अल्मोड़ा: हटा कोरोना का ग्रहण, इस बार होगी आदि कैलाश यात्रा

अल्मोड़ा, अमृत विचार। देवभूमि उत्तराखंड को यूं तो प्रकृति ने खूब नेमतें बख्शी हैं लेकिन इन नेमतों में सीमांत जिले पिथौरागढ़ के धारचूला में स्थित ऊं पर्वत प्रकृति के किसी अनूठे चमत्कार से कम नहीं है। हर साल देस-विदेश के सैलानी प्रकृति के इस उपहार का दीदार करने कैलाश यात्रा के माध्यम से यहां पहुंचते …
अल्मोड़ा, अमृत विचार। देवभूमि उत्तराखंड को यूं तो प्रकृति ने खूब नेमतें बख्शी हैं लेकिन इन नेमतों में सीमांत जिले पिथौरागढ़ के धारचूला में स्थित ऊं पर्वत प्रकृति के किसी अनूठे चमत्कार से कम नहीं है। हर साल देस-विदेश के सैलानी प्रकृति के इस उपहार का दीदार करने कैलाश यात्रा के माध्यम से यहां पहुंचते थे। पिछले दो साल से कोरोना के ग्रहण के चलते इस यात्रा पर विराम लग गया था लेकिन इस बार इस यात्रा को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
विश्व प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर की बात करें तो यह तिब्बत क्षेत्र में स्थित है। यहां शिव के वास स्थल के साथ ही साथ मानसरोवर भी है। जिसकी परिक्रमा श्रद्धालु करते हैं। लेकिन ठीक इस तरह भारतीय क्षेत्र में आदि कैलास भी है। शिव की भूमि माने जाने वाले उत्तराखंड की धारचूला तहसील के अंतर्गत आने वाले इस धाम में भी कैलास पर्वत के आकार का हिमाच्छादित रहने वाला पर्वत है।
जिसे छोटा कैलास भी कहा जाता है। इसी पर्वत के नजदीक ऊं पर्वत और मानसरोवर झील की तरह पार्वती सरोवर है। श्रद्धालु पर्वत के दर्शनों के साथ ही पार्वती सरोवर की परिक्रमा करते हैं। ऊं की आकृति यहां एक पहाड़ पर उभरी हुई है। उभरी हुई दरारों में जब बर्फ जमा होती है तो यह पर्वत ऊं की आकृति के दर्शन देता है। बर्फ कम होने पर ऊं अक्षर पूरा नहीं दिखता। इस बार श्रद्धालुओं को भारी बर्फबारी के चलते ऊं की पूरी आकृति के दर्शन होंगे। स्थानीय लोग प्रकृति के इस उपहार को भगवान शिव की महिमा भी मानते हैं।
जून माह से केएमवीएन कराएगा यात्रा
अल्मोड़ा। कैलाश मानसरोवर यात्रा का जिम्मा कुमाऊं में कुमाऊं मंडल विकास निगम के पास है। इस बार निगम जून महीने से इस यात्रा को संचालित करने की तैयारी कर रहा है। जिसमें देश विदेश के श्रद्धालु और सैलानी भाग ले सकते हैं। केएमवीएन के साहसिक पर्यटन अधिकारी पिथौरागढ़ दिनेश गुरुरानी ने बताया कि पिछले दो सालों से कोरोना के ग्रहण के चलते इस यात्रा का संचालन नहीं हो पा रहा था। लेकिन इस बार स्थिति सामान्य होने पर इस यात्रा को कराने का निर्णय लिया गया है।
अब एक दिन में ही पूरी हो जाएगी यात्रा
अल्मोड़ा। चीन सीमा लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद अब इस यात्रा को एक दिन में ही पूरा किया जा सकेगा। पहले यात्रियों को मांगती से बूंदी, गुंजी होते हुए च्योलिकांग पैदल पहुंचना होता था। च्योलिकांग में छोटा कैलास के दर्शन के बाद यात्रियों को ऊं पर्वत के दर्शनों के लिए कालापानी होते हुए नाबीढांग पहुंचना होता था। इसमें चार से पांच दिन का समय लगता था। अब एक ही दिन में पूरी यात्रा कर सकेंगे और यात्रियों को पैदल भी नहीं चलना पड़ेगा।