नारी शक्ति वंदन से हिचकते रहे राजनीतिक दल; कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में अब तक नौ महिलाओं ने ही किया संसद में प्रतिनिधित्व

क्षेत्र की 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा और सपा ने अभी तक दिया है एक-एक टिकट

नारी शक्ति वंदन से हिचकते रहे राजनीतिक दल; कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में अब तक नौ महिलाओं ने ही किया संसद में प्रतिनिधित्व

कानपुर, मनोज त्रिपाठी। कानपुर-बुंदेलखंड को वीरांगनाओं की धरती कहा जाता है। वीरांगना लक्ष्मीबाई, अजीजन बाई, मैनावती, आजाद हिंद फौज की सेनानी लक्ष्मी सहगल जैसे तमाम नाम इस इलाके में आज भी शौर्य के प्रतिमान हैं, और गर्व से लिए जाते हैं। लेकिन महिलाओं की नेतृत्व क्षमता को आगे बढ़ाने में राजनीतिक दलों ने कभी बड़ी दिलचस्पी नहीं दिखाई। यहां तक कि नारी शक्ति वंदन बिल पारित होने के बाद होने जा रहे लोकसभा चुनाव में अभी तक महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में सभी दल पुराने ढर्रे पर ही नजर आ रहे हैं।   

कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में 10 लोकसभा सीटें आती हैं। भाजपा इनमें कानपुर को छोड़कर बाकी नौ सीटों पर पार्टी प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। लेकिन महिला प्रतिनिधित्व की बात करें तो फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति को ही टिकट मिला है। गठबंधन में सपा ने जो टिकट दिए हैं, उनमें उन्नाव से अन्नू टंडन का ही नाम सामने आया है, जबकि कांग्रेस ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र का राजनैतिक इतिहास देखें तो भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा जैसे सभी प्रमुख दल महिलाओं को लोकसभा प्रत्याशी बनाने में हिचकते ही रहे हैं। यही वजह है कि वर्ष 1952 से अब तक इस क्षेत्र से नौ महिलाएं ही संसद में पहुंच सकी हैं। 

यही महिला नेता पहुंची संसद

सावित्री निगम, सुशीला रोहतगी, शीला दीक्षित, अन्नू टंडन (सभी कांग्रेस), सुखदा मिश्रा, साध्वी निरंजन ज्योति, कमल रानी वरुण (सभी भाजपा), सुभाषिनी अली (माकपा), डिंपल यादव (सपा)

कानपुर में माकपा व बसपा को छोड़ किसी ने नहीं दिया टिकट 

कानपुर लोकसभा सीट पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी को छोड़कर किसी दल ने महिलाओं पर भरोसा नहीं जताया। वर्ष 1989 में माकपा ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल की पुत्री सुभाषिनी अली को कानपुर सीट से प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव जीत गईं। लेकिन वर्ष 1991 में भाजपा के कैप्टन जगतवीर सिंह द्रोण के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद माकपा उन पर भरोसा नहीं टूटा। वर्ष 1996 और 2004 में पार्टी ने उन्हें फिर टिकट दिया गया। लेकिन वह दोबारा चुनाव नहीं जीत नहीं सकीं। सुभाषिनी के अतिरिक्त वर्ष 2009 में बहुजन समाज पार्टी ने सुखदा मिश्रा को प्रत्याशी बनाया था, जो तीसरे स्थान पर रही थीं। भाजपा, कांग्रेस और सपा तो कानपुर सीट पर महिलाओं से किनारा ही किए रहीं।

अकबरपुर लोकसभा सीट, सिर्फ बसपा ने दिया मौका

कानपुर से जुड़ी बिल्हौर लोकसभा सीट परिसीमन के बाद 2009 में अकबरपुर लोकसभा सीट में बदल गई थी। अकबरपुर सीट पर तीन चुनाव हो चुके हैं, लेकिन वर्ष 2019 में बसपा से उतरीं निशा सचान के अलावा किसी राजनीतिक दल ने यहां से महिला प्रत्याशी को नहीं उतारा है। निशा सचान को पिछले चुनाव में भाजपा के देवेंद्र सिंह भोले ने बड़े अंतर से हरा दिया था।

जब यह निर्वाचन क्षेत्र बिल्हौर लोकसभा सीट के रूप में जाना जाता था, तब  बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय की प्रपौत्री सुशीला रोहतगी को कांग्रेस ने वर्ष 1967 में चुनाव मैदान में उतारा था। सुशीला रोहतगी इसके बाद वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में भी यहां से चुनाव जीती थीं। इसी तरह जब कानपुर देहात में घाटमपुर लोकसभा सीट थी तो भाजपा के टिकट पर वर्ष 1996 और 1998 में कमल रानी वरुण सांसद बनी थीं।

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