डॉ. जीतराम भट्ट की बाल कहानी “कछुआ नहीं, खरगोश जीत गया”

डॉ. जीतराम भट्ट की बाल कहानी “कछुआ नहीं, खरगोश जीत गया”

जंगल के राजा शेर की गुफा से जंगल के मंत्री हाथी का निवास दस मील की दूरी पर था. मंत्री हाथी ने जंगल के संविधान के लिए जंगल-ग्रंथ तैयार किया. अनुमोदन के लिए राजा शेर तक पंहुचाना था. हाथी ने जंगल-ग्रंथ की तीन प्रतियां बनाईं और खरगोश, कछुआ और चूहे को एक-एक प्रति देते हुए …

जंगल के राजा शेर की गुफा से जंगल के मंत्री हाथी का निवास दस मील की दूरी पर था. मंत्री हाथी ने जंगल के संविधान के लिए जंगल-ग्रंथ तैयार किया. अनुमोदन के लिए राजा शेर तक पंहुचाना था. हाथी ने जंगल-ग्रंथ की तीन प्रतियां बनाईं और खरगोश, कछुआ और चूहे को एक-एक प्रति देते हुए कहा- ‘तुम तीनों में से जो सबसे पहले इस जंगल-ग्रंथ को राजा शेर तक पंहुचाएगा, राजा शेर उसे जंगल का अधिकारी बनायेंगे.’

कछुआ, खरगोश और चूहा, तीनों जंगल-ग्रंथ को ले कर शेर की गुफा की ओर चल पड़े. जंगल के रास्ते में कुछ दूर जा कर खरगोश एक पत्थर पर बैठा तो कछुआ खुश हो गया कि पिछली बार की तरह इस बार भी अब यह सो जाएगा और मैं जीत जाऊंगा. उधर पीछे चूहा जंगल-ग्रंथ के भार से परेशान हो रहा था. सामने उसे भालू की गुफा दिखाई दी तो वह उसमें घुस गया. वहां चूहे को कम्प्यूटर दिखा तो उसने माऊस क्लिक किया और जंगल-ग्रंथ की पीडीएफ बना कर राजा शेर की ईमेल पर उसे मेल कर दिया. उसके बाद वह जंगल-ग्रंथ को कुतर कर खाली हाथ प्रसन्नता पूर्वक राजा की गुफा की ओर चल पड़ा.

रास्ते में उसने पत्थर पर बैठे खरगोश को जंगल-ग्रंथ के पन्ने पलटते देखा तो वह हंसते हुए आगे बढ़ गया. किन्तु कछुआ बहुत आगे निकल गया था. हाथ और पूंछ हिलाता हुआ चूहा भी राजा शेर को ईमेल से जंगल ग्रंथ भेजने की बात बताने के लिए सरपट दौड़ लगा रहा था.

कछुआ सात मील और चूहा पांच मील की दूरी तय कर चुके थे और खरगोश का कहीं अता-पता नहीं था. जंगल में बारीश शुरू हो गई थी. आंधी से पेड़ भी उखड़ने लगे थे. किन्तु बाधाओं को पार करते हुए कछुआ सबसे पहले राजा शेर तक पंहुच गया और हाथी का संदेश सुनाते हुए पीठ पर से जंगल-ग्रंथ उतार कर शेर को दे दिया. ग्रंथ देख कर शेर की आंखें लाल हो गईं. क्योंकि बारीस से सारा ग्रंथ गीला हो गया था और उसमें लिखी हुई सारी बातें धुल गई थीं. सारे पन्ने गीले और कोरे थे.

क्रोधित हो कर राजा शेर ने कहा- ‘दूर हट मेरी नज़रों से.’ डर के मारे कछुआ भाग कर झाड़ी में छिप गया.

कुछ मिनट बाद दौड़ता हुआ चूहा पंहुचा और उसने भी हाथी का संदेश सुनाते हुए शेर को ईमेल देखने का आग्रह किया.

राजा शेर बोला-‘देख नहीं रहे हो! आंधी से खम्बे उखड़ गए और बिजली भी चली गई, इन्टरनेट भी नहीं है.’ शेर ने पूछा ‘ग्रंथ कहां है?’

चूहा बोला, ‘वह तो कुतर दिया है.’

तब शेर ने उसे भी कहा कि ‘हट जा मेरी नज़रों से.’

डर के मारे चूहा भी भाग कर झाड़ी में छिप गया. उनके पंहुचने के दो घंटे बाद खरगोश भी राजा शेर की गुफा में पंहुचा और हाथी का सन्देश सुनाते हुए बोला, ‘महाराज! क्षमा करें, बारीश में सारा ग्रंथ धुल गया. पन्ने गीले और कोरे हो गए. किन्तु महाराज, रास्ते में पत्थर पर बैठ कर मैंने पूरी पुस्तक याद कर ली थी. कृपया पहले मुझसे जंगल ग्रंथ को मौखिक सुन लें, फिर मैं यहीं पर लिख कर ग्रन्थ रूप में भी आपको दे दूंगा.’

शेर ने खरगोश से पूरा ग्रन्थ सुना और खुश हो कर उसे जंगल का अधिकारी नियुक्त कर दिया. झाड़ी से निकल कर कछुआ और चूहे ने खरगोश को बधाई देते हुए कहा कि ‘बधाई मित्र!’ आज हमने सीख लिया है कि तकनीक और मौसम धोखा दे सकते हैं, मगर याद किया हुआ हमेशा साथ रहता है.’

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