बिहार में नई सरकार

बिहार में नई सरकार

कहावत है, बिहार की राजनीति की पाठशाला में जो पास हो गया, वह कहीं भी राजनीति की परीक्षा में फेल नहीं हो सकता। तभी तो 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 45 विधायकों वाली पार्टी के नेता नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। इस बार भाजपाई डिप्टी सीएम की जगह उनके साथ तेजस्वी …

कहावत है, बिहार की राजनीति की पाठशाला में जो पास हो गया, वह कहीं भी राजनीति की परीक्षा में फेल नहीं हो सकता। तभी तो 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में 45 विधायकों वाली पार्टी के नेता नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। इस बार भाजपाई डिप्टी सीएम की जगह उनके साथ तेजस्वी यादव हैं।

महाराष्ट्र में उद्वव ठाकरे की सरकार ही नहीं गई, शिव सेना भी बिखर गई। 46 विधायकों वाले शिंदे को 105 विधायकों वाली भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री बना दिया। मध्यप्रदेश की कहानी भी करीब-करीब ऐसी ही है। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार पर भाजपा भारी पड़ी और शिवराज सिंह चौहान सीएम बन गए।

बिहार में राजनीति की गणित हमेशा से अलग रही। इतिहास पर नजर डालें तो 2013 में नीतीश और भारतीय जनता पार्टी साथ-साथ लड़े, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बने। 2015 में भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, लेकिन भाजपा नहीं आरजेडी के साथ। समय बदला 2017 में नीतीश कुमार को साथ मिला भाजपा का।

2022 में नीतीश कुमार ने 77 विधायकों वाली भाजपा को बाय-बाय कह 79 विधायकों वाली आरजेडी से हाथ मिला लिया। दरअसल जब 2009 में एनडीए में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की तलाश जारी थी, उस समय नीतीश कुमार ने अपनी दावेदारी पेश की थी, यह अलग बात है कि अमित शाह और नरेन्द्र मोदी का पलड़ा भारी पड़ा। नीतीश ने हालात से समझौता कर लिया, लेकिन सियासी समीकरण उसी समय बदलने लगे थे।

नीतीश शुरू से ही सुधी राजनीति के खिलाड़ी रहे हैं और शतरंज की बिसात पर कब कौन सी चाल चलनी है उन्हें मालूम है। तेजस्वी यादव ने तमाम संघर्षों के बावजूद खुद को मुख्यधारा में रखा। इस बार नीतीश कुमार ने गठबंधन से सियासी तलाक लेकर महागठबंधन के साथ से लौटने का साहस किया है। महागठबंधन में ज्यादातर पिछड़ी जातियों के नेता हैं जिन्होंने शुरू से ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ी है।

पिछले दिनों पटना में भारतीय जनता पार्टी के नेता जे.पी नड्डा ने कहा था कि विपक्षी दलों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा और बड़े दल ही बचेंगे। उसके बाद जो वर्चस्व की लड़ाई नेपथ्य में थी सामने आ गई। नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री की हैसियत से अभी कई अग्नि परीक्षाएं देनी होंगी।

तीसरे नंबर की पार्टी होकर किस प्रकार वे वर्चस्व की लड़ाई में महागठबंधन के नेताओं के अहम को संतुष्ट करेंगे, यह एक बड़ा प्रश्न है। 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं। क्या सहयोगी दल शांत भाव से हाथ उठाकर नीतीश कुमार को समर्थन देंगे। कई बड़े प्रश्न हैं जिनका उत्तर सियासी रंगमंच पर अभी देना होगा।