प्रयागराज : विश्वविद्यालय से 55 वर्षों तक उत्तर पुस्तिकाओं के संरक्षण की अपेक्षा रखना गलत

अमृत विचार, प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर पुस्तिकाओं में अंकों के संशोधन की मांग पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा 55 वर्षों तक उत्तर पुस्तिकाओं को सुरक्षित रखना संभव नहीं है। जहां स्पष्ट रूप से निर्विरोध मामलों की उत्तर पुस्तिकाएं कुछ वर्षों के बाद हटा दी जाती हैं, वहां विश्वविद्यालय से इतने लंबे समय बाद उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन करने की मांग करना उचित नहीं है। उक्त टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने प्रयागराज निवासी अपीलकर्ता अश्विनी कुमार की विशेष अपील को खारिज करते हुए की।
दरअसल 76 वर्षीय वरिष्ठ नागरिक/मौजूदा अपीलकर्ता ने वर्ष 1967 में अपने स्नातक परिणाम का नए सिरे से मूल्यांकन करने की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद से वर्ष 1963 से 1970 तक के यानी हाईस्कूल से लेकर एमए फाइनल तक के वार्षिक प्रदर्शनों का पुनर्मूल्यांकन कर अंक प्रदान करने की प्रार्थना की है। बता दें कि अपीलकर्ता को मार्च- अप्रैल 2022 में स्नातक परीक्षाओं में अपनी उत्तर पुस्तिकाओं के घोर अवमूल्यांकन की जानकारी मिली, जिससे व्यथित होकर उन्होंने एकल न्यायाधीश के समक्ष याचिका दाखिल की।
जिसके खारिज होने के बाद वर्तमान विशेष अपील दाखिल की गई।कोर्ट ने अपील पर विचार करते हुए यह माना कि 55 वर्ष बाद बिना किसी कारण या उद्देश्य का खुलासा किये केवल अपने सम्मान की लड़ाई के नाम पर अंकों में संशोधन की मांग अपीलकर्ता के गैर-जिम्मेदाराना रवैये को उजागर करता है। अपील में कोई सार नहीं है। अपीलकर्ता को विलंबित चरण में अपने सम्मान के लिए लड़ने की क्या आवश्यकता पड़ी, इस वजह का भी खुलासा नहीं किया गया है।
55 वर्ष से अधिक का समय बीत जाने के बाद कार्रवाई के कारण को स्पष्ट नहीं किया गया है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता का मामला बेहद अस्वाभाविक है। यह संभव नहीं है कि वह वर्ष 1965-66 में दिए गए अपने अंकों से अनभिज्ञ थे और 55 साल बाद उन अंकों में सुधार करने की मांग का औचित्य व्यर्थ की कवायद प्रतीत होता है।
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