यूपी: विश्व बाजार में पाकिस्तान के इस आम को टक्कर देगा बागपत का रटौल

लखनऊ। विश्व बाजार को बागपत का रटौल आम अपने स्वाद और सुगंध से दीवाना बनाने की तैयारी कर चुका है। जीआई की मान्यता मिलने के बाद यह सुगंधित आम भी विश्वबाजार में अपनी धाक जमाएगा। दस वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद लखनऊ उपोष्ण बागवानी ने भौगोलिक तौर पर यह साबित कराया कि अपना रटौल …
लखनऊ। विश्व बाजार को बागपत का रटौल आम अपने स्वाद और सुगंध से दीवाना बनाने की तैयारी कर चुका है। जीआई की मान्यता मिलने के बाद यह सुगंधित आम भी विश्वबाजार में अपनी धाक जमाएगा। दस वर्ष के कड़े संघर्ष के बाद लखनऊ उपोष्ण बागवानी ने भौगोलिक तौर पर यह साबित कराया कि अपना रटौल आम ही असली किस्म का है।
इसके साथ यह भी मान्यता मिली कि बागपत के गांव रटौल के नाम पर इसका नाम रटौल पड़ा। इन दलीलों के बाद भौगोलिक संकेत प्रमाणन बोर्ड ने इस आम को जीआई की मान्यता दे दी। अभी तक विश्व बाजार में पाकिस्तान अनवर रतौल के नाम से अपने आम का निर्यात कर रहा है। लेकिन जीआई की मान्यता मिलने के बाद विश्वबाजार में पाकिस्तान वाले अनवर रतौल के नकली स्वाद पर अपने बागपत का रटौल बेहतरीन सुगंध और असली स्वाद की छाप छोड़ेगा।
बागपत के रटौल पर अपना दावा करता है पाक
उत्तर प्रदेश के बागपत में उगाए जाने वाले प्रसिद्ध रटौल आम को वाराणसी में आयोजित एक कार्यक्रम में भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेत (जीआई) प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया। रटौल गांव के आधार पर इस किस्म का नामकरण हुआ है। यह अपनी खास सुगंध और स्वाद के कारण आम लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। पाकिस्तान भी इस आम के स्वामित्व के लिए दावा करता रहता है, लेकिन मूल रूप से इस आम की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के रटौल गांव से हुई है। रतौल मैंगो प्रोड्यूसर एसोसिएशन अपने भौगोलिक संकेत प्रमाणन के लिए 10 वर्षों से अधिक समय से प्रयास कर रहा था। इसकी जीआई प्रमाणन प्रक्रिया को केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ द्वारा वर्ष 2020 में एक सूत्रधार के रूप में तेज किया गया था और अंततः में उसे जीआई मिला।
पश्चिम बंगाल से आगे निकलेगा यूपी
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ ने चौसा एवं गौरजीत के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन जमा किए हैं| इन दो किस्मों के पंजीकरण में कुछ समय लगेगा और अगर यह संभव हो जाता है तो यूपी भी आम के पंजीकरण में पश्चिम बंगाल से आगे निकल जाएगा | पश्चिम बंगाल आम की किस्में जैसे फाजली, हिमसागर और लखन भोग पंजीकृत हो जाने के कारण आगे है। बनारसी लंगड़ा के लिए पंजीकरण प्रक्रिया जारी है। क्योंकि ये किस्में पाकिस्तान में उत्तर प्रदेश के भीतर रहने वाले किसानों के रिश्तेदारों ले जाकर उत्पादित की जा रही हैं। पाकिस्तान कई देशों को इस किस्म का निर्यात भी करता है। जीआई सर्टिफिकेशन से इस आम की मांग विदेशों के साथ-साथ घरेलू बाजार में भी बढ़ेगी।
पाकिस्तान विश्व बाजार में हमारे कई आमों का नाम बदलकर निर्यात कर रहा है। बागपत के रटौल के बाद अब चौसा के पंजीकरण का भी मामला है। अनवर रतौल की तरह पाकिस्तान हमारे चौसा को ‘समर बहिस्त चौसा’ के नाम से निर्यात कर रहा है। उम्मीद है कि जल्द ही इस पर भी फैसला आ जाएगा…डॉ. शैलेन्द्र राजन, निदेशक, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ।