पढ़िए जीवन के पहलू से जुड़ी शैलप्रिया की कविताएं

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एक संदेश

ओ दिसंबरी शाम

आज तुमसे मिल लूं

विदा बेला में

अंतिम बार।

सच है,

बीता हुआ कोई क्षण

नहीं लौटता।

नहीं बांध सकती मैं

तुम्हारे पांव।

कोई नहीं रह सकता एक ठांव।

फुरसत में

जब कभी

फुरसत में होता है आसमान,

उसके नीले विस्तार में

डूब जाते हैं

मेरी परिधि और बिंदु के

सभी अर्थ।

क्षितिज तट पर

औंधी पड़ी दिशाओं में

बिजली की कौंध

मरियल जिजीविषा-सी लहराती है।

इच्छाओं की मेघगर्जना

आशाओं की चकमकी चमक

के साथ गूंजती रहती है।

तब मन की घाटियों में

वर्षों से दुबका पड़ा सन्नाटा

खाली बरतनों की तरह

थर्राता है।

जब कभी फुरसत में होती हूं मैं

मेरा आसमान मुझको रौंदता है

बंजर उदास मिट्टी के ढूह की तरह

सारे अहसास

हो जाते हैं व्यर्थ।

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