आफत की बारिश

आफत की बारिश

उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिले भारी बारिश और बाढ़ के कहर से जुझ रहे हैं। सोमवार की बारिश से जुड़ी घटनाओं में प्रदेश में 30 लोगों के मारे जाने की खबर है। मौसम विभाग के अनुमानों के अनुसार आने वाले दो-तीन दिनों तक प्रदेश के 58 जिलों में भारी बारिश हो सकती है। प्रदेश में …

उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिले भारी बारिश और बाढ़ के कहर से जुझ रहे हैं। सोमवार की बारिश से जुड़ी घटनाओं में प्रदेश में 30 लोगों के मारे जाने की खबर है। मौसम विभाग के अनुमानों के अनुसार आने वाले दो-तीन दिनों तक प्रदेश के 58 जिलों में भारी बारिश हो सकती है। प्रदेश में अक्टूबर से अब तक औसत से  500 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है। किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। समय से बारिश नहीं होने से किसान धान की उतनी रोपाई नहीं कर सके जितनी की जानी चाहिए थी।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुल 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की रोपाई की जानी चाहिए थी। जिसके सापेक्ष कुल 60 लाख हेक्टयर क्षेत्र  में रोपाई का कार्य हो सका। जो रोपाई की भी गई, वह कृत्रिम पानी के सहारे की गई जिससे धान की फसल पहले से ही कमजोर थी। अब जब कमजोर  फसल की कटाई का समय आया, आफत की बारिश ने ज्यादातर फसल को बरबाद कर दिया। सरकार नुकसान का आकलन करा रही है, किंतु जरूरत इस बात की है कि समय से सही आकलन करा कर उदारता के साथ अन्नदाताओं को मदद पहुंचाई जाए। सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती होगी।

कसौटी पर सरकार कितना खरा उतर पाएगी, यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल फौरी तौर पर जिन इलाकों में बाढ़ है, वहां सहायता पहुंचाई जानी चाहिए। बाढ़ आने के बाद होने वाली संक्रमक बीमारियों से लड़ने की तैयारी को अभी से अंतिम रूप दिया जाना चाहिए। बारिश से धान के साथ ही दलहन और कपास की खेती भी प्रभावित हुई है।

सरकार को हालात देखते हुए गेहूं, चावल और चीनी जैसी खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर पाबंदी लगाने पर विचार करना चाहिए। हर साल आने वाली बाढ़ से निपटने के लिए सरकार ने व्यापक रणनीति पर काम किया है। इनमें तटबंधों का निर्माण, नहरें और जल निकासी की बेहतर व्यवस्था शामिल है, लेकिन लगता है कि यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि साल दर-साल बाढ़ से तबाही ही हो रही है। जिस तरीके से थोड़ी सी बारिश में ही शहरी इलाकों, यहां तक की स्मार्ट कहे जाने वाले शहरों में जल जमाव हो जाता है, वह जल निकासी व्यवस्था पर ही नहीं पूरे सिस्टम पर सवालिया निशान लगाता है। गांवों की हालत तो और भी खराब है।

सरकार ने महात्मा गांधी नरेगा कार्यक्रम के तहत ग्रामीण इलाकों में कार्य कराया है। वर्षा जल संचयन की दिशा में भी कार्य हुआ है। इसके निष्पक्ष मूल्यांकन की भी आवश्यकता है। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे से जो भी कार्य कराए जा रहे हैं, उनका समय-समय पर निरीक्षण होना चाहिए और पूरे तंत्र को तकनीकि के साथ जोड़े जाने की भी आवश्यकता है ताकि पारदर्शिता आ सके।

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