रोग पर सीधा हमला करेंगी दवाएं, IIT Kanpur के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों ने खाका किया तैयार
आईआईटी कानपुर के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों ने खाका किया तैयार।
आईआईटी कानपुर के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों ने खाका तैयार किया। स्विटजरलैंड की बेसिल यूनिवर्सिटी के सहयोग से कार्य हुआ।
कानपुर, [शशांक शेखर भारद्वाज]। अब दवाएं और इंजेक्शन किसी भी तरह की बीमारी पर सीधा हमला करेंगे, जिससे इनका शरीर पर दुष्प्रभाव न के बराबर होगा। आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के शोध और नए ड्रग की खोज के चलते यह संभव होगा। स्विटजरलैंड की बेसिल यूनिवर्सिटी के साथ हुआ यह शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल मॉल्यिक्यूलर सेल में प्रकाशित हुआ है।
आईआईटी के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग के प्रो. अरुण कुमार शुक्ला के नेतृत्व में डॉ. रामानुज बैनर्जी, डॉ. मनीष यादव, जगन्नाथ महाराणा, परिस्मिता शर्मा, शिरिशा शाह और बेसिल यूनिवर्सिटी से डॉ.एम चामी ने कोशिकाओं के पास मौजूद विशेष प्रकार की जी प्रोटीन कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआरएस) और अन्य प्रोटीन (एरेस्टिन) के बीच का संबंध जाना। यही संबंध दवाओं की खोज आसान करेगा।
दिल व कैंसर रोगियों के लिए मददगार
प्रो. अरुण कुमार शुक्ला के मुताबिक शरीर में कोशिकाएं एक झिल्ली से घिरी होती हैं, जो विशेष प्रकार के प्रोटीन अणुओं को आश्रय देती हैं। इन्हें रिसेप्टर्स कहा जाता है, जो शरीर में विभिन्न रासायनिक और हार्मोन को महसूस करने के लिए महत्वपूर्ण हैं और शारीरिक प्रतिक्रियाओं को सक्रिय कर तदनुरूप प्रतिक्रिया करते हैं। हृदय के कार्य, रक्तचाप, मानसिक स्थितियों और व्यवहार को विनियमित करना शामिल है। जीपीसीआर के कार्य को अरेस्टिन द्वारा नियंत्रित किया जाता है। अब तक इन दोनों के संबंधों की सही जानकारी नहीं थी। जीपीसीआर और अरेस्टिन के व्यवहार की जांच क्रायोजेनिक इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी से स्विटजरलैंड में हुई।
ब्रेस्ट कैंसर पर शुरू हुई जांच
विशेषज्ञों ने ब्रेस्ट कैंसर के रिसेप्टर (केमोकाइन) और शरीर में सेप्सिस व गठिया जैसी समस्या के रिसेप्टर (कंप्लीमेंट) पर शोध शुरू कर दिया है। नई दवा के मॉलिक्यूल को अरेस्टिन के साथ संपर्क कराया जाएगा। यह दोनों मिलकर सेल्स को नियंत्रित कर सकेंगे। किसी तरह की समस्या होने पर शरीर में सेल्स की संख्या बढ़ने लगती है। यह स्थिति ट्यूमर बना देती है।
इस तरह से होगा शोध
नई दवा को पहले लैब, फिर एनिमल टेस्टिंग होगी। लैब में सेल्स पर ड्रग का असर देखा जाएगा। ड्रग का मॉलिक्युल जीपीसीआर के साथ जुड़ेगा और उसका असर अरेस्टिन पर पता चलेगा। इस स्थिति से दवा कितनी कारगर है, यह जानकारी मिल जाएगी।