हाई कोर्ट का प्रशासन को सख्त निर्देश, कहा- व्यावसायिक वाहन को मनमाने ढंग से जब्त करना अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन 

हाई कोर्ट का प्रशासन को सख्त निर्देश, कहा- व्यावसायिक वाहन को मनमाने ढंग से जब्त करना अनुच्छेद 19(1)(जी) का उल्लंघन 

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने व्यावसायिक वाहन के जब्तीकरण के संबंध में नियमों को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब्ती का अर्थ किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करना है। संविधान के अनुच्छेद 300ए में यह प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को कानूनी अधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा। किसी व्यक्ति द्वारा अपने व्यापार या व्यवसाय के लिए उपयोग किए जा रहे वाहन को मनमाने ढंग से जब्त करना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत किसी नागरिक के व्यापार, व्यवसाय या कारोबार को जारी रखने के मौलिक अधिकार का गंभीर अतिक्रमण है। 

अतः कोर्ट ने गत वर्ष अक्टूबर में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम,1955 के तहत भदोही के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित वाहन जब्ती आदेश को रद्द करते हुए संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को एक सप्ताह के भीतर वाहन के पंजीकृत मालिक से समान राशि के व्यक्तिगत बांड और जमानत लेने के बाद वाहन के संबंध में उचित रिहाई आदेश पारित करने का निर्देश दिया। 

यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकलपीठ ने कमरे आलम की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार पश्चिम बंगाल से वध के लिए तीन बैल, सात गाय, एक बछड़ा और एक मृत बैल को ले जाने के लिए वाहन का इस्तेमाल किया गया था। याची ने डीएम के समक्ष आपत्ति प्रस्तुत करते हुए वाहन को मुक्त करने की मांग की और उसने ट्रायल में पूरा सहयोग करने का भी वादा किया। याची ने डीएम को यह भी बताया कि उसके वाहन से कोई गाय या गोवंश जब्त नहीं किया गया था बल्कि पुलिस ने अवैध धन की मांग पूरी न होने के कारण उसके वाहन को जब्त कर लिया, लेकिन डीएम ने उसकी आपत्तियों को खारिज कर जब्ती आदेश पारित कर दिया। उसके बाद याची ने डीएम के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में वर्तमान याचिका दाखिल की और तर्क दिया कि आदेश अवैध और मनमाने ढंग से पारित किया गया है। 

मामले पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि धारा 5ए द्वारा गोवंश के परिवहन को  विनियमित किया जाता है और धारा 5 ए(7) जिला मजिस्ट्रेट/ पुलिस आयुक्त को उस वाहन को जब्त करने की शक्ति प्रदान करती है, जिसके द्वारा इस अधिनियम और प्रासंगिक नियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए गोवंश या गोमांस का परिवहन किया जाता है। कोर्ट ने प्राथमिकी के अवलोकन में पाया कि  प्रयागराज से पश्चिम बंगाल वध के लिए मवेशियों को ले जाए जाने के आरोप अप्रासंगिक थे, क्योंकि कानून के अनुसार मवेशियों को उत्तर प्रदेश के भीतर से राज्य के बाहर ले जाने पर संबंधित कानून का उल्लंघन माना जाएगा जबकि वर्तमान मामले में जब्त किए गए मवेशियों को भदोही में पकड़ा गया जो राज्य की सीमा से बहुत दूर है। इस प्रकार यह नहीं माना जा सकता है कि मवेशियों को राज्य के बाहर ले जाया जा रहा था। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिनियम, 1955 की धारा 5ए के अनुसार राज्य के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर गोवंश के परिवहन के लिए किसी परमिट की आवश्यकता नहीं है। अतः मौजूदा मामले में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है।

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