प्रयागराज : शैक्षणिक संस्थानों की दंड व्यवस्था में सुधारात्मक दृष्टिकोण आवश्यक

अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमेटी इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, गौतमबुद्ध नगर द्वारा की जाने वाली दंडात्मक कार्यवाही पर टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी उच्च शिक्षण संस्थान में दंडात्मक कार्यवाही की योजना उसके प्रशासन की अनिवार्य विशेषता है। प्रणाली में दंड व्यवस्था को यूनिवर्सिटी में अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक तत्वों को समाहित करना होता है, जो उसके शैक्षणिक माहौल और सुधारात्मक दृष्टिकोण के लिए अनुकूल हों।
न्यायालय ने अनंत नारायण मिश्रा बनाम भारत संघ के मामले का हवाला देते हुए कहा कि विद्यार्थी पर केवल दंडात्मक कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए। सजा में सुधारात्मक दृष्टिकोण भी शामिल होना चाहिए। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने प्रखर नागर की याचिका स्वीकार करते हुए दी और विश्वविद्यालय द्वारा दी गई सजा को रद्द करते हुए कहा कि विद्यार्थी युवा वयस्क है, जिन्हें त्रुटि होने पर सुधरने का अवसर दिया जाना चाहिए।
शैक्षणिक संस्थानों को प्रयास करना चाहिए कि साफ स्लेट पर नया जीवन शुरू किया जाए। दरअसल याची बीटेक (सीएसई) का विद्यार्थी है।उस पर अनुशासनहीनता के विभिन्न आरोप लगाए गए हैं, जिसमें नैतिक अधमता, भ्रष्टाचार, रिश्वत देना, यूनिवर्सिटी के शैक्षणिक कामकाज में बाधा उत्पन्न करना तथा जांच और परीक्षाओं से संबंधित मामले शामिल हैं। प्रारंभ में उसे 6 महीने की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया था, जिसे अपील के बाद घटाकर 3 महीने कर दिया गया।
याची के अधिवक्ता का तर्क है कि याची के खिलाफ लगाए गए आरोप अस्पष्ट और सामान्य प्रकृति के हैं, साथ ही निष्कासन को उचित ठहराने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री भी प्रस्तुत नहीं की गई है और सजा अनुपातहीन है। इसके अतिरिक्त याची को कभी भी आरोप पत्र नहीं दिया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। इसके विपरीत विश्वविद्यालय के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उचित जांच के बाद ही सजा दी गई है। चूंकि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, इसलिए निष्कासन की सजा उचित है।
अंत में कोर्ट ने पाया कि याची के खिलाफ विश्वविद्यालय द्वारा उसके आचरण में सुधार करने, उत्कृष्टता की संभावनाओं का पता लगाने और उसकी प्रतिष्ठा को बचाने के अवसरों को छोड़कर पूरी तरह से दंडात्मक कार्यवाही की गई। इसके साथ ही विश्वविद्यालय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के दावे का खंडन करने में भी असमर्थ रहा है। अतः न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुए याची की नई अंकतालिका जारी करने का निर्देश दिया है।
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