Lok Sabha Election 2024: बांदा-चित्रकूट से भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल क्यों बोले, मेरी भूल की सजा मोदीजी को न देना...

बांदा-चित्रकूट से भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल ने पत्रकारों से बातचीत की

Lok Sabha Election 2024: बांदा-चित्रकूट से भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल क्यों बोले, मेरी भूल की सजा मोदीजी को न देना...

चित्रकूट, अमृत विचार। राजनीति की डगर कठिन होती है। राजनीति करना दुधारी तलवार पर चलने के समान है, यह वर्तमान सांसद और भाजपा प्रत्याशी आरके सिंह पटेल से बेहतर कौन जानता होगा। नामांकन वाले दिन जिस तरह से उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान जिस तरह से आरके ने अपने जाने अनजाने में की गई गलतियों के लिए माफी मांगी और यह तक कह दिया कि अगर मुझसे कोई भूल हुई है तो उसकी सजा मोदीजी को मत देना। 

राजनीति में इस बार जितने ज्यादा विरोध का सामना आरके को करना पड़ रहा है, शायद उतना उनको लंबे करियर में कभी न करना पड़ा होगा। सोशल मीडिया में एक समुदाय के लोग जहां राजनीति के इस धुरंधर के खिलाफ मोर्चा खोले हैं तो वहीं पार्टी के अंदर से भी उनको तमाम चुनौतियां मिल रही हैं। 

पूर्व सांसद भैरों प्रसाद मिश्र तो खुलकर कह चुके हैं कि पार्टी से प्रत्याशी चयन में गलती हुई है और बांदा-चित्रकूट लोकसभा सीट में पार्टी की स्थिति कमजोर है। पार्टी के अंदरखाने की मानी जाए तो कई नेता दिखावे में तो आरके के साथ हैं पर वे भी जड़ों में मट्ठा ही डाल रहे हैं। 

ऐसा नहीं है कि जिले की राजनीति के इस महारथी को इन बातों का भान न हो, इस बार की लड़ाई कठिन है, दुष्कर है, यह वह भली भांति जानते हैं। बसपा से राजनीतिक करियर शुरू करने वाले आरके दो बार सांसद और तीन बार विधायक बन चुके हैं। बसपा सरकार में तो वह कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी द्वारा दुबारा प्रत्याशी बनाने के बाद जो बाडी लैंग्वेज इनके समर्थकों की दिखती थी, उसमें फर्क तो आया है, यह खुद उनके समर्थक आपसी बातचीत में मानते हैं। 

बीते दिन नामांकन के दौरान जिस तरह से आरके ने लगभग साढ़े तीन मिनट तक पत्रकारों से बातचीत में जाने अनजाने की गई गलतियों की माफी मांगी, वह उनके समर्थकों के साथ उनके विरोधियों के लिए भी अप्रत्याशित थी। गौरतलब है कि पिछली बार जीतने के बाद कम से कम एक माह तक आरके ने कई बार अपने समुदाय को ही यह कहकर निशाने पर लिया था कि वह एक जाति के भरोसे नहीं जीतते। 

उनके विरोधी अब इसी बात को याद दिलाकर उनकी राह को कठिन करने में जुटे हैं। इसके अलावा पटेल समुदाय से सपा ने भी अपना उम्मीदवार उतारा है। बसपा ने भी ब्राह्मण समुदाय से प्रत्याशी उतारकर चुनौतियों की दीवार पर और सीमेंट लगा दी है। जिले की राजनीति जाति आधारित है, यह कौन नहीं जानता। 

ऐसे में बीते दिन जिस तरह से क्षमाशील मुद्रा में आरके नजर आए, उससे एक बात तो तय दिखी कि वह भी जान चुके हैं कि इस बार की राह उतनी आसान नहीं। उनका राजनीतिक करियर इस बार दांव पर है। अनौपचारिक बातचीत में तो अब आरके के समर्थक भी मान लेते हैं कि वह चौतरफा चुनौतियां का सामना कर रहे हैं। 

हालांकि आरके के धुर विरोधी भी इस बात को मानते हैं कि राजनीति के इस चतुर खिलाड़ी से पार पाना उतना आसान नहीं। आरके और दद्दू प्रसाद ने लगभग साथ साथ राजनीति शुरू की थी। बताने की जरूरत नहीं कि राजनीति में आज दद्दू कहां हैं और हवा को भांपकर राजनीतिक शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे चलने वाले आरके कहां। 

...तो सांसद की इस मुद्रा के भी मायने

बसपा के बाद सपा और फिर भाजपा में आए आरके ने हर दल से लखनऊ या फिर दिल्ली में प्रतिनिधित्व भी किया। और ऐसे में अगर आरके क्षमाप्रार्थी मुद्रा में हैं तो, जिले की राजनीति के जानकारों के अनुसार, उसके भी मायने हैं। आरके ने बीते दिन पत्रकारों से बातचीत में कहा, मैंने तीस साल की राजनीति में किसी के साथ भेदभाव नहीं किया... भाई भाई को लड़ाने का काम नहीं किया...अगर जानते हुए भी अनजाने में, मैं भी इंसान हूं, भूल हुई है तो उनसे क्षमा चाहता हूं। अगर मुझसे कहीं भूल हुई है तो उसकी सजा मोदी जी को मत देगा कोई कार्यकर्ता...। 

आदमी को अपनी कमियां नजर नहीं आती हैं। कमियां अगर खोजी जाएं तो मिल जाएंगी कमियां...। ऐसी कमियां अगर रह गई हैं तो इसके लिए भी मैंने कहा है कि मैं, आम अवाम से देवतुल्य कार्यकर्ताओं से सारी कहता हूं, क्षमा मांगता हूं। मैं बहुत बड़ा राजा नहीं हूं, शहंशाह नहीं हूं, एक कार्यकर्ता हूं...। अब देखना होगा कि हवा का रुख पहचानकर राजनीति के कुशल 'नाविक' आरके सिंह पटेल अपनी नाव इस बार पार लगा पाते हैं कि नहीं।

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