनों टावर के निर्माण में अग्नि सुरक्षा नियमों समेत कई मानदंडों का उल्लंघन मिला था। अब लोग ये जानना चाहते हैं कि …

नई दिल्ली। 32 मंजिल की दो बहुमंजिला या 103 मीटर ऊंचे सुपरटेक ट्विन टावर्स (Twin Towers) को रविवार को जमींदोज कर दिया गया। इसको गिरानें के लिए 3,700 किलोग्राम विस्फोटक इस्तेमाल किया गया। दोनों टावर के निर्माण में अग्नि सुरक्षा नियमों समेत कई मानदंडों का उल्लंघन मिला था।

अब लोग ये जानना चाहते हैं कि आखिर इतनी बड़ी इमारत किसके वजह से गिर गई। तो चलिए आपको उन चारों शख्स के बार में बताते हैं जिनके कारण ये भष्ट्राचार की ऊंची इमारत ढह गई। इस अवैध टावर और नोएडा प्राधिकरण (Twin Towers) के खिलाफ चार लोगों ने लड़ाई लड़ी और जीत गए।

इन चार लोगों ने जीती जंग
ये चारों एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य हैं। संघ के अध्यक्ष उदय भान सिंह तेवतिया, सेवानिवृत्त रवि बजाज दोनों पूरी लड़ाई का नेतृत्व कर रहे थे। इसके साथ ही आयकर अधिकारी एसके शर्मा और एमके जैन थे। हालांकि बजाज ने बाद में एसोसिएशन छोड़ दिया था, वहीं जैन का पिछले साल कोरोना काल में निधन हो गया और तेवतिया और शर्मा अभी भी वेलफेयर एसोसिएशन में सक्रिय भूमिका निभाते आते आ रहे हैं।

ये सब कैसे शुरु हुआ?
रियल-एस्टेट अग्रणी सुपरटेक 2005 से अपनी जुड़वां टावर योजनाओं में लगातार संशोधन कर रहा था। वर्ष 2005 की योजना में ‘सेयेन’ नाम का एक टावर था, जिसमें एक बगीचे के साथ 14 मंजिलें थीं, जिसे अगले वर्ष संशोधित किया गया था। हालांकि 2009 में योजना को फिर से बदल दिया गया था, जिसमें बगीचे और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स को खत्म कर दिया गया और दो टावरों को शामिल किया गया था।

एपेक्स और साईन 40 मंजिलों इमारत (Twin Towers) बनाने की नींव रखी गई। इस योजना को 2012 में नोएडा प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित किया गया था लेकिन इसका निर्माण 2009 से चल रहा है। परियोजना के शुरुआती निर्माण ने बहुत सारे सवाल पैदा हुए और इसलिए वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्यों ने चल रहे निर्माण के लिए सवाल और स्पष्टीकरण पूछना शुरू कर दिया। हालांकि बिल्डर सदस्यों के साथ कुछ भी साझा करने का इच्छुक नहीं था।

कोर्ट में लड़ी लंबी लड़ाई
शर्मा ने बताया था कि उन्होंने एक साल तक मामले को आगे बढ़ाया लेकिन किसी ने उनकी या उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि केस लड़ने के दौरान उनके पास पैसे नहीं बचे थे और इसलिए कानूनी लड़ाई जारी रखने के लिए पैसे की जरूरत थी। उन्होंने उर्वन मंत्री, डीएम को एक पत्र भी लिखा लेकिन बेकार था क्योंकि उनकी तरफ से जवाब नहीं आया। जब सदस्यों ने अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया तो बिल्डर द्वारा पहले ही 13 मंजिलें बनाई जा चुकी थीं। अदालत जाने के बाद मुख्य मुद्दा धन की व्यवस्था और संग्रह करना था। फिर चारों लोगों ने सारी जिम्मेदारी ली और चंदा लेने के लिए घर-घर जाने लगे।

ट्रायल के दौरान पूरी यात्रा बिल्कुल भी आसान नहीं थी। ये चारों अनारक्षित टिकटों पर भारी भीड़-भाड़ वाली ट्रेनों और सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करता था। उस दौरान बहुत से लोग उन्हें इस मामले को छोड़ देने के लिए कहा लेकिन चारों लोगों ने अपनी लड़ाई जारी रखी। सभी लोगों को लगता था कि ये मामला एक रियल-एस्टेट बिल्डर के खिलाफ था। ऐसे में जान जाने की डर भी सताती रहती थी।

क्या अधिकारी और सुपरटेक की थी मीलिभगत?
सदस्यों ने एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के सुपरटेक पर भवन कानूनों का आरोप लगाया, जिसमें इमारतों के बीच न्यूनतम आवश्यक दूरी में कमी, आग के मानदंड और भवन की योजनाओं में निरंतर परिवर्तन, पार्किंग हटाने आदि शामिल थे। हालांकि बिल्डर ने एमराल्ड कोर्ट रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के एक नकली सदस्य को अदालत में पेश किया ताकि यह साबित किया जा सके कि एमराल्ड कोर्ट के निवासियों ने कभी कोई आपत्ति नहीं है। बजाज ने दावा किया कि प्राधिकरण और नोएडा के अधिकारी शुरू में बिल्डर के प्रति पक्षपाती थे। बजाज ने आगे कहा था कि सुपरटेक ने एक गैर-अधिकृत अधिकारी द्वारा ट्विन टावरों की संरचनात्मक सुरक्षा को सत्यापित किया।

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