देवोत्थान एकादशी के दिन ऐसे करें तुलसी विवाह, जानें कथा और शुभ मुहूर्त

देवोत्थान एकादशी के दिन ऐसे करें तुलसी विवाह, जानें कथा और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार तुलसी पूजन हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस बार तुलसी विवाह 15 नवंबर को किया जायेगा। इस दिन देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। पौराणकि मान्यताओं अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की अपनी निद्रा से जागते हैं। इस दिन भक्त शामिग्राम …

पंचांग के अनुसार तुलसी पूजन हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस बार तुलसी विवाह 15 नवंबर को किया जायेगा। इस दिन देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। पौराणकि मान्यताओं अनुसार इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीने की अपनी निद्रा से जागते हैं। इस दिन भक्त शामिग्राम के साथ तुलसी विवाह कराते हैं।

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा
एक बार शिव ने अपने तेज को समुद्र में फैंक दिया था। उससे एक महातेजस्वी बालक ने जन्म लिया। यह बालक आगे चलकर जालंधर के नाम से पराक्रमी दैत्य राजा बना। इसकी राजधानी का नाम जालंधर नगरी था। दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर से हुआ। जालंधर महाराक्षस था। अपनी सत्ता के मद में चूर उसने माता लक्ष्मी को पाने की कामना से युद्ध किया, परंतु समुद्र से ही उत्पन्न होने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया। वहां से पराजित होकर वह देवी पार्वती को पाने की लालसा से कैलाश पर्वत पर गया।

भगवान देवाधिदेव शिव का ही रूप धर कर माता पार्वती के समीप गया, परंतु मां ने अपने योगबल से उसे तुरंत पहचान लिया तथा वहां से अंतर्ध्यान हो गईं। देवी पार्वती ने क्रुद्ध होकर सारा वृतांत भगवान विष्णु को सुनाया। जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यन्त पतिव्रता स्त्री थी। उसी के पतिव्रत धर्म की शक्ति से जालंधर न तो मारा जाता था और न ही पराजित होता था। इसीलिए जालंधर का नाश करने के लिए वृंदा के पतिव्रत धर्म को भंग करना बहुत ज़रूरी था।

इसी कारण भगवान विष्णु ऋषि का वेश धारण कर वन में जा पहुंचे, जहां वृंदा अकेली भ्रमण कर रही थीं। भगवान के साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखकर वृंदा भयभीत हो गईं। ऋषि ने वृंदा के सामने पल में दोनों को भस्म कर दिया। उनकी शक्ति देखकर वृंदा ने कैलाश पर्वत पर महादेव के साथ युद्ध कर रहे अपने पति जालंधर के बारे में पूछा।

ऋषि ने अपने माया जाल से दो वानर प्रकट किए। एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था तथा दूसरे के हाथ में धड़। अपने पति की यह दशा देखकर वृंदा मूर्छित हो कर गिर पड़ीं। होश में आने पर उन्होंने ऋषि रूपी भगवान से विनती की कि वह उसके पति को जीवित करें।

भगवान ने अपनी माया से पुन: जालंधर का सिर धड़ से जोड़ दिया, परंतु स्वयं भी वह उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का ज़रा आभास न हुआ। जालंधर बने भगवान के साथ वृंदा पतिव्रता का व्यवहार करने लगी, जिससे उसका सतीत्व भंग हो गया। ऐसा होते ही वृंदा का पति जालंधर युद्ध में हार गया।

इस सारी लीला का जब वृंदा को पता चला, तो उसने क्रुद्ध होकर भगवान विष्णु को ह्रदयहीन शिला होने का श्राप दे दिया। अपने भक्त के श्राप को विष्णु ने स्वीकार किया और शालिग्राम पत्थर बन गये। सृष्टि के पालनकर्ता के पत्थर बन जाने से ब्रम्हांड में असंतुलन की स्थिति हो गई। यह देखकर सभी देवी देवताओ ने वृंदा से प्रार्थना की वह भगवान् विष्णु को श्राप मुक्त कर दे।

वृंदा ने विष्णु को श्राप मुक्त कर स्वय आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुईं, वहां तुलसी का पौधा उगा। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: हे वृंदा। तुम अपने सतीत्व के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में सदा मेरे साथ रहोगी। तब से हर साल कार्तिक महीने के देव-उठावनी एकादशी का दिन तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।

तुलसी विवाह 2021 शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी और द्वादशी तिथि आरंभ होगी।
तुलसी विवाह 15 नवंबर 2021, सोमवार को किया जाएगा।
द्वादशी तिथि 16 नवंबर, मंगलवार को सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगी।

ऐसें कराएं तुलसी विवाह
तुलसी विवाह कराने से पहले नहा धोकर तैयार हो जाएं। जिन लोगों को तुलसी विवाह में कन्यादान करना होता है उन्हें व्रत रखना जरूरी है। शुभ मुहूर्त में तुलसी के पौधे को घर के आंगन में किसी चौकी पर रखें। आप चाहे तो छत या मंदिर में भी तुलसी विवाह कर सकते हैं। अब एक चौकी पर शालिग्राम जी को स्थापित करें। उस पर अष्टदल कमल भी बनाए। चौकी के ऊपर जल से भरा कलश स्थापित करें। उसके ऊपर स्वास्तिक का निशान बनाएं और आम के पांच पत्ते रखें। फिर लाल कपड़े में नारियल लपेटकर आम के पत्तों पर रख दें।

तुलसी के गमले में गेरू लगाएं। गमले के पास जमीन पर रंगोली बनाएं। शालिग्राम जी की दाएं तरफ तुलसी के गमले को रख दें।
घी का दीपक जलाएं। गंगाजल में फूल डुबाकर ‘ॐ तुलसाय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए तुलसी पर जल से छिड़काव करें। गंगाजल शालिग्राम पर भी छिडकें। इसके बाद तुलसी को रोली का टीका लगाएं और शालिग्राम जी को चंदन का टीका। तुलसी के गमले में ही गन्ने से एक मंडप तैयार करें और उस पर लाल चुनरी ओढ़ा दें।

फिर गमले को साड़ी लपेट कर तुलसी को चूड़ी पहनाएं उनका दुल्हन की तरह श्रृंगार करें। शालिग्राम जी को पंचामृत से स्नान कराएं और उन्हें पीले वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद तुलसी और शालिग्राम जी को दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं। मंडप पर भी हल्दी का लेप लगाएं। पूजन में फल और फूल का प्रयोग भी करें।

शालिग्राम जी को चौकी समेत घर परिवार का कोई पुरुष हाथ में लेकर तुलसी की सात बार परिक्रमा करे। इसके बाद तुलसी जी की आरती करें। इस तरह से विवाह संपन्न कराएं। तुलसी और शामिग्राम को खीर और पूड़ी का भोग लगाएं। प्रसाद सभी में बांट दें। तुलसी विवाह के गीत गाएं।

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