बरेली: बाढ़ के कारण नहीं मिल पाई चिकनी मिट्टी, दिवाली पर दीये बनाने में आईं दिक्कतें

बरेली: बाढ़ के कारण नहीं मिल पाई चिकनी मिट्टी, दिवाली पर दीये बनाने में आईं दिक्कतें

बरेली, अमृत विचार। पिछले दिनों हुई लगातार बारिश और फिर नदियों में आई बाढ़ ने दिवाली पर कुम्हारों की परेशानी बढ़ा दी। दीये तैयार करने के लिए उन्हें अच्छी चिकनी मिट्टी नहीं मिल पाई। बाढ़ के कारण नदियों में रेत आने से उन्हें रेतीली मिट्टी चाक पर डालनी पड़ रही है। इससे दीये तैयार करने …

बरेली, अमृत विचार। पिछले दिनों हुई लगातार बारिश और फिर नदियों में आई बाढ़ ने दिवाली पर कुम्हारों की परेशानी बढ़ा दी। दीये तैयार करने के लिए उन्हें अच्छी चिकनी मिट्टी नहीं मिल पाई। बाढ़ के कारण नदियों में रेत आने से उन्हें रेतीली मिट्टी चाक पर डालनी पड़ रही है। इससे दीये तैयार करने में समय अधिक समय लग रहा है। मनमुताबिक दीये बन नहीं पा रहे।

दिवाली को दीपों का त्योहार भी कहा जाता है। इसलिए इस त्योहार पर दीयों का अधिक महत्व है। त्योहार को देखते हुए कुम्हारों ने भी दीये व कुचरियां आदि चीजें बनानी शुरू कर दी थीं। कुम्हारों ने बताया कि अब दीये का काम खत्म हो चुका है। दीये बाजारों में बिकने पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के वोकल फार लोकल की अपील का भी लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा और पिछली दिवाली पर लोगों ने दीयों की जमकर खरीदारी की थी।

इस बार भी प्रत्येक व्यक्ति 100 से 200 तक दीये खरीदकर ले जा रहा है। दीये की महिला विक्रेता ने बताया कि मिट्टी महंगी खरीदनी पड़ी लेकिन दीयों के रेट में बदलाव नहीं किया। फिर भी कुछ ग्राहक मोलभाव भी कर रहे हैं।

20 की जगह 30 रुपये में खरीदा मिट्टी का कट्टा
कुम्हारों ने बताया कि बारिश के कारण जो मिट्टी का कट्टा पहले 20 रुपये का मिलता था। वह अब 30 रुपये का मिल रहा है उस पर भी आधी मिट्टी दी जा रही है। उसके साथ चिकनी मिट्टी में रेतीली मिट्टी मिलाकर बेची जा रही है। जिसके कारण मिट्टी को फेटने के बाद भी दीये अच्छे नहीं बन रहे हैं और मिट्टी तैयार करने में भी अधिक समय लग रहा है।

पटरी पर लौटी मिट्टी कला
चाइनीज झालरों की चकाचौंध ने दीयों के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था लेकिन पिछले वर्षों से लोगों की सोच में बदलाव आया। लुप्त हो रही कुम्हारों की इस कला के पटरी पर लौटने के संकेत मिल रहे हैं। दिवाली पर यह लोग दीये, कुचरियां आदि चीजे तैयार करते हैं। उसके बाद मिट्टी के खिलौने, मिट्टी के बर्तन, गुल्लक, कुल्हड़ आदि चीजें बनाते हैं।

क्या कहते हैं कुम्हार

इस बार अधिक बरसात होने के कारण मिट्टी तैयार करने में अधिक समय लग रहा है। उस पर भी मिट्टी के उत्पाद अच्छी तरह से तैयार नहीं हो पा रहे हैं। चिकनी मिट्टी की जगह रेतीली मिट्टी मिल रही है। -हरीराम

हमारे पास सरकार की ओर से मिला इलेक्ट्रॉनिक चाक है। बिजली बिल के कारण हम हाथ वाले चाक पर ही काम करते हैं। इस बार मिट्टी के दाम के बढ़ने के साथ अच्छी मिट्टी भी नहीं मिली। -हुकुमचंद

दुकानदार बोले-उम्मीद है कि बिक्री अच्छी होगी

हम नवाबगंज के पास गांव के रहने वाले हैं। दिवाली पर कई सालों से शहामतगंज चौराहे पर दीये बेचते हैं। अभी तो ज्यादा लोग खरीदने नहीं आ रहे हैं लेकिन उम्मीद है अब दीयों की अच्छी बिक्री होगी। -नन्ही देवी

शनिवार की वजह से कल तो दीयों की बिक्री नहीं हुई लेकिन रविवार से ग्राहक दीये खरीदने आ रहे हैं। अब दिन प्रतिदिन दीयों की बिक्री होगी। -वीना देवी