Independence Day Special: आजादी का वो क्रांतिकारी जो आजाद जिया और आजाद ही मरा

Independence Day Special: आजादी का वो क्रांतिकारी जो आजाद जिया और आजाद ही मरा

Independence Day Special: आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर देश में अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है। देश के लिए बलिदान हुए वीरों की संघर्ष गाथा को याद दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान चलाया है। …

Independence Day Special: आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। इस अवसर पर देश में अलग ही उत्साह देखने को मिल रहा है। देश के लिए बलिदान हुए वीरों की संघर्ष गाथा को याद दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान चलाया है। स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर हर घर तिरंगा अभियान के तहत देश में तिरंगा यात्रा निकल रही है।

आज हम आपको देश की आजादी के नायकों में से एक ऐसे नायक की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने प्रयागराज के आजाद पार्क में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। जिसका नाम है चंद्रशेखर आजाद।

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर स्थित भाबरा में हुआ था। इनका पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। लोग इन्हें आजाद कहकर भी बुलाते थे। पिता का नाम सीताराम तिवारी और मां का नाम जाग्रानी देवी था।

1920-21 में आजाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े। बाद में क्रांतिकारी फैसले खुद से लिए। 1926 में काकोरी ट्रेन कांड, फिर वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने का प्रयास, 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सॉन्डर्स पर गोलीबारी की।

आजाद ने ही हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन भी किया था। जब वे जेल गए थे वहां पर उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया था।

यूपी के इस पार्क में शहीद हुए थे चंद्रशेखर आजाद

जी हां, हम बात कर रहे हैं चंद्रशेखर आजाद की। आज भी बड़ी संख्या में लोग शहीद चंद्रशेखर आजाद को नमन करने इस पार्क में पहुंचते हैं। प्रयागराज के इस पार्क का नाम पहले अल्फ्रेड पार्क था लेकिन चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद इसका नाम बदलकर आजाद पार्क कर दिया गया था।

आज भी उनकी पिस्टल है मौजूद
यहां के म्यूजियम में आज भी उनकी पिस्टल रखी है। आजाद अपनी पिस्टल को बहुत सहेज कर रखते थे और इसका नाम उन्होंने बमतुल बुखारा रखा था। इस पिस्टल को अब तो संग्रहालय में सहेजकर रखा गया है। लेकिन एक वक्त अंग्रेज इस पिस्टल को अपने साथ इंग्लैंड ले गए थे और काफी प्रयासों के बाद इसे साल 1976 में वापस भारत लाया जा सका।

अचूक निशाने के साथ ही वह छिपने में भी माहिर थे। वो अंग्रेजों के बीच से निकल जाते थे और अंग्रेज भांप भी नहीं पाते थे। ओरछा के जंगलों में अपने ठिकाने पर आजाद फायरिंग प्रैक्टिस करते थे। यही वजह थी कि जब अलफ्रेड पार्क में अंग्रेजों से मुठभेड़ हुई तो उन्होंने चुनचुनकर सिपाहियों को अपनी गोली का निशाना बनाया था।

इसे लेकर अंग्रेजों से किसी ने मुखबिरी कर दी और अंग्रेज सिपाहियों का बड़ा दस्ता उन्हें जिंदा पकड़ने के लिए पहुंच गया। लेकिन चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई थी आखिरी सांस तक आजाद रहूंगा। इसी प्रण को लेकर आजाद अंग्रेजों से लड़े और जब उनकी पिस्तौल में आखिरी गोली बची तो उससे उन्होंने अपने को गोली मार ली और शहीद हो गए। जब वह शहीद हुए तब उनकी उम्र 25 साल थी।

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