इस दिन से लगेगा होलाष्टक, होली तक न करें शुभ कार्य, जानिए वजह और पौराणिक कथा

इस दिन से लगेगा होलाष्टक, होली तक न करें शुभ कार्य, जानिए वजह और पौराणिक कथा

हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक होता है, जो फाल्गुन पूर्णिमा तक रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक से शुभ कार्य करना वर्जित होता है क्योंकि होली जलने से पहले के 8 दिन अशुभ माने जाते हैं। जब फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन होता …

हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक होता है, जो फाल्गुन पूर्णिमा तक रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक से शुभ कार्य करना वर्जित होता है क्योंकि होली जलने से पहले के 8 दिन अशुभ माने जाते हैं। जब फाल्गुन पूर्णिमा की रात को होलिका दहन होता है तो इसी के साथ होलाष्टक भी खत्म हो जाता है और फिर अगले दिन होली खेली जाती है।

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 मार्च गुरुवार को प्रातः 02:56 से प्रारंभ हो रही है। यह तिथि 11 मार्च को सुबह 05.34 बजे तक मान्य होगी और अष्टमी तिथि 10 मार्च को सुबह शुरु हो रही है, इसलिए होलाष्टक भी 10 मार्च को सुबह 05:34 बजे से शुरू हो जाएगा। होलाष्टक का समापन होलिका दहन या फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होता है। ऐसे में फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 17 मार्च गुरुवार दोपहर 01.29 बजे से शुरू हो रही है जो अगले दिन शुक्रवार 18 मार्च को दोपहर 12.47 बजे तक वैध है। 17 तारीख को पूर्णिमा दिखाई देगी और होलिका दहन देर रात को संपन्न होगा। यहीं कारण है कि होलाष्टक 17 मार्च को समाप्त होगा।

फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत
फाल्गुन पूर्णिमा का व्रत इस साल 18 मार्च को रखा जाएगा। यदि आपके घर में कोई शुभ कार्य संपन्न करना है तो फाल्गुन पूर्णिमा के बाद ही करें। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने से पहले किसी अच्छे ज्योतिष से जरूर सलाह कर लें।

होलाष्टक के दौरान ये कार्य वर्जित
होलाष्टक लगने के बाद 8 दिन तक नामकरण, उपनयन, सगाई, विवाह आदि जैसे संस्कार बिल्कुल नहीं करना चाहिए। होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, नए घर की खरीदी, संपत्ति के सौदे और नए वाहनों की खरीदी से भी बचना चाहिए। होलाष्टक के दौरान कोई नया काम या नया व्यापार शुरू करने से भी बचना चाहिए। किसी भी मांगलिक कार्य की शुरू होलाष्टक के बाद ही करें।

होलाष्टक की कहानी
होलाष्टक भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद और उनके पिता अत्याचारी हिरण्यकश्यप की कहानी से जुड़ा है। स्कंद पुराण के अनुसार, राक्षसी राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से ईर्ष्या और ईर्ष्या करता था। जो कोई भी उसके राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करता था, उसे मौत की सजा दी जाती थी।

राजा के आदेश के डर से उसके राज्य में किसी ने भी भगवान विष्णु की पूजा नहीं की। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था। जब राजा को अपने पुत्र प्रह्लाद की विष्णु के प्रति भक्ति के बारे में पता चला, तो उसने प्रह्लाद को समझाया, लेकिन प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की पूजा करना बंद नहीं किया। इससे क्रोधित होकर राजा ने अपने पुत्र को मृत्युदंड दे दिया।

राजा के आदेश पर सैनिकों ने भक्त प्रह्लाद पर कई अत्याचार किए। उसे जंगली जानवरों के बीच मरने के लिए छोड़ दिया गया, एक नदी में फेंक दिया गया, एक ऊंचे पहाड़ से भी फेंक दिया गया। प्रह्लाद हर सजा पर भगवान की कृपा से बच गया। अंत में राजा ने अपनी बहन होलिका को अपनी गोद में बिठाया और प्रह्लाद को जिंदा जलाने का आदेश दिया। राजा की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में भी नहीं भस्म होगी। भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गया लेकिन होलिका जल गई। उसी दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई।

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