World Sepsis Day 2023: अपने मन से दवा खाना सेप्सिस रोग को दे सकता है दावत, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

लखनऊ, अमृत विचार। सेप्सिस के खिलाफ लड़ाई के लिये यह जरुरी है कि हम एण्टीबायोटिक्स का इस्तेमाल विवेकपूर्वक करें। सही समय पर सही एण्टीबायोटिक्स का इस्तेमाल ही काफी नही है, अपितु यह भी जानना है कि इसका इस्तेमाल कब नहीं करना है। यह जानकारी किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी स्थित पलमोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागा विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वेद प्रकाश ने दी। वह विश्व सेप्सिस दिवस पर आयोजित प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे।
सेप्टिसीमिया का अर्थ है
प्रोफेसर वेद प्रकाश ने बताया कि सेप्टिसीमिया खून में संक्रमण की वजह से शरीर के विभिन्न अंगों में नुकसान होता है जिससे ब्लड प्रेशर में कमी, अंगो का निष्क्रिय होना (मल्टी आर्गन फेल्योर) हो सकता है। अगर सही समय पर इसकी पहचान एवं उपचार ना किया जाये तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।
महत्वपूर्ण तथ्य
सेप्सिस सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। प्रतिवर्ष 5 करोड़ लोग इससे ग्रसित होते है। इसमें 40 प्रतिशत मामले, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चो में होते हैं। पूरे विश्व में सेप्सिस के कारण प्रतिवर्ष लगभग 01 करोड 10 लाख लोगो की मृत्यु होती है। दुनिया भर में 5 में से 1 मृत्यु सेप्सिस से होती है एवं अस्पतालों में होने वाली मृत्यु में सबसे बडा कारण सेप्सिस है। सेप्सिस से सबसे ज्यादा मृत्यु बुजुर्ग एवं बच्चों में होती है।
सेप्सिस के प्रमुख कारण
निमोनिया, मूत्र मार्ग में संक्रमण, सर्जिकल साइट संक्रमण इत्यादि। सेप्सिस का जोखिम - कैंसर डायबिटीज आदि जैसी प्रतिरक्षा तंत्र कम करने वाली बीमारियों के ग्रजित लोगों में सबसे ज्यादा होता है। भारत में एक वर्ष में लगभग 1 करोड 15 लाख लोग सेप्सिस से ग्रसित होते हैं, लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु इससे होती है। भारत में सेप्सिस की मुत्यु दर प्रति लाख व्यक्ति है। एक अध्ययन के हिसाब से आईसीयू में 50 प्रतिशत से ज्यादा व्यक्ति सेप्सिस से ग्रसित रहते हैं जिसमें 45 प्रतिशत मामलें मल्टी ड्रग रेजिस्टेन्ट बैक्टीरिया के होते हैं।
सेप्सिस के कारण
यह विभिन्न कारणो से होती है। जिसमें बैक्टीरिया से होने वाला संक्रमण सबसे प्रमुख है। यह सेप्सिस का सबसे प्रमुख कारण है। यह विभिन्न प्रकार से हो सकता है, जैसे फेफडों का संक्रमण (निमोनिया), पेशाब के रास्ते का संक्रमण (यूटीआई), त्वचा एवं अन्य अंगों का संक्रमण इत्यादि। वायरल संक्रमण इसके उदाहरणों में- फ्लू (इन्फ्लूएंजा), एचआईवी, कोविड, डेंगू वायरस इत्यादि है।
फंगस संक्रमण- यह मुख्यतः ऐसे व्यक्तियों में होता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैं। इसके उदारण कैन्डिडा, एस्पराजिलस इत्यादि है। परजीवी संक्रमण का उदाहरण मलेरिया इत्यादि है। अस्पताल से प्राप्त संक्रमण में यह संक्रमण समुदाय से प्राप्त संक्रमण की तुलना में बहुत खतरनाक होता है। इसमें कैथेटर से होने वाले संक्रमण (जैसे - यूरो कैथेटर, सेन्ट्रल लाइन का संक्रमण), वेन्टीलेटर से होने वाला संक्रमण इत्यादि आता है।
मरीजों की अन्य बीमारियां जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है, जैसे- डायबिटीज, कैंसर, सीओपीडी इत्यादि बीमारियों में सेप्सिस का खतरा काफी बढ जाता है। एंटीबायोटिक्स का सही तरह से इस्तेमाल ना करना या बिना डाक्टर सलाह के एन्टीबायोटिक्स का इस्तेमाल करना, सेप्सिस को बढा सकता है।
सेप्सिस की बीमारी का पता लगाना
प्रोफेसर वेद प्रकाश ने बताया कि विभिन्न प्रकार की खून की जाँचों जैसे (सीबीसी/सीआरपी/पीसीटी इत्यादि) एवं चिकित्सकीय परीक्षण करके इसका पता लगाया जा सकता है एवं बीमारी का सही तरह से आँकलन करके उसका समय रहते समुचित इलाज दिया जा सकता है।
सेप्सिस का इलाज
उन्होंने बताया कि जैसा कहा जाता कि ‘‘शीघ्र पहचान तो सटीक इलाज‘‘ सेप्सिस के इलाज का मूल तंत्र यही है। अगर इसको शीघ्रता से पहचान लिया जाये एवं सही तरह से ऑकलन कर लिया जाये तो इसे नियंत्रित किया जा सकता है और समय रहते, मरीज का जान बचाई जा सकती है। सेप्सिस के इलाज के लिये एक समान्वित एवं साक्ष्य आधारित द्रष्टिकोण तथा इलाज की जरूरत होती है। सेप्सिस की रोकथाम के लिये सबसे जरूरी यह है कि जनमानस को सेप्सिस के प्रारम्भिक लक्षणों के बारे में जागरुक किया जाये।
सभी लोग अपने स्वास्थ्य को अपने दैनिक और व्यवसायिक कार्यों से ज्यादा महत्व दें एवं अपने शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र को बढाने के लिये संतुलित आहार, व्यायाम, एवं साफ सफाई का ध्यान रखें। अपने वातावरण को साफ सुथरा बनाकर रखें।बिना किसी योग्य चिकित्सक की सलाह के बिना किसी भी तरह की एंटीबायोटिक का इस्तेमाल न करें।
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