खगोलीय घटनाओं के साथ धरने प्रदर्शन का गवाह जंतर मंतर

नई दिल्ली। दिल्ली स्थित जंतर मंतर एक खगोलीय वेधशाला है। बताते हैं कि महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर बसाने के साथ ही यहां एक विशाल वेधशाला का भी निर्माण करवाया। राजा जय सिंह द्वितीय 18 वीं सदी में भारत के राजस्थान प्रांत के सर्वाधिक प्रतापी राजा थे। 1734 ई. में उन्होंने जयपुर में एक …
नई दिल्ली। दिल्ली स्थित जंतर मंतर एक खगोलीय वेधशाला है। बताते हैं कि महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर बसाने के साथ ही यहां एक विशाल वेधशाला का भी निर्माण करवाया। राजा जय सिंह द्वितीय 18 वीं सदी में भारत के राजस्थान प्रांत के सर्वाधिक प्रतापी राजा थे। 1734 ई. में उन्होंने जयपुर में एक बड़ी वेधशाला जंतर-मंतर का निर्माण करवाया , जो देश की सबसे बड़ी वेधशाला है।
जयपुर वेधशाला में 14 यंत्र है जो समय मापन, सूर्य व चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणी करने, तारों की गति एवं स्थिति जानने, सौरमंडल के ग्रहों के दिक्पात आदि जानने में बहुत सहायक है। किसी स्थान पर भौगोलिक याम्योत्तर तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच के कोण को दिकपात कोण कहते हैं। इस वेधशाला का निर्माण जयसिंह ने 1728 ई. में अपने निरीक्षण व देखरेख में प्रारंभ करवाया जो 1734 ई. में पूर्ण हुआ।
इस वेधशाला के सम्राट यंत्र, विशाल सूर्य घड़ी, जयप्रकाश यंत्र और राम यंत्र प्रमुख हैं। यूनेस्को ने अगस्त, 2010 में जयपुर के जंतर-मंतर को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया। इस सूचि में शामिल होने वाली यह राजस्थान की पहली सांस्कृतिक धरोहर है। राजा जयसिंह ने ऐसी ही चार वेधशालाएं उज्जैन, दिल्ली, बनारस और मथुरा में भी बनवाईं।
जिनमें से मथुरा समेत अन्य देखरेख और संरक्षण के अभाव में नष्ट हो गईं और जयपुर की कुछ बेहतर हालत में बची रहीं। दिल्ली स्थित जंतर मंतर की बात करें तो उज्जैन में सम्राट यंत्र स्थापित करने के बाद इसे 1724 में बनवाया गया। इसके निर्माण में लगभग 6 वर्ष का समय लगा। मध्य दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित जंतर मंतर स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है और वर्तमान समय में दिल्ली का एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी।
यहां पर 13 खगोलीय यंत्र लगे हैं और सभी का अपना अलग-अलग नियत कार्य है। सूत्र बताते हैं कि राजा जयसिंह द्वितीय के द्वारा ही इन्हें डिजाइन किया गया। ग्रहों की गति मापने के लिए घंटा उपकरण, खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताने के लिए राम यंत्र और जयप्रकाश यंत्र हैं। मिस्त्र यंत्र साल के सबसे छोटे और सबसे बड़े दिन को नाप सकता है। इसी तरह सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति की जानकारी रखता है।
इसके अतिरिक्त भित्ति यंत्र,नाड़ी वलय यंत्र भी वहां पर स्थापित हैं।गणित और ज्योतिषी में रुचि रखने वाले राजा जयसिंह ने छोटी उम्र में ही खगोल विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र का गहन अध्धयन किया था। 1727 में उन्होंने एक दल ने यूरोपीय भेजा था जो खगोल शास्त्र से संबंधित तथ्यात्मक जानकारियां एकत्र कर ला सके क्योंकि वहां पर न्यूटन, गैलीलियो, कॉपरनिकस और केप्लर इस विषय में काफी काम कर चुके थे। खगोल विद सम्राट सवाई जय सिंह विद्वता का उल्लेख भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में भी किया है।
जंतर मंतर नाम यंत्र मंत्र का अपभ्रंश है। वेधशाला में धूप घड़ी, रेत घड़ी और घाटी यंत्र से समय का निर्धारण किया जाता था। वराह मिहिर की पांच सिद्धांतिका में इन वेधशालाओं के निर्माण के सूत्र संकेत मिलते हैं। फिर समय के साथ-साथ पंचांगों का निर्माण हुआ। हमारे वेदों में भी ज्योतिषीय गणनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। प्राचीन समय में अरब और मिस्र में कई विशाल वेधशालाएं थीं परंतु इस्लाम आक्रमणकारियों ने इन्हें नष्ट कर दिया। भारत में कोणार्क का सूर्य मंदिर भी वेधशाला की श्रेणी में ही आता है।
संसद मार्ग पर स्थित जंतर मंतर को पालिका बाजार के प्रांगण से स्पष्ट देखा जा सकता है। एक समय था जब ज्योतिषीय गणना में इसका महत्वपूर्ण स्थान था मगर आज दिल्ली में बड़ी-बड़ी इमारतों के अवरोध बन जाने से और पर्यावरण प्रदूषण के कारण इन यंत्रों के अध्ययन से सटीक नतीजें नहीं मिल पाते हैं।। कभी चांद-तारों और सूरज की गणना करने वाले इस स्थान से आज कई बार यह ग्रह नजर ही नहीं आते क्योंकि वायु प्रदूषण की मार से पूरा दिल्ली त्रस्त है। आज इसे पर्यटक स्थल के तौर पर संरक्षित किया गया है।
मात्र ₹20 प्रवेश शुल्क देकर आप यहां पर समय व्यतीत कर सकते हैं। देखने के लिए बहुत कुछ खास तो नहीं मगर फिर भी अपने प्राचीन समृद्ध गौरवशाली अतीत का गवाह बनकर यह आज भी खड़ा है और खगोलीय परंपरा में विश्वास रखने वाले लोग यहां आकर इस प्राचीन कला को देख सकते हैं और कुछ जानकारी एकत्र कर सकते हैं। बैठने के लिए सीमेंट के बने बेंच की व्यवस्था है और हरी घास के लॉन में भी बैठा जा सकता है। प्रांगण में कुछ फल फूलदार वृक्ष मन को लुभाते हैं। अद्भुत खगोलीय घटनाओं के साथ साथ जंतर मंतर ने अनेकों धरने, प्रदर्शन और क्रांतियां भी देखी हैं। इतिहास में जाएं तो अनेक धरने, प्रदर्शनों का गवाह जंतर मंतर रहा है।
बिहार के अनुदान आधारित शिक्षकों ने जंतर मंतर पर धरना दिया था। इसके अतिरिक्त पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह का धरना भी चर्चित रहा। गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी बनाने के लिए उत्तराखंडियों ने भी जंतर मंतर से आव्हान किया। इसके अतिरिक्त आदिवासी आंदोलन, बिहार के चीनी मिल मजदूरों का आंदोलन, बलात्कार की विभिन्न घटनाओं के विरोध में आंदोलन, भड़काऊ भाषण का चर्चित प्रकरण, उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों ने भी समायोजन को लेकर यहां पर धरना प्रदर्शन किया था जिसमें लगभग पचास हजार की संख्या में शिक्षक एकत्र हुए थे और पिछले लगभग एक साल से अधिक यानि दिसंबर 2020 से 2021 तक चले किसान आंदोलन के दौरान जंतर मंतर में किसान संसद का आयोजन हुआ, जिसमें निर्धारित संख्या में किसानों को सशर्त भाग लेने की स्वीकृति मिली थी।
जंतर-मंतर पर हुए इस आंदोलन ने एक नया रूप लिया था, जब प्रोत्साहन के तौर पर आंदोलन में कई नेता और राजनीतिज्ञ भी शामिल हुए। आज जंतर मंतर एक राष्ट्रीय स्मारक घोषित हो चुका है और इसके कुछ भागों में प्रवेश वर्जित कर दिया गया है। जैसे सम्राट यंत्र तक जाने की अनुमति अब नहीं है। दूर से ही इसे देखा जा सकता है। मगर फिर भी अपनी देखरेख और संरक्षण में यह थोड़ा और तब्दीली और गुणवत्ता चाहता है। आखिरकार , ये इमारतें हमारी प्राचीन वैज्ञानिक समृद्धता की प्रतीक हैं।
- अमृता पांडे
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