मोदी का मिशन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका प्रवास किसी मिशन से कम नहीं हैं। अमेरिका यात्रा के दौरान उनके क्वाड नेताओं के साथ द्विपक्षीय, बहुआयामी और रणनीतिक संवाद पर दुनिया की निगाहें हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा से भी मुलाकात की। भारत और ऑस्ट्रेलिया इन दिनों नौसैनिक …
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अमेरिका प्रवास किसी मिशन से कम नहीं हैं। अमेरिका यात्रा के दौरान उनके क्वाड नेताओं के साथ द्विपक्षीय, बहुआयामी और रणनीतिक संवाद पर दुनिया की निगाहें हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन और जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा से भी मुलाकात की। भारत और ऑस्ट्रेलिया इन दिनों नौसैनिक सहयोग से लेकर समुद्री व्यापार में साझेदारी बढ़ाने में जुटे हैं।
भारत के एक और अहम रणनीतिक सहयोगी जापान के पीएम योशिहिदे सुगा के साथ प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात में दोनों देशों के बीच ढांचागत निर्माण, आर्थिक निवेश और नई तकनीकों पर साझेदारी को लेकर बात हुई। ऑस्ट्रेलिया एवं जापान के प्रधानमंत्रियों से मुलाकात में स्वतंत्र, खुले, समृद्ध एवं समावेशी हिन्द प्रशांत क्षेत्र के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सहयोग को बढ़ाने का संकल्प व्यक्त किया। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से द्विपक्षीय मुलाकात और क्वाड की शिखर बैठक के बाद शनिवार को मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे। कोरोना की वैश्विक महामारी का प्रकोप कम होने के बाद यह मुलाकात और संयुक्त राष्ट्र में विश्व नेताओं का जमावड़ा संभव हुआ है।
छह महीने में क्वाड की यह दूसरी बैठक है। दरअसल हिंद प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन के वर्चस्व को चुनौती देने के संदर्भ में क्वाड का गठन बेहद महत्वपूर्ण आंका जा रहा है। बहरहाल भारत-अमेरिका संवाद के कई आयाम हैं। इनमें शीत युद्ध के अलावा, सीमापार और वैश्विक आतंकवाद, अफ़गानिस्तान में तालिबानी कब्जे के बाद उपजे कट्टरपंथ और अतिवाद, चीन, रूस और पाकिस्तान के समीकरणों, कोरोना महामारी, जलवायु परिवर्तन, व्यापार, रक्षा, सुरक्षा आदि वैश्विक मुद्दों पर विमर्श शामिल हैं।
आखिरी तौर पर क्या तय होगा, यह साझा घोषणा से ही स्पष्ट होगा, लेकिन यह संवाद और मुलाकात भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को मजबूती और व्यापक आयाम देगी। भारत अमेरिका के लिए अपरिहार्य है, क्योंकि चीन और रूस के समानांतर वही एक स्थापित शक्ति है।
प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति और द्विपक्षीय मुलाकातों की खासियत यह है कि वह कूटनीतिक संबंधों को ‘दोस्ती’ के स्तर तक ले जाते हैं। कमोबेश भारत और अमेरिका की रणनीतिक और सामरिक साझेदारी इतनी परिपक्व हो चुकी है कि दोनों देशों के नेता परस्पर समझने लगे हैं कि आखिर यह संबंध क्यों जरूरी है। यदि इस क्षेत्र और हिंद प्रशांत महासागर में अमेरिका चीन की दादागीरी को तोड़ना चाहता है, तो क्वाड के अन्य देशों से अधिक भारत की जरूरत होगी। बहरहाल ये मुलाकातें कितनी सफल रहती है, उसका आकलन बाद में होगा।