बरेली: संघमित्रा के लिए सीट की तलाश आंवला में होगी पूरी?, स्वामी प्रसाद की अखिलेश से मुलाकात के बाद प्रत्याशी बदलने के कयास

बरेली: संघमित्रा के लिए सीट की तलाश आंवला में होगी पूरी?, स्वामी प्रसाद की अखिलेश से मुलाकात के बाद प्रत्याशी बदलने के कयास

बरेली, अमृत विचार: बदायूं, बरेली और पीलीभीत की सीटों पर भाजपा के अपने पत्ते खोलने के बाद सपा में एक बार फिर नए सिरे से रणनीति बनाने के कयासों को हवा मिलनी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि बदायूं में भाजपा का दोबारा प्रत्याशी बनने की दौड़ से बाहर हुई संघमित्रा के लिए सीट की तलाश आंवला में पूरी हो सकती है। संघमित्रा के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद बुधवार को पार्टी में इसकी चर्चा भी शुरू हो गई।

भाजपा में मंडल की पांच सीटों में से तीन सीटों पर अपने सांसदों का टिकट इस चुनाव में काटा है। इनमें बरेली के सांसद रहे संतोष गंगवार 75 साल की उम्र पार कर चुके हैं और टिकट कटने के बाद अपनी राजनीतिक पारी के समापन की भी घोषणा कर चुके हैं। पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी के बारे में कई तरह की अटकलें लग रही थीं, लेकिन बुधवार को पीलीभीत में नामांकन प्रक्रिया पूरी होने के बाद उन पर भी विराम लग चुका है। अब सिर्फ संघमित्रा ही रह गई हैं जिन्हें किसी नई पार्टी के साथ नए सिरे से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करनी है।

टिकट कटने की स्थिति में संघमित्रा के बदायूं से सटी मौर्य बहुल आंवला सीट पर चुनाव लड़ने के कयास पहले से लगाए जा रहे थे लेकिन उनके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य की सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मुलाकात के बाद पार्टी में बुधवार को यह चर्चा तेजी से फैली। कहा जा रहा है कि हाईकमान ने जिले के नेताओं से इस बारे में फीडबैक मांगा है। सपा ने आंवला से अब तक नीरज मौर्य को प्रत्याशी घोषित कर रखा है लेकिन उन्हें अब तक वहां अपने पैर जमाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। इसे देखते हुए बहुत संभव माना जा रहा है कि पार्टी आंवला में अपना प्रत्याशी बदलकर संघमित्रा को उतारने का फैसला कर ले।

अंदरखाने इस तरह की संभावना जता रहे पार्टी के लोग यह भी तर्क दे रहे हैं कि आंवला प्रत्याशी नीरज मौर्य की स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ काफी नजदीकी रही है। स्वामी प्रसाद ही उन्हें भाजपा से सपा में लाए थे, इसलिए इस बात की उम्मीद नहीं है कि नीरज मौर्य अपनी जगह संघमित्रा को आंवला से चुनाव लड़ाने का फैसला होने पर बहुत ज्यादा विरोध करें। 

हालांकि संघमित्रा की ओर से टिकट कटने के बाद भाजपा के ही साथ रहने का दावा किया गया है, लेकिन इसे सिर्फ राजनीतिक बयान माना जा रहा है। पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि बरेली में तीसरे चरण में मतदान होना है, इसलिए पार्टी के पास आंवला सीट पर फैसला करने के लिए काफी वक्त है।

मौर्य प्रत्याशी ही दे सकता है कड़ी टक्कर
आंवला लोकसभा क्षेत्र में मौर्य बिरादरी के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। इसी वजह से सपा ने शाहजहांपुर की जलालाबाद सीट से विधायक रहे नीरज मौर्य को यहां लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने 2004 के चुनाव में मौर्य बिरादरी के सुधीर मौर्य को आंवला से प्रत्याशी बनाया था जो सिर्फ तीन हजार वोटों से हार गए थे। सुधीर मौर्य के इसी प्रदर्शन के कारण अगली बार बसपा ने उन्हें बरेली सीट से प्रत्याशी घोषित किया लेकिन नामांकन के तीन दिन पहले उमेश गौतम बसपा का टिकट ले आए। इसके बाद सुधीर मौर्य ने बसपा से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली थी।

बरेली मंडल में अबकी पिछली बार से ज्यादा कड़े हो सकते हैं मुकाबले
चुनावी तस्वीर जैसे-जैसे साफ हो रही है, उससे बरेली मंडल की कई सीटों पर पिछली बार से ज्यादा कड़े मुकाबले होने के आसार बनते जा रहे हैं। बरेली में भाजपा की ओर से छत्रपाल सिंह गंगवार पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहे हैं और उनका मुकाबला पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन से होना है। पीलीभीत में भाजपा की ओर से जितिन प्रसाद और बदायूं में दुर्विजय सिंह शाक्य भी पहली बार उतारे गए हैं।

सपा प्रत्याशियों के चयन से लेकर रणनीति बनाने तक पूरा जोर लगा रही है। बदायूं में धर्मेंद्र यादव की जगह शिवपाल सिंह को चुनाव मैदान में उतारा जा चुका है। अब आंवला में भी सिर्फ इसलिए प्रत्याशी बदले जाने की संभावना जताई जा रही है ताकि मुकाबले में कोई कमी न रहे।

बरेली में महिला मुस्लिम को उतार सकती है बसपा
बसपा का जोर मुस्लिम प्रत्याशी पर ही है। पार्टी ने मंडल की पांच सीटों में से अब तक तीन पर प्रत्याशी घोषित किए हैं जिनमें से दो मुस्लिम हैं। बरेली से भी पहले पार्टी की ओर से चुनाव लड़ चुके मुस्लिम प्रत्याशी को दोबारा टिकट देने की चर्चा थी लेकिन अब इसमें फेरबदल की संभावना जताई जा रही है। बताया जा रहा है कि एक राजनीतिक परिवार की मुस्लिम महिला को प्रत्याशी बनाने पर विचार किया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव में उतारने से सपा की राह कठिन होती जा रही है।

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