पीलीभीत: साइकिल चली या कमल, हाथी की कैसी चाल…

पीलीभीत: साइकिल चली या कमल, हाथी की कैसी चाल…

पीलीभीत, अमृत विचार। विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान से पहले के राजनीतिक हालात अब बदल चुके हैं। मतदाताओं का फैसला ईवीएम में कैद है। जनता की कसौटी पर खरा उतरने की इस परीक्षा का परिणाम 10 मार्च को आना बाकी है। चुनाव मैदान में उतरे सभी 43 प्रत्याशी चाहे वह किसी राजनीतिक दल के हो …

पीलीभीत, अमृत विचार। विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान से पहले के राजनीतिक हालात अब बदल चुके हैं। मतदाताओं का फैसला ईवीएम में कैद है। जनता की कसौटी पर खरा उतरने की इस परीक्षा का परिणाम 10 मार्च को आना बाकी है। चुनाव मैदान में उतरे सभी 43 प्रत्याशी चाहे वह किसी राजनीतिक दल के हो या फिर निदर्लीय खुद की जीत के दावे कर रहे हैं। मगर, उनकी भी धड़कन मतदाताओं की ओर से की गई वोट की चोट ने बढ़ा दी है। आलम ये है कि कहीं दिग्गजों के करियर पर दांव लग चुका है तो तीन सीटों पर राजनीति विरासत के परिणाम बाकी है। यह उनके भविष्य की दिशा और दशा तय करेंगे।

तराई की चार सीटों पर पिछले 2017 के चुनाव में भाजपा की आंधी के आगे कोई टिक नहीं सका था। समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायकों को तीन सीटों पर करारी शिकस्त मिली थी, जिसमें एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री भी शामिल थे। इस चुनाव में तराई में पस्त पड़ रही भाजपा में ऊर्जा का संचार करने का काम किया था। हालांकि उसे मोदी-योगी लहर का असर कहकर विपक्षी दलों ने खुद की साख बचाई थी।

खास बात यह भी रही थी कि 2012 के चुनाव, जिसमें सपा ने तीन सीटों पर विजय प्राप्त की थी। उससे अधिक वोट मिलने पर भी सपा प्रत्याशी हार गए थे। इस बार 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की चारों सीटों पर सपा से सीधी टक्कर रही। जबकि बसपा और कांग्रेस का जादू उम्मीद के मुताबिक नहीं चल सका। मतदान के बाद यही अनुमान मतदाता भी लगा रहे हैं। हालांकि फैसला तो जनता कर चुकी और 10 मार्च को पिटारा खुलेगा।

मगर भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को अपने राजनीतिक करियर की चिंता कम नहीं है। इस बार चुनाव में जीत का ताज नहीं सजा तो साख में कमी आना भी तय है। यही वजह है कि अधिकांश नेता 10 मार्च को मतगणना से पहले ही स्थानीय समर्थकों और बूथ एजेंट से संपर्क कर यह पता लगाने में जुट गए हैं कि उनके इलाके में साइकिल चली या कमल खिला, हाथी की चाल और पंजे का कमाल भी भांपने में जुटे हैं।

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