धनतेरस पर क्यों जलाते हैं खास दीपक? जानें इसका महत्व

धनतेरस पर क्यों जलाते हैं खास दीपक? जानें इसका महत्व

कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि में धनतेरस त्योहार मनाया जाता है। इस दिन ही भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। वे समुद्र में से अमृत का कलश लेकर निकले थे। जिसके लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन की कथा श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण …

कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि में धनतेरस त्योहार मनाया जाता है। इस दिन ही भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी। वे समुद्र में से अमृत का कलश लेकर निकले थे। जिसके लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन की कथा श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि पुराणों में मिलती है।

मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम को यमराज के लिए दक्षिण दिशा में या घर के मेनगेट पर आटे का दीपक रखा जाएगा। जिससे यमराज खुश होते हैं जिससे अकाल मृत्यु का भय खत्म होता है।

धनतेरस की पूजा विधि
सबसे पहले नहाकर साफ वस्त्र पहनें। भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या चित्र साफ स्थान पर स्थापित करें तथा स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। उसके बाद भगवान धन्वंतरि का आह्वान इस मंत्र से करें। इसके बाद पूजा स्थल पर आसन देने की भावना से चावल चढ़ाएं।

आचमन के लिए जल छोड़ें और भगवान धन्वंतरि को वस्त्र (मौली) चढ़ाएं। भगवान धन्वंतरि की मूर्ति या तस्वीर पर अबीर, गुलाल पुष्प, रोली और अन्य सुगंधित चीजें चढ़ाएं। चांदी के बर्तन में खीर का भोग लगाएं। (अगर चांदी का बर्तन न हो तो अन्य किसी बर्तन में भी भोग लगा सकते हैं।)

इसके बाद आचमन के लिए जल छोड़ें। मुख शुद्धि के लिए पान, लौंग, सुपारी चढ़ाएं। शंखपुष्पी, तुलसी, ब्राह्मी आदि पूजनीय औषधियां भी भगवान धन्वंतरि को चढ़ाएं। फिर भगवान धन्वंतरि को श्रीफल व दक्षिणा चढ़ाएं। पूजा के अंत में कर्पूर आरती करें।

धन्वंतरि का आह्वान मंत्र
सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,
अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।

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