बरेली: अलविदा या हुसैन की सदाओं के साथ दफ्न किए ताजिए, 350 से ज्यादा तख्त ताजियों के जुलूस पहुंचे बाकरगंज कर्बला

बरेली: अलविदा या हुसैन की सदाओं के साथ दफ्न किए ताजिए, 350 से ज्यादा तख्त ताजियों के जुलूस पहुंचे बाकरगंज कर्बला

बरेली, अमृत विचार। मंगलवार को यौम अशुरा के मौके पर हर तरफ इमाम हुसैन के इश्क में अकीदतमंद डूबे नजर आए। या हुसैन की सदाओं के साथ बाकरगंज कर्बला में ताजिए दफ्न किए गए। मंगलवार सुबह 10 बजे से लेकर देर रात तक ताजियों और तख्तों के जुलूस के आने का सिलसिला चलता रहा। बाकरगंज ईदगाह कर्बला …

बरेली, अमृत विचार। मंगलवार को यौम अशुरा के मौके पर हर तरफ इमाम हुसैन के इश्क में अकीदतमंद डूबे नजर आए। या हुसैन की सदाओं के साथ बाकरगंज कर्बला में ताजिए दफ्न किए गए। मंगलवार सुबह 10 बजे से लेकर देर रात तक ताजियों और तख्तों के जुलूस के आने का सिलसिला चलता रहा। बाकरगंज ईदगाह कर्बला कमेटी के महासचिव डा. सरताज हुसैन ने बताया कि लगभग 350 के आसपास तख्त-ताजियों व 250 छड़ों के जुलूस कर्बला पहुंचे। अकीदतमंदों ने इमामबाड़े पर दिनभर नियाज नज्र करने के साथ अलम पेश किए और चिरागा किया। इस के अलावा शहर में जगह-जगह लंगर और जिक्र-ए-शाहदत हुआ।

मोहर्रम की दस तारीख यौम-ए-आशुरा पर शहर के हर मोहल्लों और गलियों में या हुसैन की सदाएं गूंज उठीं। कहीं नौहे गूंज रहे थे तो कहीं मरसिया ख्वानी पढ़ी जा रही थी। इसी बीच तमाम मोहल्लों से हुसैनी नारों के साथ तख्त ताजिए और अलम निकलना शुरू हो गए। जो अपनी अपनी टोलियों और जुलूस की शक्ल में इमामबाड़ों से कर्बला को रवाना हुए। कोई साउंड पर मनकबत तो कोई ढोल की मातमी धुन के साथ कर्बला पहुंचते रहे। वहीं, रास्तों में जगह जगह रुक कर छड़ियों का प्रदर्शन भी किया।

कर्बला पहुंचने पर सबसे पहले इमामबाड़े पर सलामी पेश की और फिर कर्बला मैदान में ताजियों को प्रतीक के रूप में उसके फूल और चढ़ावे को दफ्न किया। खानकाह के प्रबंधक शब्बू मियां नियाजी की कयादत में जुलूस कर्बला पहुंचा। जिसमें दर्जनों की तादात में तख्त ताजिए अलम और छड़ें आदि शामिल रहीं। इस दौरान बाकरगंज कर्बला पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए तिरंगा लगाया गया। बाकरगंज स्थित कर्बला पर मेला भी लगाया गया। जहां खान पान से लेकर खेल खिलौने के स्टाल के साथ झूले भी लगाए गए।

शिया समुदाय ने निकाला इमाम हुसैन के मातम का जुलूस
अलविदा-अलविदा या हुसैन अलविदा की सदा के साथ 10 मुहर्रम यौमे अशुरा के मौके पर हजरत इमाम हुसैन व कर्बला के बहत्तर शहीदों की याद में शिया समाज द्वारा अलम का जुलूस निकाला गया। अजादारों ने जंजीरी मातम कर इमाम हुसैन को याद किया। आल इंडिया गुल्दस्ता-ए-हैदरी के मीडिया प्रभारी शानू काजमी ने बताया कि मोहल्ला गढ़ैया इमामबाड़ा वसी हैदर से जुलूस निकाला गया, जो फूलवालन डोमनी मस्जिद, कंघी टोला, किला सब्जी मंडी पहुंचा। जहां अंजुमन गुल्दस्ता-ए-हैदरी ने जंजीर और कमा का मातम किया।

यह जुलूस इमामबाड़ा फतेह अली शाह काला इमामबाड़ा पहुंचा। जहां मौलाना कौसर मुशतबा अमरोहा ने हजरत इमाम हुसैन के छह महीने के बेटे अली असगर के ताबूत पर मसाहयब बयां किए, जिसको सुनकर अजादारों की आंखों से आंसू गिरने लगे। यहां से अंजुमन शमशीर-ए-हैदरी, गुल्दस्ता-ए-हैदरी , आल इंडिया गुल्दस्ता-ए-हैदरी, परचम-ए-अब्बास समेत तमाम अंजुमन जुलूस लेकर किला फाटक होते हुए अली कालोनी, लीचीबाग मोड़ पहुंचीं। यहां अंजुमन परचम-ए-अब्बास ने जंजीरी मातम किया। इसके बाद सभी जुलूस स्वालेनगर स्थित कर्बला पहुंचे। यहां हजरत इमाम हुसैन और कर्बला वालों की शहादात बयां की। कर्बला के मुतावल्ली जमीर रजा बॉबी को अगुवाई में सभी अजादारों ने ताजिये दफन किए। अंजुमनों ने अलविदाई नौहे पढ़े।

मदरसा मंजर-ए-इस्लाम में जिक्र-ए-शहादत
यौम-ए-अशुरा के मौके पर दरगाह आला हजरत स्थित मदरसा मंजर-ए-इस्लाम में शहीदाने करबला और नवासा-ए-रसूल इमाम हुसैन की यौमे शहादत पर मदरसे के छात्रों ने रोजा रखा और उनकी याद में कार्यक्रम आयोजित कर खिराज-ए-अकीदत पेश की। जिक्र-ए-शहीदाने कर्बला की इस महफिल की सरपरस्ती दरगाह प्रमुख सुब्हानी मियां व सदारत सज्जादानशीन मुफ्ती मोहम्मद अहसन मियां ने की। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि मदरसा छात्रों को वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम बरेलवी ने कर्बला में हुई शहादत बयान की। उन्होंने कहा कि हम अगर सच्चे हुसैनी हैं तो हमें इमाम हुसैन के तरीके व रास्तों पर चलना होगा। मजहब व मसलक उसूलों के साथ देश के कानून और संविधान पर भी अमल करना होगा।

दरगाह तहसीनी पर सजी जिक्र-ए-शहादत की महफिल
दरगाह तहसीनी पर मंगलवार को इशा की नमाज के बाद तहरीक तहसीने मुस्तफा टीटीएम की ओर से जिक्र-ए-शोहदा-ए-कर्बला की महफिल का आयोजन हुआ, जिसकी सरपरस्ती सज्जादानशीन मौलाना हस्सान रजा खां नूरी ने की। सज्जादानशीन के बड़े बेटे सफवान रजा खां तहसीनी की निगरानी में महफिल का आगाज कुरान की तिलावत के साथ हुआ। इसके बाद नईम तहसीनी ने नात और मनकबत के नजराने पेश किए। सज्जादानशीन के छोटे बेटे अमान रजा खां तहसीनी ने दादा तहसीने मिल्लत का लिखा कलाम पेश किया। फातिहा के साथ महफिल समाप्त हुई और हुसैनी लंगर बांटा गया।

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