Brain की दुर्लभ बीमारी 'GNB1 Encephalopathy' की दवा खोज रहे Researchers

Brain की दुर्लभ बीमारी 'GNB1 Encephalopathy' की दवा खोज रहे Researchers

नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास, तेल अवीव विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ता मस्तिष्क की दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी जीएनबी1 इन्सेफेलोपैथी’ का अध्ययन कर रहे हैं और इसके प्रभावी उपचार के लिए औषधि विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। दुनियाभर में इस बीमारी के 100 भी कम दर्ज मामले हैं। जीएनबी1 इन्सेफेलोपैथी एक प्रकार की मस्तिष्क की बीमारी या तंत्रिका संबंधी विकार है जो गर्भावस्था में ही हो जाती है। 

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वैज्ञानिकों का कहना है कि शारीरिक और मानसिक विकास में देरी, बौद्धिक अक्षमता तथा बार-बार मिर्गी के दौरे आना इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में शामिल हैं और चूंकि जीनोम अनुक्रमण एक महंगी प्रक्रिया है तो बहुत से माता-पिता जल्दी से यह जांच नहीं कराते हैं। आईआईटी मद्रास में पूर्व पीएचडी शोधार्थी हरिता रेड्डी ने कहा कि एक जी-प्रोटीन बनाने वाले जीएनबी1 जीन में एकल न्यूक्लोटाइड उत्परिवर्तन इस बीमारी का कारण है। रेड्डी इजराइल में अध्ययन कर रही हैं। उन्होंने कहा, यह उत्परिवर्तन मरीज पर तब से ही असर डालता है जब वह भ्रूण अवस्था में होता है। जीएनबी1 उत्परिवर्तन के साथ पैदा होने वाले बच्चों में मानसिक एवं शारीरिक विकास देरी से होता है, उन्हें मिर्गी (असामान्य मस्तिष्क गतिविधि) के दौरे पड़ते हैं। 

अभी तक दुनियाभर में इसके 100 से भी कम मामले दर्ज किए गए हैं। हालांकि, प्रभावित बच्चों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि जटिल और बहुत महंगी प्रक्रिया होने के कारण इसकी जांच व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं है। जीएनबी1 जीन में उत्परिवर्तन से मनौवैज्ञानिक विकार (जीएनबी1 इन्सेफेलोपैथी) होता है। आईआईटी मद्रास में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर अमल कांति बेरा ने कहा कि चूंकि जीएनबी1 इन्सेफेलोपैथी एक दुर्लभ और कम जानी-पहचानी बीमारी है तो इस पर बहुत ज्यादा अनुसंधान नहीं किया गया है।

उन्होंने कहा, हम उन प्रक्रियाओं के बारे में नहीं जानते जिनसे यह बीमारी कम होती है। हम नहीं जानते कि इस बीमारी का इलाज कैसे किया जाता है, इसलिए जीएनबी1 इन्सेफेलोपैथी पर अनुसंधान करना महत्वपूर्ण है। हमें लंबा सफर तय करना है। इस बीमारी का प्रभावी उपचार करने के लिए दवा विकसित करना आसान नहीं है। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि तीन साल में हम बीमारी के मॉडल विकसित कर पाएंगे जो अनुसंधान तथा दवा की स्क्रीनिंग में उपयोगी होंगे।

तेल अवीव विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नाथन दास्कल ने कहा कि चूंकि विकासात्मक समस्याएं भ्रूण स्तर पर ही शुरू हो जाती हैं तो उत्परिवर्तन के असर को कम करने के लिए जीन थेरेपी सबसे उपयुक्त विकल्प है। उन्होंने कहा कि हालांकि, इस जटिल प्रक्रिया के विकास में कई वर्ष और काफी पैसा लगेगा। इस अनुसंधान को इजराइल साइंस फाउंडेशन (आईएसएफ) और भारत के विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा दिया गया भारत-इजराइल द्विराष्ट्रीय अनुदान प्राप्त है।

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