World TB Day: राजा की बुराई के नाम से जानी जाती थी टीबी, जन सहभागिता से राजरोग अब खात्मे की ओर

World TB Day: राजा की बुराई के नाम से जानी जाती थी टीबी, जन सहभागिता से राजरोग अब खात्मे की ओर

लखनऊ, अमृत विचार। राजरोग,यक्ष्मा, क्षय रोग, टी.बी., तपेदिक ट्यूबरकुलोसिस सब एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, कई नामों वाले इस रोग के प्रति पूर्व में यह धारणा थी कि यह ठीक ना होने वाला रोग है संभवतः इसीलिए इसे राजरोग कहा जाने लगा था और होता भी कुछ ऐसा ही था, 1990 में फार्मेसी की शिक्षा ग्रहण कर घर लौटने के बाद टीबी से कई मौतों का गवाह मैं स्वयं हूं । टीबी एक ऐसा रोग है जो कभी बड़ा छोटा नहीं देखता, विश्व के अनेक महान और महत्वपूर्ण लोगों को यह रोग हो चुका है इसमें से कुछ ठीक हो चुके हैं और कुछ कि इससे मृत्यु भी हो गई है ।

टीबी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से उत्पन्न होने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो अपने गंभीर सामाजिक प्रभावों के कारण मानव इतिहास में हमेशा एक स्थायी चुनौती रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि जीनस माइकोबैक्टीरियम की उत्पत्ति 150 मिलियन वर्ष से भी पूर्व हो चुकी थी। मध्य युग में, ग्रीवा लिम्फ नोड्स को प्रभावित करने वाली बीमारी स्क्रोफुला को टीबी का नया रूप बताया गया है । इस बीमारी को इंग्लैंड और फ्रांस में “राजा की बुराई” के रूप में जाना जाता था ।  यह जानकारी उत्तर प्रदेश स्टेट फार्मेसी काउंसिल के पूर्व चेयरमैन सुनील कुमार यादव ने दी है।

सुनील कुमार यादव ने बताया कि 1720 में पहली बार टीब. की संक्रामक उत्पत्ति का अनुमान ब्रिटिश चिकित्सक बेंजामिन मार्टन ने लगाया गया था। टीबी के खिलाफ पहला सफल उपाय सेनेटोरियम इलाज की शुरूआत थी जिसे अक्सर पुराने चलचित्रों में भी देखा जा सकता है । इसे ‘व्हाइट प्लेग’ के नाम से भी जाना जाता है। कारक जीव की पहचान सबसे पहले रॉबर्ट कॉक्सने की थी और इसलिए इसे कॉक्सरोग के रूप में जाना जाता है। टीबी रोधी दवाओं की खोज से पहले,इसका उपचार आम तौर पर रूढ़िवादी तरीके से किया जाता था ।1952 में खोजी गई पहली टीबी विरोधी दवा स्ट्रेप्टोमाइसिन थी ।

लक्ष्य

सुनील कुमार यादव लिखते हैं कि भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश को 2025 तक टीबी मुक्त देश बनाने का लक्ष्य रखा है, यह लक्ष्य विश्व के टी.बी. फ्री होने के लक्ष्य 2030 से 5 वर्ष पहले का प्रस्तावित किया गया है । प्रधानमंत्री जी ने दिनांक 13 मार्च 2018 को टीबी फ्री भारत योजना को शुरू किया । भारत में जन सहभागिता बढ़ाते हुए देश में निशुल्क उपचार और टी.बी. के रोगियों के लिए पौष्टिक भोजन हेतु धनराशि दिए जाने की भी व्यवस्था की गई है । हमारे देश के फार्मा वैज्ञानिकों और उद्योगों ने टी.बी. के खात्मे के लिए कमर कस ली है देश की फार्मेसी लगातार इस क्षेत्र में कार्य कर रही है । चिकित्सकों के साथ मिलकर फार्मासिस्ट जन जागरूकता को बढ़ाने, मरीजो तक औषधियों की उपलब्धता कराने, रोग और दवाओं के प्रति मरीज को जागरूक कर इस रोग के खात्मे के लक्ष्य की तरफ अग्रसर है । देश में आशा, आंगनवाड़ी आदि का भी सहयोग लिया जा रहा है ।

विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से रोग के प्रसार को रोकने की लिए सावधानियां बरते जाने की जानकारियां भी दी जा रही है । कॉविड के समय लोगों को व्यवहार परिवर्तन, सफाई, मास्क के प्रयोग आदि की जो समझ उत्पन्न हुई है वह भी इस रोग के खात्मे का कारक बनेगी ।

टीबी का इतिहास

24, मार्च 1882 को जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने ट्यूबरक्लोसिस के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज की जो बाद में टी.बी.के इलाज में बहुत सहायक साबित हुई।   उन्हें अपनी इस खोज के लिए वर्ष 1905 में नोबेल पुरस्कार भी प्रात्प हुआ। 

इस तहर होता है संक्रमण

सुनील यादव बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार फेफड़ों की टी.बी. से पीड़ित लोग खांसते, छींकते या थूकते हैं तो टीबी का संक्रमण हवा के माध्यम से फैल सकती है। किसी व्यक्ति को टी.बी. संक्रमित होने के लिए केवल मात्र कुछ ही कीटाणुओं को सांस के माध्यम से अंदर लेने की जरूरत होती है।

संक्रामकता

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 10 मिलियन लोग  टी.बी. से बीमार पड़ते हैं। यह बीमारी अब रोकथाम के योग्य है और इसका इसका इलाज भी संभव है, फिर भी बीमारी होने के बाद हर साल 1.5 मिलियन लोग टीबी से मरते हैं, जिससे यह दुनिया का शीर्ष संक्रामक रोग है जिससे लोगों की मौत होती है। यह जानकारी भी सामने आई है जिसमें एचआईवी से पीड़ित लोगों की मृत्यु का प्रमुख कारण टी.बी. है ।

टीबी से बीमार पड़ने वाले अधिकांश लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, लेकिन टी.बी. पूरी दुनिया में मौजूद है। टी.बी. से पीड़ित सभी लोगों में से लगभग आधे से अधिक 8 देशों में पाए जाते हैं: बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका। अनुमान है कि वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित हो गया है, लेकिन अधिकांश लोगों में टी.बी. रोग विकसित नहीं होगा और कुछ लोग संक्रमण से मुक्त हो जाएंगे। जो लोग संक्रमित हैं लेकिन अभी तक इस रोग से बीमार नहीं पड़े हैं, वे इसे प्रसारित नहीं कर सकते।

एक रिपोर्ट के अनुसार अगर कोई मरीज जिसका बलगम टी.बी. के बैक्टीरिया के लिए धनात्मक है,यदि वह इलाज नहीं लेता है तो एक वर्ष में 10 से 15 नए मरीज को संक्रमित कर सकता है और उसके परिवार में ज्यादा संक्रमण फैलने की संभावना होती है ।

टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों में जीवनकाल में टीबी से बीमार पड़ने का जोखिम 5-10% होता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों, जैसे एचआईवी, कुपोषण या मधुमेह से पीड़ित लोग, या जो लोग तंबाकू का उपयोग करते हैं, उनके बीमार पड़ने का खतरा अधिक होता है।

विश्व टीबी दिवस 

राबर्ट कॉक्सके रिसर्च को सम्मान देने के लिए 24 मार्च को विश्व क्षय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन टीबी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है । 

कहां होती है टीबी 

वैसे टी.बी. का नाम सुनते ही केवल फेफड़ों की टीबी दिमाग में आती है लेकिन ‘बाल और नाखून’ शरीर के इन दो हिस्सों को छोड़कर पूरे शरीर के किसी भी अंग में टी.बी. हो सकती है । जहां फेफड़ों की टी.बी. को पलमोनरी टी.बी. कहा जाता है, वहीं शरीर के अन्य हिस्से में होने वाले टी.बी. को एक्स्ट्रा पलमोनरी टी.बी. कहा जाता है ।

अनुमान है कि वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित है। टी.बी. से संक्रमित लगभग 5-10% लोगों में अंततः लक्षण दिखाई देंगे और उनमें टी.बी. रोग विकसित हो जाएगा।

जो लोग संक्रमित हैं लेकिन (अभी तक) बीमार नहीं हैं, वे इसे प्रसारित नहीं कर सकते। टी.बी. रोग का इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है और इलाज के बिना यह घातक हो सकता है।

वैक्सीन

भारत में टी.बी. से बचाव के लिए शिशुओं या छोटे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद बैसिल कैलमेट-गुएरिन (बीसीजी) टीका दिया जाता है। टीका फेफड़ों के बाहर टी.बी. को रोकता है लेकिन फेफड़ों में नहीं । यदि जन्म के समय या टीका नहीं लग पाता तो इसे एक वर्ष के भीतर कभी भी लगाया जा सकता है ।

रिस्क फैक्टर

कुछ स्थितियां ऐसी होती है जिसमें टीबी होने की संभावना और उसके खतरे बढ़ सकते हैं

धूम्रपान
ऑटोइम्यून रोग 
मधुमेह (उच्च रक्त शर्करा), 
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (जैसे एचआईवी या एड्स संक्रमित ),
कुपोषण
तंबाकू इस्तेमाल

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