बरेली: अनियोजित विकास निगल रहा शहर की हरियाली

बरेली, अमृत विचार। शहर में इन दिनों स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर जमकर या तो पेड़ों को काटा जा रहा है या फिर पेड़ ट्रांसलोकेट किए जा रहे हैं। जिस सड़क पर निगाह डालने की कोशिश करेंगे तो सिर्फ और सिर्फ सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों की बर्बादी देखी जा सकती है। …
बरेली, अमृत विचार। शहर में इन दिनों स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर जमकर या तो पेड़ों को काटा जा रहा है या फिर पेड़ ट्रांसलोकेट किए जा रहे हैं। जिस सड़क पर निगाह डालने की कोशिश करेंगे तो सिर्फ और सिर्फ सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेड़ों की बर्बादी देखी जा सकती है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब शहर में पेड़ ही नहीं रहेंगे तो आम इंसान सांस कैसे लेगा। क्या विकास की कीमत आम नागरिकों को हरियाली से हाथ धोकर चुकानी पड़ेगी। क्योंकि पेड़ हमें न सिर्फ आक्सीजन देते हैं बल्कि सड़कों किनारे लगे पेड़ किसी भी राहगीर के लिए दो पल अपनी थकान उतारने और धूप से बचने का जरिया भी हैं।
मगर बिना इस बारे में सोचते हुए जमकर पेड़ों पर आरी चलाई जा रही है। इसी को लेकर अमृत विचार कार्यालय में पर्यावरण प्रेमियों, समाजसेवियों, वनस्तपति विज्ञान विशेषज्ञों और वन विभाग के अधिकारियों को बुलाकर एक परिचर्चा की गई ताकि आने वाले दिनों में शहरवासी साफ हवा में सांस ले सकें।
बता दें कि शहर में इस समय करीब एक दर्जन के आसपास सड़कों को चौड़ा करने का काम चल रहा है। यहां से अधिकतर पेड़ों को ट्रांसलोकेट किया जा रहा है। बीते दिनों मिनी बाइपास पर रोडवेज बस अड्डा बनाने के लिए सैकड़ों पेड़ों को काट दिया गया। जिसका पर्यावरण प्रेमियों ने विरोध भी किया लेकिन शहर को स्मार्ट बनाने की होड़ में हरियाली गायब कर दी गई। मौजूदा वक्त में यहां 700 से अधिक सागौन के पेड़ काटकर रोडवेज बस अड्डे का निर्माण किया जा रहा है। एक पेड़ काटने पर 10 पेड़ लगाने का नियम है। लेकिन पेड़ काटने के बाद उसके स्थान पर दूसरा पेड़ कहां लगाया जा रहा है इसका जवाब किसी संबंधित अधिकारी के पास नहीं होता।
बीते दिनों डोहरा रोड पर बीडीए रामगंगा आवासीय योजना को जाने वाली सड़क को चौड़ा करना चाहता था जिसके आड़े आ रहे 650 से अधिक पेड़ों को काटने की बात शुरू हुई तो काफी हंगामा हुआ जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी नीतीश कुमार की पहल पर बरेली शहर में पेड़ों को ट्रांसलोकेट करना एक विकल्प खोजा गया। यहां से पेड़ मंझा में ट्रांसलोकेट किए गए। ट्रांसलोकेशन के बाद लोगों ने चिंता यह जताई की अगर स्मार्ट सिटी के नाम पर पेड़ों को शहर से दूर ले जाएंगे तो नगर वासियों के लिए सांस लेने को सिर्फ कंकरीट का जंगल रह जाएगा।
इसी मुद्दे पर अमृत विचार कार्यालय में आयोजित परिचर्चा में वन विभाग के एसडीओ एस के अंबरीश, बरेली कालेज में विधि के एसो. प्रोफेसर डा. प्रदीप जागर, समाजसेवी राज नारायण, कृषि विशेषज्ञ डा. कुलदीप विशनोई, राजीव कुमार सहायक प्रोफेसर वनस्पति विभाग, व्यापारी नेता आशीष सिंघल, विधि के छात्रों में वंश चतुर्वेदी, अर्पिता सक्सेना, व रजनीश, प्रेम कुमार और संध्या और विकास मौजूद रहे। विधि के छात्र वंश चतुर्वेदी ने कहा कि पौधा लगाने में पैसा खर्च नहीं होता बल्कि समय खर्च होता है और यह समय आने वाले समय में इंसान के ही काम आता है।
घर के आगे कच्ची जगह छोड़कर लगाएं पेड़
चर्चा की शुरूआत करते हुए कृषि विशेज्ञ डा. कुलदीप विशनोई ने कहा कि पेड़ों को कटने से बचाने के लिए शुरूआत अपने घर से ही करने पड़ेगी। लोगों को अपने घरों के आगे कुछ हिस्सा कच्चा छोड़ना चाहिए जिससे कि यहां पेड़ लगाए जा सकें। इससे न सिर्फ हरियाली को बचाया जा सकता है बल्कि वाटर रिचार्जिंग के जरिए भूमिगत जल स्तर को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।
मगर लोग ऐसा नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें तो अपने घर के आगे कार खड़ी करनी है। किसी राहगीर की गाड़ी अगर पंक्चर हो जाए तो थोड़ी देर ठहरने के लिए मौजूदा वक्त में किसी पेड़ की छांव ढूंढना मौजूदा वक्त में बेहद मुश्किल है। ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि सड़क पास तभी होगी जब सड़क किनारे कच्चा छूटेगा।
पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन की जरूरत
बरेली कालेज में विधि के प्रोफेसर डा. प्रदीप जागर ने कहा कि मौजूदा वक्त में विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। क्योंकि पर्यावरण की कीमत चुकाकर विकास नहीं किया जा सकता है। प्रदेश सरकार ने अपनी नीति घोषित कर दी है कि पेड़ नहीं काटे जाएंगे बावजूद इसके पेड़ काटे जा रहे हैं।
दूसरी बात यह है कि जहां भी पेड़ काटे जाने होते हैं जिम्मेदार अधिकारी वहां के लोगों को इसके बारे में पहले नहीं बताते हैं। सवाल यह भी खड़ा हो गया है कि अगर आप सड़क को चौड़ा कर रहे हैं तो इसका क्या मानक है कि कौनसी सड़क कितनी चौड़ी करनी है। कुछ सड़कें तो ऐसी हैं जहां चौड़ीकरण की आवश्यक्ता नहीं मगर यहां पेड़ काट रहे हैं।
फोटो खिचाने वाली सोच बदलनी पड़ेगी
समाजसेवी राज नारायण ने बताया कि हर रोज तमाम सामाजिक संस्थाएं पौधारोपण करती हैं। एक पौधा लगाने के लिए दस-दस लोग फोटो खिचाने के लिए जाते हैं। लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि साल में एक बार पौधा लगाने वाली सामाजिक संस्थाएं क्या दोबारा उस पौधे को देखने के लिए जाती हैं कि वह अब किस स्थिति में है।
फोटो खिचाने वाली सोच को हमें बदलना होगा। उन्होनें बताया कि विकास के नाम पर पूरा गांधी उद्यान पक्का किया जा रहा है। इसी तरह पक्का कर देंगे तो उद्यान कैसे बचेगा। लेकिन लोगों को इस बात की फिक्र नहीं है। लोगों को पेड़ नहीं बल्कि सड़क पर चलती कार ज्यादा प्यारी है। सरकार को तो अपनी सोच बदलनी ही चाहिए लोगों को भी अपनी सोच बदलनी पड़ेगी।
पेड़ का हरा पत्ता देखने के लिए भी तरसेंगे
व्यापारी नेता आशीष सिंघल ने कहा कि मौजूदा वक्त में एक प्रकार से अनियोजित विकास किया जा रहा है। सरकारी और गैर सरकारी विकास ने शहर की तस्वीर बदल दी है। विकास के नाम पर स्टेडियम रोड से लेकर सौ फुटा रोड के पास पेड़ों को काट दिया गया। पेड़ों को ट्रांसलोकेट किया जा रहा है जो बिल्कुल सही नहीं है। जेसीबी से पेड़ों को हटा दिया गया। शहर के पेड़ों को अगर हटा दिया जाएगा तो आने वाले समय में सांस लेना भी मुश्किल होगा।
स्थिति इतनी भयावह हो सकती है कि लोगों को हरा पत्ता तक देखना मुश्किल हो जाए। इसलिए लोगों को अभी से समझने की जरूरत है। पर्यावरण को लेकर अभी नहीं जागे तो आने वाले दिनों में मुश्किल पैदा हो सकती है। इसलिए पेड़ों को बचाने के लिए समाज के हर वर्ग को आगे आना पड़ेगा।
पेड़ के अलावा कोई नहीं बना सकता आक्सीजन
वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञ राजीव कुमार ने सवाल किया कि क्या कोई 50 साल के पेड़ का स्थान सीजनल पेड़ ले सकता है। कई पेड़ अपने साथ चालीस से पचास प्रजाजियों को अपने साथ लेकर चलता है। अगर उसको काट दिया जाएगा तो यह विविधता खत्म हो जाएगी। संबंधित विभागों द्वारा इन पेड़ों को बड़ी आसानी से काटा जा रहा है।
क्या हमने कभी सुना है कि रात को हम सो रहे थे और आक्सीजन की कमी हो गई क्योंकि केवल पेड़ ही आक्सीजन बना सकते हैं। किसी कंपनी ने ऐसी कोई डिवाइस बनाई जो आक्सीजन बना सके। आक्सीजन बनाएगा तो सिर्फ पौधा बनाएगा। इसके बावजूद भी लोग पेड़ों पर आरी चलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। हमारी जरूरत की दस गुना ज्यादा आक्सीजन पौधे बना देते हैं।
ट्रांसलोकेट किए पेड़ होने लगे हैं हरे भरे
वन विभाग के एसडीओ एस के अंबरीश ने कहा कि पेड़ों को बचाने के लिए बेहद जरूरत है। हमारा विभाग लगातार इसी कोशिश में लगा रहता है कि किस प्रकार पेड़ों को बचाया जा सके। शहर में पेड़ों को ट्रांसलोकेट करने का काम किया जा रहा है। ट्रांसलोकेट किए अधिकतर पेड़ दोबारा हरे भरे होने लगे हैं।
तत्कालीन जिलाधिकारी ने पेड़ों के ट्रांसलोकेशन में दिलचस्पी दिखाई थी। जिसकी वजह से आज पेड़ काटने के बजाए ट्रांसलोकेट किए जा रहे हैं। अभी जो पेड़ ट्रांसलोकेट किए जा रहे हैं उनकी रिकवरी में थोड़ा तो समय लगेगा। एक दम से तो परिणाम नहीं मिल सकते। लेकिन जो पेड़ ट्रांसलोकेट किए गए उनमें जो बचेंगे यह भी अपने आप में बड़ी बात होगी। हमे उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए।