लखनऊ का चिड़ियाघर देगा वन्यजीवों की आयु में बढ़ावा, जानें कैसे…

लखनऊ का चिड़ियाघर देगा वन्यजीवों की आयु में बढ़ावा, जानें कैसे…

लखनऊ। लखनऊ स्थित चिड़ियाघर को नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के नाम से भी जाना जाता है। नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान का 100 वां स्थापना दिवस 29 नवंबर यानी आने वाले सोमवार को है। अब अगर स्थापना दिवस के दिन जानवरों की देखभाल और इलाज की बात ना हो तो यह शायद …

लखनऊ। लखनऊ स्थित चिड़ियाघर को नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान के नाम से भी जाना जाता है। नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान का 100 वां स्थापना दिवस 29 नवंबर यानी आने वाले सोमवार को है। अब अगर स्थापना दिवस के दिन जानवरों की देखभाल और इलाज की बात ना हो तो यह शायद उचित नहीं होगा।

बता दें, चिड़ियाघर में रहने वाले वन्यजीवों से खुले में रहने वाले वन्यजीवों की आयु कम होती है। इसका मतलब यह नहीं कि सभी वन्यजीवों को चिड़ियाघर में रखा जा सके।चिड़ियाघर में रहने वाले वन्यजीवों की उचित देखभाल और संतुलित आहार मिलने के कारण उनकी आयु में कुछ वृद्धि होती है।

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भोजन के साथ उनके इलाज के लिए नवाब वाजिद अली शाह प्राणि उद्यान में 1978 में चिकित्सालय की स्थापना की गई। उप निदेशक का दर्जा चिकित्सालय प्रभारी को दिया गया। वर्तमान में डॉ. उत्कर्ष शुक्ला चिकित्सालय के प्रभारी हैं। पुराने चिकित्सालय के सामने नए भवन का निर्माण 2009 में हुआ और 2011 में राज्य स्तरीय अस्पताल की शुरुआत हुई। अस्पताल में इलाज पाकर वर्षों तक चहलकदमी से दर्शकों का मनोरंजन करने वाले कई वन्यजीव चिकित्सकों के जेहन से उतरते ही नहीं हैं। डॉ. उत्कर्ष शुक्ला ने बताया कि 1993 में चिड़ियाघर से जुड़ा समझने का जो अनुभव मिला वह शायद ही कही मिलता।

इंसान की तरह वन्यजीवों की जांच की जाती है, इसके बाद ही इलाज होता है। अल्ट्रासाउंड से लेकर पैथोलॉजी लैब भी अस्पताल में मौजूद है। छोटे आपरेशन के लिए ऑपरेशन थिएटर है।तो इमर्जेन्सी वार्ड और एक्सरे की व्यवस्था भी है। डॉ.अशोक कश्यप ने बताया कि चिड़ियाघर में मौजूद करीब एक हजार वन्यजीवों पर हम लोगों की नजर रहती है। कीपरों को भी वन्यजीवों को देखकर उनकी बीमारी का अंदाजा हो जाता है। अनुभव के चलते हम लोग वन्य जीवों का इलाज भी करते हैं। चिड़ियाघर के साथ ही अन्य जिलों से घायल वन्यजीव यहां भर्ती किए जाते हैं।

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चर्चा में रहा वन्य जीवों का इलाज

मार्च 1998 में लाए गए वृंदा नाम के शेर के कारण चिडिय़ाघर के अस्पताल की काफी चर्चा हुई। पिंजड़े में अधिक समय रहने के कारण उसकी रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो गई थी। वह बड़ी मुश्किल से चल पाता था। 1999 में उसके लिए मर्सी किलिंग का निर्णय लिया गया। अखबारों में खबरें छपी तो देश ही नहीं विदेशों में रह रहे वन्य जीव प्रेमी वृंदा के पक्ष में उतर आए। दुआओं के साथ दवाएं भी देश-विदेश से आने लगीं। इसी साल हथिनी चंपाकली के पेट में उल्टा बच्चा होने के कारण दिक्कत आ रही थी। ब्रिटेन समेत कई देशों के चिकित्सकों ने सुझाव व दवाएं भेजीं।

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