ऋषि सुनक का बड़ा बयान, चीन के साथ ब्रिटेन का ‘स्वर्ण युग’ हुआ समाप्त
लंदन। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ब्रिटेन-चीन संबंधों पर कहा कि ब्रिटिश मूल्यों और हितों के लिए चीनी शासन द्वारा प्रस्तुत ‘‘व्यवस्थागत चुनौती’’ के सामने द्विपक्षीय संबंधों का ‘‘तथाकथित स्वर्ण युग’’' समाप्त हो गया है। लंदन के लॉर्ड मेयर के भोज में सोमवार रात अपने पहले प्रमुख विदेश नीति भाषण में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने कहा कि वह एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के प्रति ब्रिटेन के दृष्टिकोण को ‘‘विकसित’’ करना चाहते हैं।
उन्होंने चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड की भी आलोचना की। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि ब्रिटेन ‘‘विश्व मामलों में चीन के महत्व को आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकता’’, इसलिए उनका दृष्टिकोण ‘‘दीर्घकालिक रुख के हिसाब से ‘‘दृढ़ व्यावहारिकता’’ में से एक होगा। सुनक ने करीब सात साल पहले डेविड कैमरन के नेतृत्व वाली कंजरवेटिव पार्टी की सरकार के दौरान इस्तेमाल कथन का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि तथाकथित ‘स्वर्ण युग’ समाप्त हो गया है, साथ ही इस भोले विचार का भी अंत हो गया है कि व्यापार सामाजिक और राजनीतिक सुधार की ओर ले जाएगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ना ही हमें सरलीकृत शीतयुद्ध वाली बयानबाजी पर भी भरोसा करना चाहिए। हम मानते हैं कि चीन हमारे मूल्यों और हितों के लिए व्यवस्थागत चुनौती प्रस्तुत करता है, एक ऐसी चुनौती जो अधिक गंभीर होती जाती है क्योंकि यह और भी अधिक अधिनायकवाद की ओर बढ़ती है।’’ सुनक ने चीन द्वारा देश में लॉकडाउन विरोधी प्रदर्शनों और सप्ताहांत में बीबीसी के एक पत्रकार की गिरफ्तारी और उनके साथ मारपीट की आलोचना करते हुए कहा कि लोगों की चिंताओं को सुनने के बजाय, सरकार ने कार्रवाई करने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘मीडिया और हमारे सांसदों को इन मुद्दों को उजागर करना चाहिए, जिसमें शिनजियांग में दुर्व्यवहार और हांगकांग में स्वतंत्रता में कटौती शामिल है।’’ सुनक ने कहा, ‘‘बेशक, हम वैश्विक आर्थिक स्थिरता या जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों के लिए वैश्विक मामलों में चीन के महत्व को आसानी से नजरअंदाज नहीं कर सकते।
अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जापान और कई अन्य भी इसे समझते हैं। इसलिए साथ मिलकर हम कूटनीति और भागीदारी सहित इस तेज प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन करेंगे।’’ पिछले महीने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने सुनक को कंजरवेटिव पार्टी में नेतृत्व पद के मुकाबले के दौरान चीन के प्रति अपने नरम रुख के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। ऐसा लगता है कि उनका पहला प्रमुख विदेश नीति भाषण ऐसी किसी भी धारणा को खत्म करने के इरादे से दिया गया।
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