बरेली: स्मार्ट सिटी में ‘पता हुए लापता’, अब सिर्फ नाम ही पहचान, देखें Video

हरदीप सिंह ‘टोनी’ बरेली, अमृत विचार। ‘मुद्दत से हम उस जगह से गुजरे, कागज पर लिखकर बताते थे उसका पता। दिल को हमारे ठेस तब पहुंची, जब पता लगा वो पता आज खुद है लापता….।’ स्मार्ट शहरों में शुमार नाथनगरी यानी बरेली की पहचान कभी यहां की गलियों, मोहल्लों और सड़कों के नाम से ही …
हरदीप सिंह ‘टोनी’
बरेली, अमृत विचार। ‘मुद्दत से हम उस जगह से गुजरे, कागज पर लिखकर बताते थे उसका पता। दिल को हमारे ठेस तब पहुंची, जब पता लगा वो पता आज खुद है लापता….।’ स्मार्ट शहरों में शुमार नाथनगरी यानी बरेली की पहचान कभी यहां की गलियों, मोहल्लों और सड़कों के नाम से ही हो जाती थी, लेकिन वक्त का पहिया ऐसा घूमा कि विकास यात्रा में अब खुद पता ही लापता हो गए हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन पतों की जो कभी खुद में एक पहचान थे, जिनके लिख देने मात्र से देश-विदेश से संदेशा लाने वाला डाकिया और लोग सीधे मंजिल तक पहुंच जाता था। बरेली के ऐसे पते लंबे समय से अपने नाम और पहचान के मोहताज नहीं रहे। जिन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग उसी नाम से पहचानते आ रहे हैं। लेकिन कई बार लोगों के दिल में सवाल पनपता है कि फलां जगह को इस नाम से क्यों जानते हैं, तो अक्सर वह पूछ बैठते हैं कि आखिर इस जगह का यह नाम कैसे और क्यों पड़ा।
रोचकता और उत्सुकता से सराबोर इन पतों की अपनी ऐतिहासिक दास्तां हैं। इन्हीं पतों को लेकर घंटों बच्चों से लेकर नौजवान और बड़े- बुजुर्गों के बीच चर्चा का दौर भी चलता है। जिसमें बुजुर्ग उस जगह के बारे में बताते हैं कि हमारे दादाजी या पिताजी बताया करते थे या फिर मैं छोटा था तो देखा है कि यहां ये हुआ करता था, या वो हुआ करता था। जिसकी वजह से इस जगह का नाम यह पड़ा। वहीं आजकल की तकनीकी से लैस युवा पीढ़ी कहीं गूगल मैप तो कहीं यू-ट्यूब पर उन जगहों के इतिहास को खंगालने लगती है, लेकिन ज्यादातर जगहों की जानकारी ऐसे नहीं मिल पाती है।
उन जगहों के आस-पास रहने वाले बड़े-बुजुर्ग जरूर उसके बारे में अपने जमाने के अनुसार किस्से-कहानियां सुनाते हैं और आज की पीढ़ी बड़े ही चाव से सुनती है। मुन्ना खां का नीम, कैथ का पेड़, नीम की चढ़ाई…जैसे कई नाम उन पतों में शुमार हैं जो इनके नाम और पहचान से अलग हो चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इन पतों के नाम से इनके अब कोई साक्ष्य मौजूद नहीं हैं। मसलन, ना तो मुन्ना खां का नीम, ना किला और ना ही कैथ का पेड़ अब अस्तित्व में हैं।
ये सब अब अतीत के पन्नों में दर्ज इतिहास बन चुके हैं। शहर में सैलानी रोड पर कैथ का पेड़ नाम से मशहूर जगह को लेकर स्थानीय निवासी 65 वर्षीय राके ने बताया कि उनके वालिद बताया करते थे कि यहां पर कैथ का एक पेड़ था, जिस पर लगने वाला फल गिरने से लोगों को अक्सर चोट लग जाया करती थी, जिसे किसी वजह से कटवा दिया गया, लेकिन उस जगह का नाम कई पीढ़ियों से आज भी चला आ रहा है। वहीं 70 वर्षीय इसरार ने बताया कि वह बचपन से सुनते आ रहे हैं कि यहां पर कैथ का पेड़ हुआ करता था, जिसे उन्होंने देखा नहीं लेकिन अपने बुजुर्गों से उसके बारे में सुना है।
वहीं शहर की जानी पहचानी जगह किला को लेकर बड़ा बाजार के रहने वाले कपड़ा व्यापारी सुनील गुप्ता ने बताया कि उनके दादा-परदादा ऐसा बताते थे कि जिस जगह पर उनकी दुकान है, वहां पर बहुत समय पहले नवाब नब्बो साहब का किला हुआ करता था। लेकिन कई पीढ़िया गुजर जाने के बाद भी उस जगह को किला नाम से ही जाना जाता है। आपको बताते चलें यहां पर बने थाने को किला थाना नाम दिया गया है।
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शहर में साहूकारा रोड पर नीम की चढ़ाई में रहने वाले बुजुर्ग चंदप्रकाश गुप्ता ने बताया कि वर्षों पहले उस जगह पर एक नीम का पेड़ हुआ करता था, जहां मंदिर बना हुआ था, ऐसा उन्होंने अपने बुजुर्गों से सुना है। उसी पेड़ की वजह से इस जगह को नीम की चढ़ाई नाम से पहचाना जाने लगा।
शहर के सैलानी में मुन्ना खां का नीम नाम से प्रसिद्ध इलाके के रहने वाले युवा हज्जाम खान ने बताया कि जब वह करीब 7-8 साल के थे, तब वहां पर एक नीम का पेड़ हुआ करता था। जो आंधी में गिरकर नष्ट हो गया। जिस जगह को मुन्ना खां की नीम नाम से जाना जाता है। वहीं अब स्थानीय लोगों ने उसी जगह पर एक नीम का पौध लगाया है। ताकि इस जगह की पहचान उसी रूप में बनी रहे।
वहीं इन जगहों के अलावा एक जगह है तिरंगा होटल, जिसे शहर का लगभग हर शख्स जानता होगा, लेकिन आज वो अस्तित्व में नहीं है। फिर भी लोग लैंड मार्क के रूप में इसका जिक्र करते हैं। यहां के दुकानदार हनीफ ने बताया कि तिरंगा होटल 90 के दशक में हुआ करता था, जो मात्र दो साल चलने के बाद बंद हो गया। लेकिन लगभग 25 साल पहले बंद हो चुके तिरंगा होटल की पहचान आज भी बरकरार है। जो पता बताने के काम में आ रहा है।
ये तो महज चंद जगह हैं, जो आज भी पता बताने के काम में आ रही हैं, लेकिन जिसकी वजह से उनकी पहचान बनी, उसका नामोनिशान तक मौजूद नहीं है। महीनों और साल गुजर गए, लेकिन हमें इस बात का एहसास तक नहीं हुआ कि जिसका हम सालों और दशकों से जिक्र करते चले आ रहे हैं। वहीं पता आज खुद लापता चुका है।
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