…अपने मालिक की ‘जलती चिता’ में लगा दी थी छलांग, आखिर कौन था वो?

एक किताब में यह किस्सा पढ़ा था तो सोचा क्यों न ‘अमृत विचार’ के पाठकों को यह पढ़ाया जाए। ‘जलती चिता’…पढ़कर आप लोगों के मन में एक अजीब सी व्याकुलता होने लगी होगी। होना भी चाहिए… ये दोनों शब्द हैं ही ऐसे कि किसी की भी व्याकुलता बढ़ा दें। यह किस्सा एक महान व्यक्ति के …
एक किताब में यह किस्सा पढ़ा था तो सोचा क्यों न ‘अमृत विचार’ के पाठकों को यह पढ़ाया जाए। ‘जलती चिता’…पढ़कर आप लोगों के मन में एक अजीब सी व्याकुलता होने लगी होगी। होना भी चाहिए… ये दोनों शब्द हैं ही ऐसे कि किसी की भी व्याकुलता बढ़ा दें। यह किस्सा एक महान व्यक्ति के अंतिम जीवनकाल का है। जोकि शब्दों में बयां कर पाना असंभव है। यह किस्सा उस जीव का है जिसकी वफादारी के किस्से आप लोगों ने अक्सर सुने होंगे। आप लोगों के मन में व्याकुलता बढ़ती ही जा रही होगी कि आखिर कौन था वो?
वो…कौन था? चलिए इस जिज्ञासा को शांत कर देते हैं। आप लोगों ने छत्रपति शिवाजी का नाम तो सुना ही होगा। यह किस्सा उन्हीं के जीवनकाल से जुड़ा हुआ है। 03 अप्रैल सन् 1680 को छत्रपति वीर शिवाजी की मृत्यु हुई थी। हालांकि उनकी मृत्यु को लेकर मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनकी मृत्यु स्वभाविक थी, जबकि कुछ का कहना है कि उनको जहर देकर मारा गया था।
बात उस समय की है जब छत्रपति वीर शिवाजी का परंपरागत तरीके से अंतिम संस्कार किया जा रहा था। अचानक एक श्वान (कुत्ता) दौड़ता हुआ आया और शिवाजी की जलती हुई चिता पर कूद गया। क्यों? क्या कारण था? यह प्रश्न उठना मन में स्वाभाविक है। दरअसल, यह श्वान कोई साधारण श्वान नहीं था बल्कि यह शिवाजी का वफादार श्वान…वाघ्या था।
प्रश्न है कि उसने ऐसा क्यों किया? दरअसल, जब उसे यह पता चला कि मेरे मालिक इस दुनिया को छोड़कर चले गए हैं और अब मुझे एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा तो वह आपा खो बैठा। वह बदहवास सा हो गया। मालिक के साथ न रहने की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था। बस इसलिए उसने शिवाजी की जलती चिता पर छलांग लगाकर खुद को स्वाह कर लिया।
वाघ्या के इस प्रेम को सम्मान भी दिया गया। महाराष्ट्र के रायगढ़ के किले में छत्रपति वीर शिवाजी की समाधि के साथ उनके श्वान वाघ्या की भी मूर्ति बनवाई गई। आज भी वहां उसकी प्रतिमा मौजूद है। तो यह था वाघ्या और उसका समर्पण।
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