अशोभनीय बयानबाजी

अशोभनीय बयानबाजी

भारतीय राजनीति में महिलाओं की सहज भागीदारी तमाम चुनौतियों के बीच अभी भी एक दुष्कर कार्य है। जेंडर संवेदनशीलता के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों का रवैया एक जैसा है। राजनीति से जुड़ी महिलाओं को अभद्र भाषा से लेकर अपमानजनक टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है।

प्रसिद्ध अभिनेत्री हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी कंगना रनौत के विरुद्ध कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत और एचएस अहीर की अशोभनीय टिप्पणी पर राजनीतिक  विवाद खड़ा हो गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने चुनाव आयोग से कार्रवाई की मांग की है।

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने मंगलवार को कहा कि लोकसभा चुनाव लड़ रहीं अभिनेत्री कंगना रनौत और उनके निर्वाचन क्षेत्र मंडी के खिलाफ कांग्रेस नेताओं की कथित अपमानजनक टिप्पणियों की कानूनी समीक्षा की जाएगी।

हालांकि, सुप्रिया श्रीनेत के इंस्टा अकाउंट से कंगना रनौत के लिए लिखी गई पोस्ट पर सफाई दे दी है, लेकिन ऐसा व्यवहार असहनीय और महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है। पोस्ट में पूछा गया कि मंडी में क्या भाव चल रहा है? विरोध के रास्तों पर हार मानकर एक ऐसी ओछी बात कह देना, जिससे  औरत की अस्मिता और उसकी इज्जत पर प्रहार हो, यह राजनीति का गिरता स्तर ही बताता है। 

गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनावों से पहले सपा नेता आजम  खान ने भी अभिनेत्री जया प्रदा के लिए अमर्यादित टिप्पणी की थी। राजनीति ही नहीं सार्वजनिक जीवन में जितनी भी महिलाएं हैं, चाहे वो नेता हो, अभिनेत्री हों या खिलाड़ी, उनके चरित्र और व्यवहार का रिमोट लोग अपने हाथ में ही रखना चाहते हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल 2020 की रिपोर्ट बताती है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान 95 भारतीय महिला राजनेताओं के ट्वीट का विश्लेषण करने पर पाया गया कि महिला राजनेताओं के बारे में सात में से एक ट्वीट अपमानजनक था। दुर्भाग्यपूर्ण है कि खुद एक महिला होने के बावजूद कांग्रेस प्रवक्ता ने एक अन्य महिला के खिलाफ ऐसी ओछी टिप्पणी की और यह कहकर पीछे हटने की कोशिश कर रही हैं कि किसी ने उनके दूसरे खाते का इस्तेमाल किया है।

इसको समाप्त करने के लिए या कम करने के लिए राजनीतिक दलों के पास कोई दूरगामी योजना नहीं है। महिलाओं के विरुद्ध अश्लील और अपमानजनक टिप्पणी करने पर कार्यवाही करने का कोई नियम कायदा तक राजनीतिक दलों में नहीं है। भारतीय राजनीति किस तरह से जेंडर संवेदनशील हो सकती है? इसके लिए भी किसी राजनीतिक दलों के पास कोई आचार संहिता नहीं है। सच्चाई यही है कि राजनीति के लगातार गिरते स्तर ने हमें ऐसे विचारों का आदी बना दिया है।