मुरादाबाद : हिकमत उल्ला ने जगाई थी लोगों में आजादी की ललक, पूरे शहर में अंग्रेजों के खिलाफ लगाए थे पोस्टर
मुरादाबाद,अमृत विचार। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हाफिज हिकमत उल्ला का जन्म 10 जनवरी 1910 को हुआ था। वह हिंदू और मुस्लिम एकता और देशप्रेमी के तौर पर जाने जाते थे। जेल में उनके साथ रहे दाऊदयाल खन्ना उनके देहांत पर अपने कमांडरों के साथ कब्रिस्तान पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने हिकमत उल्ला की कब्र …
मुरादाबाद,अमृत विचार। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हाफिज हिकमत उल्ला का जन्म 10 जनवरी 1910 को हुआ था। वह हिंदू और मुस्लिम एकता और देशप्रेमी के तौर पर जाने जाते थे। जेल में उनके साथ रहे दाऊदयाल खन्ना उनके देहांत पर अपने कमांडरों के साथ कब्रिस्तान पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे।
उन्होंने हिकमत उल्ला की कब्र पर 40 दिन तक एक व्यक्ति से गुलाब के फूल चढ़वाए थे। यह थी एकता की पहचान और प्रेमभाव। उन्होंने साल 1941 में लोगों में स्वतंत्रता की अलख जगाई थी। पूरे शहर को अंग्रेजों के खिलाफ पोस्टरों से पाट दिया था। इसके बाद शहर में हंगामे और तेज हो गए थे। तोड़फोड़ होने लगी थी।
फिज हिकमत उल्ला खां ने गुप्त सभाओं से लोगों में स्वतंत्रता के प्रति उत्साह भरा। अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। इस दौरान उनकी बेटी बीमार पड़ गई। इलाज के अभाव में उनकी बेटी की मौत हो गई। तब उन्होंने बेटी के अंतिम संस्कार में शामिल होने व बेटी का अंतिम दर्शन करने के लिए अनुमति मांगी, मगर अंग्रेजों ने उन्हें जेल से बाहर नहीं निकलने दिया। अंग्रेजों की मनमानी के चलते वह अपनी बेटी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सके। उन्हें धारा 38/121 डीआईआर के तहत 25 फरवरी 1941 को आठ माह के सश्रम कारावास व 50 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई।
जुर्माना अदा न करने पर दो महीने अतिरिक्त कारावास दिया गया। इसके बाद उन्हें आठ मार्च 1941 को जिला कारागार मुरादाबाद से बरेली जेल शिफ्ट किया गया। वहां से चिनार कैंप जेल भेज दिया गया। वह 15 सितंबर 1941 को कैंप जेल से रिहा हो गए, मगर अंग्रेजों ने इसके बाद भी 1942 में उन्हें आठ महीने तक नजरबंद रखा।
आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर ताम्रपत्र से हुए थे सम्मानित
हाफिज हिकमत उल्ला के बेटे इशरत खान ने बताया कि आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें 15 सितंबर 1972 को ताम्रपत्र से सम्मानित किया। नौ अगस्त 1985 को उत्तर प्रदेश सरकार के आबकारी मंत्री राजा अजीत प्रसाद सिंह ने उन्हें सम्मानित किया। 26 अक्टूबर 1985 को हिकमत उल्ला खान का त्याग, तपस्या और आजादी के लिए कष्ट सहन करने के लिए शताब्दी समारोह में अभिनंदन किया गया। वह नागरिक सुरक्षा के सेक्टर वार्डन भी रहे।
समाज में समरसता लाने के लिए भी मिला था प्रशंसा पत्र
1971 में भारत-पाक युद्ध के समय समाज में समरसता लाने के के लिए उन्हें नागरिक सुरक्षा ने प्रशंसा पत्र प्रदान किया। नगर निगम ने उनकी की याद में उनके घर के पास से चौमुखा पुल तक के मार्ग का नाम संग्राम सेनानी हिकमत उल्ला खान रखा। कंपनी बाग स्थित शहीद स्मारक में लगी शिलापट में भी हिकमत उल्ला खां का नाम भी अंकित है। हिकमत उल्ला खान का देहांत 22 नवंबर 1992 को मुरादाबाद में हुआ।
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