कासगंज: राजा के बौर आने से बागवानों के खिले चेहरे, अच्छे उत्पादन का अनुमान

कासगंज: राजा के बौर आने से बागवानों के खिले चेहरे, अच्छे उत्पादन का अनुमान

दीपक मिश्र, मोहनपुरा। मध्य फरवरी के आते ही प्रकृति में नए-नए परिवर्तन शुरू होने लगते हैं। दिन के समय में धूप खिली रहने से तापमान में भी धीरे-धीरे कुछ बढ़ोतरी होने लगती है, जिससे सर्दी का असर कम होकर मौसम अनुकूल हो जाता है। धूप की तीव्रता बढ़ने से छांव में सुकून मिलना प्रारंभ हो जाता है। ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही बागों में कोयल की मधुर कूक मन को भाने लगती है।

वसंत के इसी समय में फलों के राजा आम के वृक्षों पर बौर आना प्रारंभ हो गया है। इस दौरान आम के पूरे पेड़ पर मंजरियां खिल रही हैं। सुनहरी एवं पीले रंग की मंजरियों से लदे वृक्ष लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। हालांकि कुछ वृक्षों की प्रजाति में वैकल्पिक रूप से वर्ष में एक बार ही बौर खिलता है, किंतु बहुतायत में वृक्षों पर बौर लद चुका है, जिससे इस वर्ष भी आम की अच्छी पैदावार होने की संभावना है। इसी के मद्देनजर बागवानों के चेहरों पर खुशी की लहर दिखाई देने लगी है।

हालांकि, कल हुई बारिश एवं कहीं-कहीं हुई ओलावृष्टि से अपेक्षाकृत आंशिक नुकसान की संभावना हुई है, जिससे बागवानों के चेहरे पर कुछ चिंता की लकीरें भी देखी गई हैं। हालांकि, किसान रामप्रताप का कहना है कि ज्यादा नुकसान की संभावना नहीं है।

एक नजर में जनपद के आंकड़े:
पाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियां: 3
प्रमुख प्रजातियों के नाम: दशहरी, लंगड़ा और चौसा
आम के बागों का कुल क्षेत्रफल: 1517 हेक्टेयर

उचित पैदावार हेतु आम के बौर का संरक्षण एवं कीट नियंत्रण
किसी भी फसल में बेहतर पैदावार के लिए उसकी समुचित देखभाल करना बेहद आवश्यक है। जनपद के कस्बा मोहनपुरा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ. पृथ्वीपाल सिंह ने बताया कि आम के वृक्ष पर मंजरी में फूल खिलने की अवस्था में किसी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए, अन्यथा परागण प्रक्रिया बाधित होने से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कीट नियंत्रण के लिए मंजरी आने के बाद एवं फूल खिलने से पहले पहला छिड़काव पानी में इमिडाक्लोप्रिड 0.005 प्रतिशत अथवा 0.3 मिली प्रति लीटर की दर से घोलकर करने की सलाह दी है।

इसके बाद मंजरी के फूल खिलने का इंतजार करें। इसके पश्चात जब फल सरसों के दाने के बराबर हो जाए, तब दूसरा छिड़काव थायमैथोक्साम 0.005 प्रतिशत अथवा 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए। अंत में, जब फल मटर के दाने के आकार के हो जाएं और कीट दिखाई दें, तब 0.15 प्रतिशत अथवा 3 ग्राम कार्बरिल प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है। इस प्रकार बौर में कीट नियंत्रण कर बेहतर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

आम उत्पादन में प्रकृति की भूमिका बेहद अहम
आम की पैदावार एवं फलों के ठहराव में प्रकृति की बेहद अहम भूमिका होती है। अक्सर वृक्ष पर फलों के आने का तथा लू, तेज हवाएं, आंधी और तूफान आने का प्रायः एक ही समय होता है। प्रकृति के इस परिवर्तन के कारण आम के पेड़ की टहनियों से फल टूटकर गिर जाते हैं, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है। इस तरह, प्रकृति अक्सर आम की फसल को प्रभावित करती है, जिससे उत्पादन में प्रकृति की भूमिका बेहद अहम मानी जाती है।

जनपद में मुख्य रूप से दशहरी, लंगड़ा और चौसा प्रजाति के वृक्ष हैं, जिनमें सर्वाधिक वृक्ष दशहरी के हैं। मंजरी अच्छी आ रही है, जिससे आम के अच्छे उत्पादन का अनुमान है। बागवान किसी भी सहायता के लिए जिला उद्यान कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं- रवि चंद्र जयसवाल, जिला उद्यान अधिकारी, कासगंज।

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