बरेली: कर्ज लेकर बनाईं मूर्तियां, अब सता रही देनदारी की चिंता

बरेली: कर्ज लेकर बनाईं मूर्तियां, अब सता रही देनदारी की चिंता

बरेली, अमृत विचार। कोरोना की दूसरी लहर में गणेश महोत्सव मनाने की अनुमति नहीं थी। इसके कारण पहले से ही मूर्तिकार परेशान थे और कर्ज लेकर गुजारा कर रहे थे। इस साल संक्रमण कम होने पर मूर्तिकारों को कारोबार की उम्मीद जागी। वे कर्ज लेकर गणेश चतुर्थी के लिए 5 महीने पहले से मूर्तियां बनाने …

बरेली, अमृत विचार। कोरोना की दूसरी लहर में गणेश महोत्सव मनाने की अनुमति नहीं थी। इसके कारण पहले से ही मूर्तिकार परेशान थे और कर्ज लेकर गुजारा कर रहे थे। इस साल संक्रमण कम होने पर मूर्तिकारों को कारोबार की उम्मीद जागी। वे कर्ज लेकर गणेश चतुर्थी के लिए 5 महीने पहले से मूर्तियां बनाने में जुटे थे। लेकिन इस बार भी पिछले साल की अपेक्षा कम गणेश प्रतिमाएं बिकने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। अब उन्हें कर्ज चुकाने की चिंता खाए जा रही है। वहीं देनदारी बढ़ने से आर्थिक स्थिति खराब हो गई है।

मूर्तिकारों का कहना है कि पिछले दो सालों से गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। जेवर पहले ही गिरवी रख दिए थे। वहीं मूर्ति बनाने के लिए हजारों रुपये का कर्ज लिया था। लेकिन गणेश चतुर्थी तक बहुत कम मूर्तियां बिकी। अब देनदार अपनी रकम लौटने के लिए तगादा करना शुरू कर दिए हैं। समस्या यह है कि मूर्तियां नहीं बिक पाई, जिससे कर्ज चुकाने के लिए लोगों की बातों को सुनना पड़ रहा है।

पीड़ित मूर्तिकारों का कहना है कि इस साल तो कुछ मूर्तियां लागत के कम दाम पर बेच दी गईं कि कम से कम मूलधन तो वापस आ जाएगा। लेकिन बहुत कम लोगों के मूर्तियां खरीदने से मायूस हुई। अब बची मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए पॉलीथिन में रख रहे हैं, ताकि अगली साल इन्हें बेचा जा सके।

जन्माष्टमी पर ही टूट गया था भ्रम

मूर्तिकारों ने बताया कि जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति बनाई थी। लेकिन वह नहीं बिक पाईं। इसके कारण उन्हें यह एहसास होने लगा था कि गणेश चतुर्थी महोत्सव के लिए भी कम ही मूर्तियां बिकेंगी।

दिल्ली और आगरा से किराए पर लाते हैं डाई
मूर्तिकारों ने बताया कि ग्राहकों की मांग के अनुसार विभिन्न आकार में मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। पिछली बार मूर्ति खरीदने के लिए आए एक ग्राहक ने कहा कि पिछली साल तो ऐसे गणेश जी हम लेके गए थे इसलिए हर साल तरह-तरह की डाई लाते हैं। यह डाई दिल्ली और आगरा से लेकर आते हैं। एक डाई का किराया 100 रुपये होता है। लेकिन विभिन्न आकार और साइज की गणेश प्रतिमाएं बनाने के लिए 20 से 25 तरह की डाई लानी पड़ती है। एक डाई से मौसम ठीक रहने पर एक या दो मूर्ति तैयार की जाती हैं।

इस साल बहुत कम मूर्ति बिकी, जिसके कारण बहुत घाटा हुआ। करीब 90 हजार लागत की मूर्तियां बची हुई हैं। अब यह पैसा साल भर फंसा रहेगा। मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए पन्नी में रख रहे हैं। इसके बाद भी चूहे मूर्तियों को नुकसान पहुंचा देते हैं। -उपमा राम, पीलीभीत बाईपास रोड

इस साल बड़ी उम्मीद के साथ मूर्तियां बनाई थीं। इसके लिए पैसा न होने के बाद भी कर्ज लेकर तैयार की थी। लेकिन बहुत कम ही मूर्तियां बिकी, जिससे खर्चा भी नहीं निकला। करीब 1.5 लाख रुपये की मूर्तियां बच गई हैं। अब इन्हें सुरक्षित रखने के लिए पैसा खर्च करना पड़ेगा। -संग्राम सिंह, मिनी बाईपास

पिछली साल कोरोना संक्रमण होने के बाद भी अच्छी संख्या में मूर्तियां बिक गई थीं। लेकिन इस साल हमने कर्ज लेकर 400 मूर्तियां बनाई थी, जिसमें से 100 ही बिक पाई हैं। इस साल बहुत घाटा उठाना पड़ा है। -राजू, कुदेशिया पुल के नीचे

पिछली साल तो मूर्तियां कम तक पड़ गई थीं। लेकिन इस साल तो 2 ही बड़ी मूर्तियां बिकी हैं और बच गई हैं। अब इन्हें पूरी सालभर संभाल के कर रखना अपने आप में चुनौती है। अब तो हम पर बहुत कर्ज भी हो चुका है। -राम स्वरूप, कुदेशिया पुल के नीचे

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