कुपोषण पर चिंता

कुपोषण पर चिंता

आज कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय है। दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर यह मामला और महत्वपूर्ण हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र …

आज कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय है। दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। देश में कोविड-19 वैश्विक महामारी के मद्देनजर यह मामला और महत्वपूर्ण हो गया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट बताती है कि देश में कुपोषण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।

इंडिया फूड बैंकिंग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 189.2 मिलियन लोग कुपोषित हैं। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में 14 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कुपोषण की वजह से 13 राज्यों के 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की लंबाई सामान्य से कम है। यह स्थिति नागरिकों के भोजन एवं जीवन के अधिकार समेत कई मौलिक अधिकारों का हनन है।

उच्चतम न्यायालय ने भुखमरी और कुपोषण से निपटने के लिए दो वर्ष पहले देशभर में सामुदायिक रसोइयां स्थापित करने की योजना बनाने का समर्थन किया था। शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका पर इस संबंध में हलफनामे दायर करने के उसके आदेश का पालन नहीं करने पर छह राज्यों पर पिछले साल 17 फरवरी को पांच-पांच लाख रुपए का अतिरिक्त जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, गोवा और दिल्ली पर लगाया गया था।

शुक्रवार को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से अधिवक्ता आशिमा मंडला ने कहा कि कुपोषण के कारण पांच साल से कम आयु के 69 प्रतिशत बच्चों ने अपना जीवन गंवा दिया और अब समय आ गया है कि राज्यों में सामुदायिक रसोई स्थापित करने के लिए कदम उठाएं जाएं। मामले में सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी। कुपोषण इस प्रकार एक जटिल समस्या है, जो बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करता है। हम ब्राजील से सीख सकते हैं, जहां भूख और कुपोषण को राष्ट्रीय लज्जा माना जाता है। यह वास्तव में घरेलू खाद्य असुरक्षा का सीधा परिणाम है।

किसानों के नगदी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के कारण खाद्य संकट और गहरा सकता है। हाल ही में जनवितरण प्रणाली को समाप्त करने के सरकार के प्रयास इस ओर इशारा करते हैं। कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए समाज और घर में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करना होगा। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने, गुणवत्ता पूर्ण पानी की पहुंच बढ़ाने और स्वच्छता पर ध्यान देना होगा। केंद्र को सार्वजनिक वितरण योजना के बाहर रह गए लोगों के लिए राष्ट्रीय फूड ग्रिड तैयार कराना चाहिए।

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