नई दिल्ली : 75 हफ्ते में 75 ‘वंदे भारत’ ट्रेने संभव

नई दिल्ली : 75 हफ्ते में 75 ‘वंदे भारत’ ट्रेने संभव

संजय सिंह, अमृत विचार। प्रधानमंत्री का 75 हफ़्तों में 75 वंदे भारत ट्रेने चलाने का ऐलान सुनने में जितना सुखद है, उतना ही इसे हकीकत में उतारना कठिन प्रतीत होता है। लेकिन रेलवे अधिकारियों का दावा है कि वो सपने से लगने वाले इस लक्ष्य को साकार करके दिखाएंगे। वंदे भारत प्रोजेक्ट से जुड़े रेलवे …

संजय सिंह, अमृत विचार। प्रधानमंत्री का 75 हफ़्तों में 75 वंदे भारत ट्रेने चलाने का ऐलान सुनने में जितना सुखद है, उतना ही इसे हकीकत में उतारना कठिन प्रतीत होता है। लेकिन रेलवे अधिकारियों का दावा है कि वो सपने से लगने वाले इस लक्ष्य को साकार करके दिखाएंगे।

वंदे भारत प्रोजेक्ट से जुड़े रेलवे अधिकारियों का कहना है कि इतना बड़ा लक्ष्य देकर प्रधानमंत्री ने रेलवे अधिकारियों को वंदे भारत के बुरी तरह पिछड़ चुके उत्पादन शिड्यूल को दुगुनी-तिगुनी रफ्तार देने का संदेश दिया है। अनुभव बताता है कि बड़ा लक्ष्य देने से काम में तेजी आती है और संपूर्ण नहीं तो आधा-पौना लक्ष्य अवश्य प्राप्त हो जाता है।

वैसे रेलवे बोर्ड ने पीएम के ऐलान से काफी पहले ही 2024 तक 102 वंदे भारत ट्रेन सेट का निर्माण करने की तैयारियां शुरू कर दी थीं। जिसके तहत पिछले साल दिए गए 44 रेक के प्रोपल्शन सिस्टम के आर्डर के अलावा इसी 28 अगस्त को 58 रेक के प्रोपल्शन सिस्टम की खरीद के नए टेंडर और जारी कर दिए गए हैं। अक्टूबर में इसके आर्डर भी जारी हो जाएंगे। इस तरह अगले वर्ष से कुल मिलाकर 102 रेक का निर्माण प्रारंभ हो जाएगा।

रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पूर्व में दिए गए 44 रेक के आर्डर में से 20 रैक आइसीएफ में तथा 11-11 रेक आरसीएफ और एमसीएफ को बनाने की तैयारियां पहले ही शुरू हो चुकी हैं। जबकि 58 नए रेक में से 30 रेक का निर्माण आइसीएफ में तथा बाकी 14-14 रेक का आरसीएफ और एमसीएफ में होगा। इस तरह आइसीएफ कुल 50 रेक बनाएगी। जबकि आरसीएफ और एमसीएफ में से प्रत्येक को 25-25 रेक के निर्माण की जिम्मेदारी उठानी है। तीनो कारखाने 2022 के पहले ही उत्पादन शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं।

अधिकारी ने स्पष्ट किया कि 75 ट्रेनों के लिए 75 रेक होना जरूरी नहीं है। कम रेक से भी इतनी ट्रेने चलाई जा सकती हैं। क्योंकि रेक में 16 कोच होते हैं। जबकि ट्रेन 10, 12, 14 कितने भी कोच की भी हो सकती है। अधिकारी ने दावा किया कि “हम न केवल प्रधानमंत्री का दिया लक्ष्य पूरा करेंगे, बल्कि उससे भी ज्यादा ट्रेने बनाकर दिखाएंगे। क्योंकि इन ट्रेनों को ज्यादा से ज्यादा रूटों पर चलाया जाना है।”
दरअसल, वंदे भारत प्रोजेक्ट की काफी दुर्गति हो चुकी है। जबकि वर्ष 2016 में प्रारंभ हुए।

अपनी तरह के अनोखे इस प्रोजेक्ट के तहत चेन्नई स्थित इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (आइसीएफ) के अधिकारियों ने डेढ़ साल के भीतर देश की पहली सेमी हाईस्पीड ट्रेन बनाकर दे दी थी। जबकि छह महीने में दूसरी ट्रेन भी उतार दी गई थी। तबसे वे दो ट्रेने ही चल रही हैं। कोई नई ट्रेन नहीं बन पाई। क्योंकि उन ट्रेनो को तैयार करने वाले जुझारू अधिकारियों को निहित स्वार्थों के कारण अनावश्यक जांच-पड़ताल में फंसा दिया गया। लेकिन दो साल के मानसिक उत्पीड़न के बाद कुछ नहीं निकला और सभी 11 अधिकारी निर्दोष साबित हुए हैं। जबकि रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय भी अब नए नेतृत्व के हाथों में है। इससे वंदे भारत प्रोजेक्ट में नई जान आ गई है। और अधिकारी असंभव को संभव करने का जज्बा दिखाने लगे हैं।

आम तौर पर रेलवे में काम की रफ्तार सुस्त रहती है। इसे स्टेशन पुनर्विकास, बुलेट ट्रेन और चेनाब ब्रिज जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में बखूबी देखा जा सकता है। ये सभी परियोजनाएं राष्ट्रीय महत्व की हैं जिनकी निगरानी प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर की जा रही है। इसके बावजूद ये लक्ष्य से कोसों दूर नजर आती हैं। 2015 में शुरू हुई स्टेशन पुनर्विकास योजना में अब तक मुश्किल दो स्टेशन कुछ हद तक पूरे हुए हैं। जबकि अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट, जिसके पूरा होने की डेडलाइन दिसंबर, 2023 है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि इसका 2027 से पहले पूरा होना कठिन है।