करोड़ों के वाहन कबाड़, कौड़ी भर नहीं बची कीमत

हल्द्वानी, अमृत विचार : वाहन नीलामी एक सतत प्रक्रिया है और इससे सरकार को अच्छा-खासा राजस्व मिलता है। इस राजस्व को विकास कार्यों में लगाया जाता है, लेकिन पिछले कुछ समय से इस सतत प्रक्रिया पर पूरी तरह अंकुश लग चुका है। आलम यह है कि जिन करोड़ों के वाहनों को बेच कर सरकार के खजाने में लाखों रुपये पहुंच सकते थे, उनकी कीमत पर अब कौड़ी की भी नहीं बची। ऐसे वाहनों की संख्या बहुत अधिक है, जिन्हें अब नीलाम करने के बजाय कबाड़ी को बेचना पड़ेगा।
हल्द्वानी कोतवाली से आखिरी बार नीलामी वर्ष 2022 में हुई थी। वर्ष 2021-22 की इस नीलामी से लगभग 50 लाख का राजस्व प्राप्त हुआ था, लेकिन बनभूलपुरा हिंसा के बाद से नीलामी पर पूरी तरह अंकुश लग गया। जबकि अब थाने और चौकियों में वाहनों को खड़ा करने का स्थान नहीं बचा है। सीज वाहनों के लिए थाने और चौकियों में स्थान बनाने के लिए पुराने वाहनों को बड़ी मंडी स्थित दमकल की खाली पड़ी जमीन में खड़ा कर दिया गया। यहा अब स्थिति यह है कि वाहन सड़ते जा रहे हैं और झाड़ियों में खो चुके हैं। ऐसे में इन वाहनों की कीमत भी न के बराबर रह गई है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी हो रहा उलंघन
हल्द्वानी : सबसे पहले उन वाहनों को नीलाम किया जाता है, जिनका कोई वारिस नहीं होता यानी लावारिस वाहन। ऐसे वाहनों के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश हैं कि इन्हें छह माह में नीलाम कर दिया जाए। सिर्फ नीलाम ही नहीं बल्कि ऐसे वाहनों को भी नीलाम करने के आदेश हैं जो सीज किए गए हों और उन पर सीज करने के छह माह में किसी ने दावा या उसे छुड़ाने के प्रयास न किए हों।
बयान
अभी हम वाहन मालिक को सूचना के साथ नोटिस तामील करा रहे हैं। यह सूचना वाहन फाइनेंसर को भी दी जा रही है। यदि फाइनेंसर वाहन को अपने नाम कराना चाहता है तो फार्म 13 भरकर कार्रवाई पूरी कर सकता है। वाहन नीलामी की मुख्यालय से अनुमति मांगी है। संभवत: दो से तीन दिनों में अनुमति मिल जाएगी।
सुनील शर्मा, संभागीय परिवहन अधिकारी